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नीतीश का डिगता सिंहासन

नीतीश का डिगता सिंहासन

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
उत्तर प्रदेश में गत 25 मार्च को जब योगी आदित्य नाथ दूसरे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे तब भव्यता का प्रदर्शन सोची समझी रणनीति के तहत ही किया गया था। भाजपा विपक्षी दलों के साथ ही अपने सहयोगी दलों को भी कडा संदेश देना चाहती थी। भाजपा के कुछ सहयोगी दलों ने साथ छोड़ दिया तो कुछ दलों ने धौस देने का भी दुस्साहस किया था। बिहार में सहयोगी वीआईपी पार्टी के नेता मुकेश सहनी ने तो भाजपा उम्मीदवारों का खुला विरोध भी किया था। नीतीश कुमार ने भी अलग राह चुन ली थी। एक समय ऐसा भी आया जब भाजपा के फुलफार्म मजारिटी पर आशंका जताई जाने लगी। योगी और मोदी ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। इसका अच्छा नतीजा भी मिला लेकिन भाजपा धोखा देने वालों को भूल नहीं पायी। शपथ ग्रहण समारोह में ही नीतीश जब झुककर सलाम कर रहे थे तभी उनको मोदी की प्रतिक्रिया समझ में आ गयी होगी। इसके बाद मुकेश सहनी को मंत्री पद से जिन हालात में नीतीश ने बर्खास्त किया उसके बाद संन्यास मार्ग ही बचता है। संभवतः यही कारण है कि नीतीश कुमार अब बिहार में मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिल्ली जाना चाहते हैं? राज्य सभा के सदस्य बनना चाहते हैं? हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि 30 मार्च को बिहार विधानसभा में अपने चेंबर में पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में उन्होंने जो भी कहा उससे यही झलक रहा है।
नीतीश कुमार अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में विधायक, लोकसभा सांसद, केंद्र सरकार में मंत्री, बिहार विधान परिषद के सदस्य भी रह चुके हैं। मौजूदा समय में भी एमएलसी हैं। नीतीश को लगता है कि उनको अगर एक बार राज्यसभा की सदस्यता मिल जाए तो उनका सियासी जीवन पूरा हो जाएगा। हालांकि यह अधूरा सच लगता है। इतना जरूर है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब से राज्यसभा में जाने की तमन्ना जताई है, उसके बाद से बिहार की राजनीति में जबरदस्त हलचल मच गई है। उधर, बिहार सरकार में जेडीयू की सहयोगी बीजेपी भी नीतीश कुमार को राज्यसभा भेजने का समर्थन कर रही है। जनता दल यूनाइटेड नेता और मंत्री श्रवण कुमार ने कहा, अगर नीतीश कुमार ने राज्यसभा में जाने की बात कही है तो फिर दूसरा व्यक्ति इसमें क्या कह सकता है। नीतीश कुमार ने हमेशा कहा है कि वह जब तक रहेंगे जनता की खिदमत और काम करते रहेंगे। इस मामले में चैंकाने वाले बयान भी सुनने को मिल रहे हैं। बिहार बीजेपी के फायर ब्रांड नेता और विधायक हरि भूषण ठाकुर ने यहां तक कह दिया कि अगर नीतीश कुमार राज्य सभा में जाना चाहते हैं तो बीजेपी उनकी इच्छा को पूरा करेगी और ऐसा होने की स्थिति में फिर बिहार में बीजेपी का मुख्यमंत्री बनेगा। इस तरह का बयान हाईकमान के इशारे पर ही दिया जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने तो नीतीश कुमार के राज्यसभा में जाने की इच्छा का समर्थन करते हुए तंज कसा और कहा कि और अच्छा होगा वह दिल्ली चले जाएं और उन्हें बिहार में कोई रोकना भी नहीं चाहता। सूत्रों के मुताबिक, बिहार में कानून व्यवस्था और शराबबंदी के मुद्दे को लेकर जिस तरीके से लगातार नीतीश कुमार का ग्राफ गिरता जा रहा है, उसके बाद से बीजेपी इस मौके का फायदा उठाकर नीतीश कुमार को राष्ट्रीय राजनीति में भेजकर बिहार में अपना सीएम बनाने की जुगत में लग गई है।
राजनीतिक गलियारों से मिली जानकारी के मुताबिक, अगर नीतीश कुमार बिहार की राजनीति को छोड़कर दिल्ली आते हैं तो ऐसे हालात में बिहार में बीजेपी अपना मुख्यमंत्री बनाएगी, क्योंकि 2020 विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी 74 विधायकों के साथ सबसे बड़ी एनडीए में घटक दल थी और पिछले दिनों वीआईपी पार्टी के 3 विधायकों के बीजेपी में शामिल हो जाने के बाद अब पार्टी की विधानसभा में संख्या 77 हो गई है। बीजेपी 2020 विधानसभा चुनाव के बाद और ज्यादा मजबूत हो गई है और लगातार बीजेपी नेताओं के तरफ से भी इस तरीके के बयान आते रहते हैं कि अब बिहार में बीजेपी का मुख्यमंत्री होना चाहिए। सूत्र बताते हैं कि अगर नीतीश कुमार राज्यसभा में जाते हैं तो इस स्थिति में बीजेपी बिहार में अपना मुख्यमंत्री देगी जबकि जदयू के दो डिप्टी सीएम बनाए जा सकते हैं।
