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रोग लग रहा है

रोग लग रहा है

जब कोई अपना मिल जाता है
तो सच में दिल खिल जाता है। 
जैसे पानी में खिला हुए कमल
तालाब को शोभीत कर रहा। 
देखने वालो के दिल भी 
उन्हें देखकर खिल उठे है। 
और मोहब्बत के दीपक
दिलमें अब जल उठे है।। 

देख पानी कमल की जोड़ी को 
प्यास दिलकी अब बढ़ रही है। 
और अपने प्रीतम के लिए 
सागर किनारे तड़प उठी हूँ। 
और सोच रही हूँ की कब
वो स्पर्श करे मेरे को। 
जिससे खिल उठे मेरा 
ये सुंदर चंचल सा बदन।। 

जो भी तेरे दिल दिमाग में है
उसे लब्जो से कह दो तुम। 
और दिलकी धड़कनों को
खुलकर आज कह दो तुम। 
माना की मैं तेरी आँखो को
नहीं पढ़ पा रहा हूँ। 
इसलिए अपनी मोहब्बत का
तुम ही इजहार कर दो ना।। 

देखकर सागर तट पर तुझे
मेरे दिलमें कुछ हो रहा है। 
जो मेरे दिल को बहुत 
बेचैन कर रहा है।
और प्यास दिल की 
बढ़ाये जा रहा है। 
लगता है मोहब्बत का
रोग हमें भी लग गया है।। 

जय जिनेंद्र 
संजय जैन "बीना" मुंबई
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