देख लिया न ज्ञानवापी
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र'अणु'
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अरे ओ पापी
देख लिया न ज्ञानवापी
तुम तो करते रहे आनाकानी
यहां न होगा निरीक्षण परीक्षण
और न किसी तरह की छेडखानी
जब तटस्थ हुआ न्यायालय
तब याद आने लगी सबको नानी
बिना समय गंवाए कर आपाधापी
ओ तेरा मुगल
करता रहा मेरे देश समाज से छल
और तुम सब भी बहकावे में
कलाबाजी दिखाता उछल-उछल
कभी परीणाम न भांपी
ये देश चलता है संविधान से
न कि फतवा,कुरान,अजान से
और तुमसब जानते हुए भी
चुपचाप बैठा रहा अंजान से
कभी जन भावना न नापी
आज कह रहा हर ईट और पत्थर
कि तुमने जमींदोज किया था शंकर
सामने बैठा नंदी रहा प्रतीक्षारत
एक दिन मिलेगा इनसबको उत्तर
क्यों आस्था मिनार से थी ढांपी
जो कलतक झूठ परोसते रहा
आज उसने भी यही कहा
जो है सच्चाई झूठलाओ मत भाई
और ये बात सुन तेरी रुह कांपी
अरे ओ पापी
देख लिया न ज्ञानवापी
ये बात तो मानता है खुद
बस चौदह सौ साल हीं है मेरा वजूद
फिर भी सब नकारता रहा
दिखा अपनी खौफ कर उछलकूद
लगाकर सब तरफ जान जी
अरे ओ पापी
देख लिया न ज्ञानवापी
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