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पिता नारियल की मिठास

पिता नारियल की मिठास

माँ हरे डाभ का पानी
जिनके चरणों में रचती है
जीवन भरी कहानी। 

कौन उगाता है साहस का
सुरज अँधिआरे में
कौन भिंगो देता  आँसू के
गूँगे गलियारे में
जो भी हों  पारद ही समझूँ
परखी जाए निशानी। 

राह अचानक मिल जाते हैं
कई अपरिचित ऐसे
जाने किन जन्मों के साथी
कभी रहे हो जैसे
असमय ही विलगाव हुआ तो
खंडित हुई  रवानी। 

रंगमंच सा मिलना  क्षण भर
फिर होना नेपथ्य
दर्शक ही मन में रख लेता
है नाटक का कथ्य
फिर तो  सूना- सूना आँगन
गलियाँ वीरानी।

 संस्कृति और प्रकृति की गाथा
ग्रंथों ने रट  ली
भौतिक मूल्यों की परिभाषा
धरती ने रख ली
ऊर्जा की बाँहों में संभव
अकड़ी रही जवानी।
रामकृष्ण
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