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रीति नीति खो गई जहां

रीति नीति खो गई जहां

टूटीं जंजीरें बंधन की
पर पूर्ण मुक्त क्या हो पाए,
अपनी संस्कृति है दूर खड़ी
कोई देख देख कर मुस्काए।।
तुम लाख जतन कर लो प्यारे
यह चकाचौंध है भरमाए,
शिक्षा का मंदिर मौन हुआ
शिशु राग विदेशी ही गाए।
हम खुश हैं गुलामी चली गई
पर जुल्मी निशानी छोड़ गए,
घायल होती रहती धरती,
वे गढ़ते रोज विवाद नए।
ओ सत्य सनातन प्यारी मां
तेरे लाल बने बदहाल यहां,
सुख स्वार्थ प्रबल इतना है कि
सब रीति नीति खो गई जहां।
© रजनीकांत।
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