कठ पुतली
जगह तुम दे न सकते
अपने छोटे से दिल में।
और बातें करते हो तुम
सदा ही बड़ी बड़ी।
जबकि तेरी करनी कहने में
बहुत ज्यादा अंतर होता है।
इसलिए मैं कहता हूँ
पहले खुदको तुम बदलो।।
गरीब और अमीर में
बहुत ज्यादा अंतर हो गया।
खुदा और इंसानो का अब
सच में संबंध कम हो गया।
क्योंकि अहम का आजकल
बहुत बोलाबाला हो गया।
जिसके चलते ही अब वो
खो रहा मानवता को।।
सभलना और समझना अब
तुम्हें ही करना पड़ेगा।
जमाने के हिसाब से अब
तुम्हें ही चलना पड़ेगा।
जमाने से तुम हो अब
जमाना तुम से नहीं है।
इसलिए बदल लो अब
तुम अपनी सोच को..।।
करेगा वो ही तेरे साथ
जिसने तुझे भेजा है।
लाख कर ले तू कोशिश
होगा वो ही जो वो चाहेगा।
इसलिए अपने अहम को
तू एक भ्रम समझ बैठा है।
जबकि तू उसके हाथ की
मात्र एक कठ पुतली है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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