नीतीश कुमार के लिए हालात पहले से कमजोर हो गये हैं। बिहार विधानसभा के बजट सत्र के दौरान सवाल-जवाब का दौर चला। भाजपा विधायक ने अपनी ही पार्टी के कोटे के प्रभारी श्रम मंत्री से ऐसा सवाल पूछा कि उनकी सदन में बोलती बंद हो गई। अभी कुछ दिन पहले ही विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच भी एक दूसरे के अधिकारों को चुनौती दी गई थी। भाजपा विधायक और उसी पार्टी के मंत्री के बीच दोस्ताना लडाई में विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा ने भी हस्तक्षेप करते हुए टिप्पणी की। इस तरह की लडाई अब राजनीति में फैशन बन गयी है। चुनाव के समय ऐसे संघर्ष अक्सर देखने को मिलते हैं। बिहार विधानसभा में भाजपा विधायक अरुण शकंर प्रसाद ने आईटीआई में रिक्त सीटों का मुद्दा उठाया। उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी ही सरकार को घेरते हुए कहा कि आईटीआई में आधी से ज्यादा सीटें खाली पड़ी हैं। इस वजह से प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कौशल विकास मिशन फेल हो गया। सरकार के अधिकारी ही मंत्री की बात नहीं सुनते होंगे तभी तो प्रधानमंत्री कौशल विकास मिशन फेल हो गया।’ इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करते हुए विधानसभा अध्यक्ष ने कहा, ‘मैं भी इस विभाग का मंत्री रहा हूं। मैंने कई आईटीआई को रद्द करने का निर्देश दिया था।’
गत 30 मार्च को बिहार के श्रम मंत्री जीबेश मिश्रा सदन में उपस्थित नहीं थे। उनके स्घ्थान पर प्रभारी श्रम मंत्री नितिन नवीन सवालों का जवाब दे रहे थे। हालांकि, वह अपनी ही पार्टी के विधायक की ओर से पूछे गए सवाल का सही तरीके से जवाब नहीं दे सके। बता दें कि बिहार विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो चुका है। इसके तहत बजट प्रावधानों पर चर्चा की जा रही है। सदस्य बजट से जुड़े सवाल कर रहे हैं, वहीं संबंधित विभागों के मंत्री इसका जवाब दे रहे हैं। इसी क्रम में भाजपा विधायक ने प्रभारी श्रम मंत्री के समक्ष आईटीआई में रिक्घ्त सीटों का मुद्दा उठाया, जिसपर वह पूरी तरह से घिर गए। प्रभारी मंत्री की ओर से इस मसले पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया जा सका।
इसी बीच बिहार के मुजफ्फरपुर के बोचहां विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर सियासत तेज हो गयी है। सभी दलों ने जीत के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है। बीजेपी के लिए यह सीट प्रतिष्ठा की बात हो गई है लिहाजा पार्टी ने चुनाव प्रचार के लिए नेताओं की फौज उतार दी है। बीजेपी के स्टार प्रचारकों की सूची में 40 नेताओं के नाम हैं जो बोचहां विधानसभा में जाकर पार्टी के लिए प्रचार करेंगे। बीजेपी की ओर से चुनाव आयोग को स्टार प्रचारकों की जो सूची सौंपी गई है उसमें 40 चेहरे शामिल है। वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में बोचहां सीट से विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के टिकट पर मुसाफिर पासवान जीत हुई थी। वर्ष 2021 में उनका निधन हो गया था जिसके चलते यह सीट रिक्त हो गई थी। अब यहां उपचुनाव कराया जा रहा है। एनडीए की तरफ से बीजेपी ने यहां से अपना उम्मीदवार उतारा है। बीजेपी ने पूर्व विधायक बेबी कुमारी को टिकट दिया है जबकि वीआईपी ने पूर्व मंत्री रमई राम की बेटी गीता देवी को उम्मीदवार बनाया है। वहीं, आरजेडी ने मुसाफिर पासवान के बेटे अमर पासवान को मैदान में मैदान में उतारा है। भाजपा अपने विधायकों की संख्या बढाकर 78 करना चाहती है। इसके बाद तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उसका अधिकार बन ही जाएगा।
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