महाराणा प्रताप (जन्म जयंती पर शत् शत् नमन)
मरते दम तक जो झुका नहीं,जिसका स्वाभिमान ही जेवर था
वह मातृभूमि का अटल भक्त, शौर्य पराक्रम ही जिसका तेवर था
आज भी देश की माटी के कण कण में,चेतक की टाप सुनाई देती है
महावीर योद्धा महाराणा प्रताप की, खुद्दारी की बात सुनाई देती है
महाराणा तेरी धमक से ,धक धक धरती होय
जित जित चेतक मुॅ॑ह करे ,उत उत फत्तेह होय
नयनों में विजली चमके , अंधियारा हट जाय
चेतक को जो बाॅ॑ग दो,अरि धरती पर गिर जाय
उच्च ललाट भौंहें धनुष , छाती में बसे मेवाड़
एकलिंग का ध्यान कर ,कुचले मुगलों के प्राण
मातृभूमि की रक्षा हित ,आप रहे वीराने में
चित्तौड़ दुर्ग की रक्षा करने, हिचके नहीं रोटी घास की खाने में
कुछ गद्दारों ने शीश झुकाये अकबर को
पर तुम तत्पर रहे सदा शीश कटाने को
अकबर छू नहीं सका रूह कभी जिसकी
जो स्वयं नमन करता था शौर्य पराक्रम पर उसकी
दरबारी इतिहासकारों ने लिखा अकबर महान
हिंदू हृदयों में अंकित है महाराणा प्रताप महान
तलवारों से तलवारें टकरायीं .....
हल्दीघाटी में भीषण संग्राम हुआ
चपला सा जो चमक रहा था.....
प्रिय चेतक का यहीं अवसान हुआ
पराक्रमी प्रताप के प्राण बसे थे चेतक में
अतुल बली महाराणा भी समाहित हुए एकलिंग में
मुॅ॑ह छुपा लिया हो जैसे प्रखर अरुण ने.....
अंधकार सा छाया क्षण में......
मानो कटे हुए शीशों का ढेर लगा कर....
महाकाल समा गये हों काल गाल में......
हल्दीघाटी की पावन रक्तिम माटी का, हम मस्तक तिलक लगाते हैं
परम वीर योद्धा महाराणा प्रताप का, हम नित नित यशगान सुनाते हैं
भारत के वीर सपूतों, मेवाड़ की अमर कहानी अपने हृदयों में गढ़ लेना
सो जाये अगर शौर्य तुम्हारा, योद्धा परम वीर महाराणा प्रताप को पढ़ लेना
चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र"
(ओज कवि एवं राष्ट्रवादी चिंतक)
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