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चुनाव में साम्प्रदायिक कीचड़

चुनाव में साम्प्रदायिक कीचड़

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
इस बार अर्थात 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में साम्प्रदायिक कीचड़ ज्यादा था। कीचड़ में कमल खिलना स्वाभाविक है और अनुभव बताता है कि कीचड़ में साइकिल चलाना मुश्किल होता है। इसलिए समाजवादी पार्टी (सपा) की साइकिल चली लेकिन भाजपा के कमल से बहुत पीछे रह गयी। यह कीचड़ चुनावी प्रतियोगिता को भी प्रदूषित कर गया है। इसीलिए अब चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद यह आकलन किया जा रहा है कि किस सम्प्रदाय ने किस राजनीतिक दल को कितने वोट दिये हैं। इस बार यूपी में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का प्रयास किया।आलम ये रहा कि उसको एक फीसदी से भी कम वोट मिला। यही नहीं, उन्होंने 100 से ज्यादा प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन सिर्फ एक ही अपनी जमानत बचाने में सफल हो सका। इस दौरान एआईएमआईएम की आजमगढ़ की मुबारकपुर सीट पर ही ‘लाज’ बच सकी। मुबारकपुर सीट से शाह आलम (गुड्डू जमाली) ने 36419 वोट हासिल किए और वह चैथे नंबर पर रहे। इस सीट से समाजवादी पार्टी के अखिलेश ने परचम लहराया,तो बसपा दूसरे और बीजेपी को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा। वैसे आजमगढ़ की सभी 10 सीटों पर सपा ने कब्जा किया है। ये नतीजे एक विशेष सम्प्रदाय के मतों के ध्रुवीकरण माने जा रहे हैं। शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली यूपी के आजमगढ़ के जमालपुर गांव के रहने वाले हैं । इनके पिता अधिवक्ता हैं। गुड्डू जमाली की प्रारंभिक शिक्षा आजमगढ़ से तो जामिया

मिलिया विश्वविद्यालय से बीकॉम और एमबीए किया है। वह 2012 में बसपा के टिकट पर मुबारकपुर से विधायक चुने गए थे। इसके बाद 2017 में फिर बसपा के टिकट पर चुनाव जीतकर लखनऊ पहुंचे, लेकिन उन्होंने 25 नवंबर 2021 को बसपा से त्यागपत्र दे दिया था। इसके बाद शाह आलम के सपा में जाने की चर्चा थी, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला तो ओवैसी का दामन थाम लिया।

यूपी विधानसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव अचानक लखनऊ कार्यालय पहुंच गए। इस दौरान अखिलेश यादव ने नेताजी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। वहीं, नेताजी ने कहा कि अखिलेश बहुत अच्छा लड़े तुम, बहुत-बहुत बधाई। बता दें कि इस बार सपा गठबंधन को यूपी चुनाव में 125 सीटों पर जीत मिली है। वहीं, नेताजी ने करहल, इटावा और जौनपुर की मल्हनी सीट पर सपा के लिए प्रचार किया था। उत्तर प्रदेश की सियासत में एक समय था, जब मुस्लिम-यादव सत्ता की दशा-दिशा तय किया करते थे तो पश्चिम यूपी में जाट-मुस्लिम कॉम्बिनेशन निर्णायक माने जाते थे। यूपी में मुस्लिम-यादव यानी एमवाई समीकरण के दम पर सपा कई बार सूबे की सत्ता पर काबिज हुई, तो जाट-मुस्लिम फैक्टर के सहारे चैधरी चरण सिंह से लेकर चैधरी अजित सिंह किंगमेकर बनते रहे हैं लेकिन बीजेपी के सियासी उभार के बाद सूबे की सियासी फिजा ऐसी बदल गई है कि न विपक्ष का कोई सियासी प्रयोग सफल हो रहा है न ही कोई कास्ट फैक्टर। फिर भी साम्प्रदायिकता बढ़ाने का प्रयास तो किया ही गया।

राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चैधरी को लगा कि इस बार वेस्ट यूपी का जाट समुदाय उनके भाग्य का सितारा चमकाते हुए उन्हें उस मुकाम तक जरूर पहुंचा देगा, जहां जाने की उनकी ख्वाहिश है क्योंकि अखिलेश यादव की सरकार के दौरान 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के चलते बिखरे जाट-मुस्लिम 2021 के किसान आंदोलन के चलते फिर से एकजुट हो गये थे। पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम फैक्टर को देखते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जयंत चैधरी की पार्टी आरएलडी के साथ गठबंधन किया। जयंत चैधरी के साथ-साथ किसान नेता और जाट समुदाय से आने वाले राकेश टिकैत ने जाट बेल्ट में घूम-घूमकर बीजेपी और योगी-मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में किसी तरह की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इसके बावजूद अखिलेश और जयंत चैधरी बीजेपी के विजय रथ को रोक नहीं सके। शामली, मुजफ्फरनगर और मेरठ छोड़कर पश्चिमी यूपी के किसी भी जाट बहुल इलाके में सपा-रालोद गठबंधन अपना असर नहीं दिखा सका। बागपत, बिजनौर, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, हापुड़, मथुरा, आगरा और हाथरस जैसे जिले की जाट बहुल सीटों पर बीजेपी ने एकतरफा जीत दर्ज की है। सपा के साथ गठबंधन करने के बाद भी जयंत चैधरी की आरएलडी महज आठ सीटों पर चुनाव जीत सकी है, जबकि उसने 31 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। जाट बेल्ट में बीजेपी गुर्जर, कश्यप, सैनी, ठाकुर, वाल्मिकी, शर्मा, त्यागी जैसी जातियों के समीकरण बिठाने में कामयाब रही। ये तमाम जातियों की गोलबंदी बीजेपी के जाट बेल्ट में जीत का आधार बनी। इस तरह से बीजेपी ने पश्चिम यूपी में जाट बेल्ट में जाट-मुस्लिम समीकरण को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया।

अब इसे सुखद परिवर्तन कहें अथवा साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण । उत्तर प्रदेश में तो यह साफ साफ दिखने लगा है । साम्प्रदायिकता का कीचड़ अब काला नहीं बल्कि लाल हो गया है क्योंकि उसमें मानव रक्त मिलने लगा हैं । उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में भाजपा कार्यकर्ता बाबर की उसके पट्टीदारों ने पीट पीट कर हत्या जिस कारण की उसकी जडे़ं नफरत की नागफनी उगाएंगी। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में बीजेपी कार्यकर्ता बाबर की उसके पट्टीदारों द्वारा बेरहमी से पीटकर हत्या कर दी गई थी, परिजनों की मानें तो बाबर को कई बार धमकी मिल चुकी थी, जिसकी वजह से उसने थाने में शिकायत पत्र भी दिया था। इसको पुलिस ने नजरअंदाज कर दिया था, जिसके बाद बाबर की हत्या कर दी गई। मामला जब मीडिया में आया तो पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया। इसके बाद एसपी सचिंद्र पटेल ने थाना प्रभारी सहित दो अन्य उप निरीक्षकों को भी लाइन हाजिर कर दिया। पुलिस ने बाबर की हत्या के मामले में नामजद चार आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया। रामकोला थाना क्षेत्र के कटघरही गांव के निवासी बाबर एक बीजेपी कार्यकर्ता था। हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव मंे बीजेपी के जीतने के बाद अपने गांव में मिठाई बांटकर खुशी जाहिर की थी। बाबर की खुशी उनके पटीदारों को इतनी चुभी कि बाबर की बेरहमी से पीट कर हत्या कर दी। धीरे-धीरे मामले ने तूल पकड़ लिया। मुख्यमंत्री ने संज्ञान लेते हुए बाबर के परिजनों को दो लाख मुआवजा दिलाने का ऐलान किया। साथ ही बाबर की हत्या के आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने को अधिकारियों को निर्देश भी दिए।
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