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द्वार जोहता बाट तुम्हारी अबकी आओ तो।

द्वार जोहता बाट तुम्हारी अबकी आओ तो।

आंगन की तुलसी चौरा की
हरियाली वैसी
नानक के पुनीत उपदैशों की
आभा जैसी
और कबीरा राग तुम्हारा
साखी गाओ तो।
घंटे की धड़कन में
श्रवणामृत शाश्वत रहता
पंचपात्र का तीरथ भी
चरणामृत मधु देता
सच्ची वैज्ञानिकी दिशाएँ
जरा सजाओ तो।

आसमान में अब भी
गंधिल धूप धुआँ वैसा
उठता है, मंदिर का
प्रांगण और कुआँ जैसा
बुला रहा है आओ
रम्य बनाओ तो। रामकृष्ण
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