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दिनकर के परशुराम और जाति भेद

दिनकर के परशुराम और जाति भेद


"जियो, जियो ब्राह्मणकुमार! तुम अक्षय कीर्ति कमाओगे,
एक बार तुम भी धरती को निःक्षत्रिय कर जाओगे।"

साहित्य जगत के सिरमौर साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा "रश्मिरथी" में ये पंक्तियाँ विरचित हैं। सामान्य अर्थ में ये ब्राह्मण और क्षत्रिय के बीच अहंकार, संघर्ष और दूरी बढ़ाने के लिए पर्याप्त हैं। गुरु परशुराम अपने मेधावी शिष्य से ऐसी अपेक्षा करते हैं कि 'एक बार धरती को तुम भी क्षत्रियों से खाली कर दोगे'। है न विवाद जनक! 

आज पावन अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम का जन्म दिवस है। उनके द्वारा किए गए मानवता पूर्ण सत्कर्म के लिए उनके प्रति समस्त मानव समाज विनत है। दोनों कर जोड़कर उनको शत शत नमन। 🙏🏻

एक किंवदंती चली आ रही है कि भगवान परशुराम ने इक्कीस बार धरती से क्षत्रियों का नाश किया था। इस बात की पुष्टि कोई भी ग्रंथ नहीं करता। भगवान परशुराम के समकालीन सदैव ही अयोध्या में रघुकुल का शासन रहा और वह भी अच्छे सम्बंधों के साथ। इसी तरह क्षत्रियों के अन्य वंश भी शासन करते रहे थे। अतएव यह उक्ति पूर्णतः कलोप कल्पित है। कदाचित ब्राह्मण और क्षत्रियों को आपस में लगाने के लिए भी गढ़ी गई हो सकती है। 

दिनकर जी "रश्मिरथी" में कर्ण के माध्यम से कई बार "जाति" और "जातिवाद" पर प्रहार करते हैं। "जाति, हाय री जाति, कर्ण का हृदय क्षोभ से डोला।" ...."जाति-जाति रटते जिनकी पूँजी केवल पाखंड।" तदनंतर दिनकर जी और अधिक स्पष्ट करते हुए जाति को वैदिक आधार पर पुनः परिभाषित करते हैं-
"क्षत्रिय वही भरी हो जिसमें, निर्भयता की आग।
सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप त्याग।।"

कविश्रेष्ठ द्वारा विरचित ये पंक्तियाँ पुनः सोचने हेतु विवश करती हैं कि क्या "एक बार.........क्षत्रिय कर जाओगे" का जो अर्थ हम लोग सामान्यतः निकालते हैं, वह सही है? कदापि नहीं। मेरे बड़े भाई और मित्र श्री गणेश चतुर्वेदी जी को दिनकर जी की लेखनी पर इतना अधिक भरोसा है कि उन्होंने इन पंक्तियों का निहितार्थ अलग ढंग से खोज निकाला। उनका मानना है कि "यहाँ निःक्षत्रिय' सन्धि विच्छेद में है , जिसकी सन्धि ' विसर्जनीयस्य सः' सूत्र के आधार पर 'निश्क्षत्रिय' होगा. जिसका अर्थ 'निश्छल क्षत्रिय' से है।" इस आशय को स्वीकार करने के उपरांत सारी समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं। भगवान परशुराम का युद्ध भी "छली क्षत्रिय राजा सहस्त्राबाहु" और उसके समर्थकों से ही हुआ था। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि भीष्म पितामह जैसे अजेय क्षत्रिय योद्धा भी गुरु परशुराम के क्षिष्य थे। 

आइए, हम लोग मिलकर एक साथ भगवान परशुराम की जय बोलते हैं।

डॉ अवधेश कुमार अवध
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