धूप धूप चल जब तक
साँस ले चले साथी
अधिक और दूर नहीं ,
दिख रहा पड़ाव है।
जो भी थे मुट्ठी में
आसपास बाँटे
छाया तक अपनी बस
धरती मे साटे
समय समय बलखाता
करता बदलाव है।
वनफूलों की खुशियाँ
शूलों की दृढ़त
रेतीली चाहों की
प्रतिबंधित क्षमता
तरुओं के खुले गात
कहीं क्या हिजाब है।
थक कर हो गये परे
बंधन देने वाये
आशा से बंँधे अभी
चंदन लेने वाले
जाने यह धरती का
कैसा जुड़ाव है।
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