भारत विश्व का एकमात्र राज्य 75 वर्षों से हैं जहां का राज्य हिंदू समाज यानी बहुसंख्यक समाज को समाज ही नहीं मानता ।
मेरी समझ से सभ्यता की दृष्टि से आध्यात्मिक साधना के सूक्ष्म स्तर की बात तो यहां नहीं हो सकती परंतु शेष स्तरों पर वर्तमान में हिंदू समाज के समक्ष ये विचारणीय स्थितियां हैं जिन पर प्रत्येक प्रबुद्ध व्यक्ति को ध्यान देना चाहिए ।
1) पहला है :-
संसार का एक अभूतपूर्व राज्य जिस के कर्णधार विगत 75 वर्षों से निरंतर भारतीय सभ्यता भारतीय संस्कृति हिंदू धर्म हिंदू समाज हिंदू परंपरा इन सब का गौरव गान कर रहे हैं और हर स्तर पर नीति के स्तर पर, शिक्षा के स्तर पर ,इतिहास संबंधी लगातार झूठा प्रचार करने के ,निर्लज्ज कार्यों के स्तर पर ,राजनीति में छल फरेब, झूठा प्रचार और प्रोपेगेंडा के स्तर पर और समाज में किस को श्रेष्ठ माना जाए ,किसको नहीं, इन कसौटियों के स्तर पर भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म की सभी मान्यताओं को योजना पूर्वक नष्ट करते दिख रहे हैं ।
पहले भारत का शासन मुख्यतः सोवियत संघ की सेवा के लिए समर्पित रहा और इसे कम्युनिस्ट बनाने का बहुत चतुराई से प्रयास करता रहा।।
इतना मानना पड़ेगा कि नेहरू जी का कम लेनिन और स्टालिन के क्रूर तरीकों से कई गुना अधिक अच्छा था और उदार लोकतांत्रिक था ।
यद्यपि वे अपने को स्टालिन का शिष्य कहते थे और स्टालिन का बेटा कहते थे ।
लेकिन संभवत : भारतीय परिस्थितियों के और विशेषकर हिंदू समाज की समाज व्यवस्था और जाति व्यवस्था के अपने वास्तविक ज्ञान के कारण उन्होंने लेनिन स्टालिन और माओ जैसे लोगों का क्रूर क्रूर तथा पैशाचिक मार्ग नहीं अपनाया।।
उसके बाद नरसिंह राव और राजीव गांधी के समय से भारत तेजी से संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर झुका और झुकता ही चला गया ।
वर्तमान में मोदी जी के नेतृत्व में भारत का अमेरिकी दिशा में अद्भुत तेजी से विकास हो रहा है या कह लें कि उधर तेजी से बढ़ रहा है भारत।।
2) दूसरी ओर समाज के स्तर पर भी अनेक महत्वपूर्ण और सबल संस्थाएं हैं जो हिंदू संगठन ,हिंदू समाज के उत्कर्ष, हिंदू समाज के वैभव, हिंदू समाज की उन्नति के लिए दिन-रात कार्यरत हैं।
परन्तु वे प्रायः अपने नाम से और हिंदुत्व के नाम से ईसाई मिशनरियों की ही दिशा अपनाकर हिंदू समाज को सुधारने के लिए रात दिन काम कर रहे हैं ।
जिसका अर्थ है कि वस्तुतः बे सुधार के नाम पर हिंदू समाज को तोड़ने और दास बना कररखने, अपने मतवाद के कठोर अनुशासन में लाने के लिए तथा इसकी स्वाभाविक सभी इकाइयों को:-जाति, खाप, संप्रदाय और पंच परमेश्वर तथा न्याय की समस्त भारतीय अवधारणाओं को नष्ट करने में भारत के किसी भी कथित हिंदू संगठन को एक पल भी परेशानी नहीं है।
स्वयं भले यह नहीं करें तो भी अगर यह सब चीजें नष्ट हो जाएं तो इसमें भी हिंदुत्व की उन्नति ही मानते हैं।
3) तीसरी और व्यापक हिंदू समाज है जो अपना जीवन जी रहा है और जो अपनी भौतिक सुविधाओं तथा तरक्की के लिए सदा राजनेताओं की ओर देखता है और राज्य की ओर देखता है ।यद्यपि पुरुषार्थ वह स्वयं करता है पर कोशिश करता है कि राज्य उसकी भौतिक उन्नति में कुछ तो मदद कर दे।
परंतु धर्म के लिए संस्कृति के लिए, आत्मरक्षा के लिए, जिहादी उग्र वादियों से हिंदुओं की रक्षा के लिए, राज्य पर वह न तो कोई दबाव डालता ,ना ही राज्य की ओर देखता।
