Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

बस जरूरत है एक सकारात्मक सोच की

बस जरूरत है एक सकारात्मक सोच की

✍️ वेद प्रकाश तिवारी
एक शादीशुदा बेटी को एक सच्चे मित्र की तरह अपनी मां से सलाह की जरूरत होती है लेकिन जब मां सलाह देने के साथ-साथ बेटी की गृहस्थी में हस्तक्षेप करने लगे तो बेटी का घर उजड़ते देर नहीं लगती । बेटी का रिश्ता बहुत ही प्यारा रिश्ता है और हर माँ की चाह होती है कि उसकी बेटी ससुराल में खुश रहे, इसीलिए मां बेटी को प्रारंभ से ही अच्छे संस्कार देती है पर समय के साथ-साथ माताओं की इस सीख में भी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। आज अधिकतर घरों के टूटने की वजह लड़की के अभिभावकों का उसकी गृहस्थी में हस्तक्षेप और उनके द्वारा दी जाने वाली गलत शिक्षा है। बेटी के लिए चिंता करना तो हर मां का फर्ज है। बेटी चाहे विवाहित हो या अविवाहित, उसके सुख-दुख में उसका साथ देना हर माता-पिता का कर्तव्य होता है, अगर ससुराल वाले उनकी बेटी के साथ गलत व्यवहार करें।
अगर उनकी बेटी गृहस्थी में खुश है, उसे अपने पति-ससुराल वालों से कोई शिकायत नहीं तो मां का फर्ज यही है कि वह बेटी और उसके ससुराल वालों के रिश्ते को मजबूत बनाएं। उसे अच्छी सीख दें। उस रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए सकारात्मक भूमिका निभाएं।
शादी में लिए जाने वाले सातों वचन, वैदिक मंत्रोच्चार के बीच अग्नि के फेरे, बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद, पितरों का आशीर्वाद यह सभी सुखद वैवाहिक जीवन के लिए जरूरी है। परंतु यह सारी चीजें तब बेकार हो जाती हैं जब अपने निहित स्वार्थों के लिए कोई मां अपनी ही बेटी को अनावश्यक रूप से उसकी छोटी-छोटी बातों पर उसे गलत सलाह देती है । उसे अपने ही ससुराल के लोगों से हिंसा करने, छोटी-छोटी बातों के लिए अपने ही परिवार के लोगों से बदला लेने के लिए उकसाती है । जिसकी वजह से बेटी न सिर्फ शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी बीमार हो जाती है। इर्ष्या, क्रोध ,अहंकार घृणा आदि विकारों से उसका मन भर जाता है , जो एक वैवाहिक जीवन को तबाह करने के लिए बहुत है ।
मैंने अपनी आंखों से अपने एक मित्र विवेक के परिवार को देखा है जहां उसकी मां अपनी ही बहू के द्वारा उसकी मां के इशारे पर दी गई प्रताड़ना की वजह से मानसिक रूप से बीमार रहने लगती है और एक दिन प्राण त्याग देती है। विवेक के घर की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी। वह दिल्ली में एक कंपनी में काम कर रहा होता है और चार -छह महीने में एक बार 15 दिन की छुट्टी में वह घर आता है। उसके पास 3 साल की एक बेटी भी होती है । जिसकी देखभाल उसकी माँ ही करती है । मां की मौत के बाद जब वह घर आता है तो उसे सारी सच्चाई का पता चलता है। विवेक की मां ने उसे बहू के बारे में या उसके द्वारा दी जा रही तकलीफों के बारे में उसे कभी नहीं बताया था । वह क्षुब्ध हो जाता है और अपनी पत्नी से सारे संबंध तोड़ लेता है । कुछ अंतराल के लिए उसकी पत्नी बेटी को लेकर मायके कोलकाता चली जाती है और वहीं से विवेक को धमकी देने लगती है कि मैं तुम पर मुकदमा कर दूंगी, तुम्हारा जीवन बर्बाद कर दूंगी, मैं तुम्हें कहीं का नहीं छोडूंगी। दुर्भाग्य देखिए कुछ ही दिनों बाद एक दिन उसकी पत्नी का क्रोध की वजह से रक्तचाप बढ़ जाता है वह बीमार होती है और कुछ ही पलों में वह पैरालाइज हो जाती है । किसी माध्यम से विवेक को इस घटना का पता चलता तो वह ना चाहते हुए अपने सगे- संबंधियों के दबाव में अपनी पत्नी से मिलने उसके घर जाता है। वह अस्पताल में एडमिट रहती है जहां जाकर वह उसकी तबीयत के बारे में जानने की कोशिश करता है । जहां उसकी मां उसे डॉक्टर और नर्स के सामने अपमानित करती है और कहती है कि तुमने मेरी बेटी का जीवन बर्बाद किया है। वह अपनी सास को सच बताने की बहुत कोशिश करता है पर उसकी सास उसे अपशब्द कहने लगती है । विवेक बस इतना कहता है कि मैं किसी की बीमारी का कारण नहीं हूं । यदि आप मुझे दोषी मानती है तो मैं क्या कर सकता हूं । अब वहां और रुक पाना वह अपने लिए उचित नहीं समझता है वह अपनी सास से कहता है कि आप मेरी बेटी मुझे दे दीजिए क्योंकि आप अपनी बेटी की देखभाल करेंगी तो उस नन्ही बच्ची की देखभाल कौन करेगा । उसकी मां बीमार है तो यहां उसे असुविधा होगी । विवेक की सास आवेश में आकर कहती हैं ले जाइए अपनी बेटी । वह हॉस्पिटल से सीधे ससुराल पहुंचता है और अपनी बेटी को लेकर घर के लिए रवाना हो जाता है । हॉस्पिटल में एडमिट रहने के कुछ दिन बाद उसकी पत्नी अब बैसाखी के सहारे चलती है । किसी प्रकार वह अपने शारीरिक क्रिया- कर्म कर लेती है । विवेक अपनी बेटी को मां और पिता दोनों का प्यार देता है। उसकी परवरिश मैं कोई कमी नहीं रखता ।
इस घटना को 10 वर्ष पूरे हो गए हैं । आज उसकी बेटी 13 वर्ष की हो गई है । विवेक के पिताजी कुछ वर्ष पहले चल बसे। 2 वर्ष बाद विवेक की सास ने अपनी बेटी को विवेक के घर भेज दिया यह कह कर कि अब मेरा समर्थ नहीं है कि मैं तुम्हारा बोझ उठा पाऊं । घर आने के बाद उसे कुछ लोगों ने समझाया कि तुम अपने पति के पास जाओ उससे क्षमा मांगो तो उसका एक ही जवाब था कि मैं अपने पति से किसी भी कीमत पर क्षमा नहीं मांगूंगी जब तक मेरी मां जिंदा है तब तक मुझे कोई तकलीफ नहीं होगी। गांव के लोग बताते हैं कि कुछ दिनों तक उसकी मां जो उसके पिता के मरने के बाद पेंशन की हकदार हैं, अपने पेंशन में से कुछ रुपया कभी- कभार अपनी बेटी की अकाउंट पर भेज देती थी । इधर 5 वर्षों से उसकी मां ने मदद भेजना बंद कर दिया है। ब्रेन में ब्लड क्लोटिंग होने की वजह से एक तरफ का चेहरा पर आंखें भी खराब हो गई हैं। आज वह बेबस लाचार विवेक के घर पर ही है और विक्षिप्त अवस्था में है। गांव के लोग विवेक को फोन पर उसकी पत्नी की सारी जानकारी बताते हैं। वह कभी कभार हजार- दो हजार रुपये किसी के माध्यम से भिजवा देता है । विवेक का पड़ोसी जो उसके खेत की देखभाल करता है उसके माध्यम से दैनिक जीवन के लिए जरूरी कुछ सामान भी खरीद कर उसके लिए भिजवा देता है। मैं कभी-कभी विवेक से पूछता हूं कि सारे संबंध टूट जाने के बाद भी तू उनकी मदद करता है तो वह कहता है कि अन्न और वस्त्र देने में पात्र और कुपात्र के बीच भेद नहीं करना चाहिए । वैसे भी यह मेरा धर्म है कि वह मेरे घर में है तो उसके जीवन निर्वाह के लिए मैं उचित प्रबंध करूं। शरीर के अलावे दिमागी तौर पर भी अपाहिज हो चुकी उसकी पत्नी आज भी विवेक के प्रति कोई सम्मान का भाव नहीं रखती। विवेक अक्सर कहता है कि यदि वह मुझसे पहले गुजर गई तो मैं अपने हाथों से उसके अंतिम संस्कार भी करूंगा और यदि मैं पहले गुजर गया तो मेरी बेटी सब करेगी। आज विवेक अपनी बेटी के साथ घर से दूर रहता है ।
एक मां की वजह से उसकी बेटी का घर ऐसे उजड़ा कि आज वह कहीं की नहीं रही।आज जरूरत है ऐसे माताओं को बदलने की जो अपनी बेटी को प्रेम और विनम्रता की शिक्षा न देकर दिन-रात मोबाइल पर अपने घर में कलह पैदा करने, कटु वचन बोलने, परिवार के सदस्यों को नीचा दिखाने और अपने पति को परिवार से अलग करने की साजिस की शिक्षा दे रही हैं । कहते हैं नारी दया,करुणा ,ममता की प्रतिमूर्ति होती है फिर उनमें से कुछ महिलाएं इतनी क्रूर कैसे हो जाती है ? अपनी ही औलाद की दुश्मन क्यों बन जाती है ? मेरे सामने ऐसे कई ज्वलंत उदाहरण है । मैं बस इतना ही कहना चाहता हूं कि हम अपने बच्चों को बड़ा आदमी बनने की शिक्षा देने से पहले मनुष्य बनने का संस्कार दें । इसके लिए जरूरी है कि हम निरंतर पहले अपने आप को परखें, अपने जीवन मूल्यों को जिंदा रखें । यह याद रखें कि हमारा बीता हुआ कल ही हमारे आज के भविष्य का निर्माण करता है ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