अपितु ऐसे ऐसे बोली के सूरमा हैं,वाग्वीर हैं जो हिंदू समाज को ही कोसते रहते हैं कि देखो ,जिहादी आतंकवाद के विरुद्ध तुम कोई तैयारी नहीं कर रहे हो।
समाजों को तैयार करने के जो साधन होते हैं :-शिक्षा, सैनिक प्रशिक्षण, संचार माध्यमों के द्वारा सत्य का प्रचार तथा धर्म की प्रतिष्ठा ,
उन सब क्षेत्रों में राज्य ही एकमात्र अधिकारी वर्तमान ढांचे में बना हुआ है ,यह या तो ये जानते नहीं यानी उस विषय में अंधे हैं या फिर डर के मारे राज्य की कोई बात नहीं करते।।
अगर डर के मारे नहीं करते हैं तो इसका अर्थ है कि भारत में राज्य पर अंग्रेजों की निरंतरता में ऐसे लोग काबिज हैं जो अपने समाज से सत्य का कोई संबंध नहीं रखते, उसको धोखे में और अज्ञान में रखना चाहते हैं तथा साथ ही उसे भयभीत रखना चाहते हैं।
यह स्थिति है।
अब इसमें करने योग्य क्या है, इस पर लगातार चर्चा होती ही रही है।
ज्ञान की साधना, बीज की रक्षा और राज्य पर सही नीतियों के लिए तथा एक सामान्य राज्यव्यवस्था लाने के लिए दबाव।।
सामान्य इसलिए कि विश्व के हर राज्य में बहुसंख्यक के ही धर्म की रक्षा अधिकृत रूप से की जाती है ।
भारत विश्व का एकमात्र राज्य 75 वर्षों से हैं जहां का राज्य हिंदू समाज यानी बहुसंख्यक समाज को समाज ही नहीं मानता ।
उसे ऐसे नागरिकों का झुंड मानता है जिसे नागरिक अधिकार राज्य की कृपा से मिले हुए हैं और वह घटाएं बढ़ाए जा सकते हैं तथा छीने भी जा सकते हैं और जिसका राज्य पर कोई भी नियंत्रण नहीं है।।
परंतु साथ ही अल्पसंख्यक समाजों विशेषकर मुसलमानों और ईसाइयों को राज्य ने अल्पसंख्यक कहकर यह विशेषाधिकार दे रखा है कि वह सरकारी खजाने से अपने अपने मजहब की शिक्षा दें, यह उनका अधिकार है और उस मजहब की शिक्षा का दबाव राज्य पर डालें ।
साथ ही, भारत के नागरिकों पर अपना मजहबी दबाव बढ़ाते चले जाएं यानी भारत को क्रमशः मुस्लिम और ईसाई बनाने का काम परोक्ष रूप से सरकारी खजाने से सहयोग लेकर धड़ल्ले से किया जा रहा है और यह वह सरकारी खजाना है जिसमें 85% अंशदान हिंदुओं का है और व्यापक हिंदू समाज को इससे मानो कोई आपत्ति ही नहीं है। ऐसी परंपरा बन गई है ।
दल आपस में एक दूसरे की पोल खोल कर हिंदुओं को अपनी ओर करते रहे हैं परंतु नीति के स्तर पर जो काम नेहरू ने किया ,जो काम इंदिरा ने किया, जो काम राजीव गांधी ने किया ,जो काम अटल जी ने किया ,वही काम मोदी जी कर रहे हैं ।
अल्पसंख्यकों के बच्चों को विशेष शिक्षा ,विशेष सुविधा, शासन में जाने के लिए विशेष अवसर सुलभ कराने के लिए विशेष शिक्षण और प्रशिक्षण :-
यह काम मोदी जी और योगी जी भी उतने ही उत्साह से कर रहे हैं जितने उत्साह से नेहरू जी इंदिरा जी राजीव जी करते थे ।
यहां में विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसे देशघातियों की कोई बात नहीं कर रहा यद्यपि राजीव गांधी को हटाकर विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसे कुल कलंक को प्रधानमंत्री बनवाने में संघ और भाजपा के लोगों की परोक्ष भूमिका रही है और वही भूमिका निर्णायक रही है ।
यह मेरी जानकारी के अनुसार समकालीन भारत की चिंता योग्य दशा है।
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