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संयोग-वियोग

संयोग-वियोग

             राधामोहन मिश्र माधव

क्षण भर का संयोग, क्षण में वियोग
रचा विरंचि ने  ये कैसा योग।

माया है प्रबल, न घट पाती
लालसा कभी न सिमट पाती
मोहभाव की तिमिर घोर
उभय न रखते ओर-छोर
कैसा सुयोग, कैसा कुयोग!
क्षण भर का ......

मिलन-विरह संघात सदा
क्षण भर मिलना, क्षण में ही विदा
कुछ सुखाभास, फिर दारुण दुख 
कुछ भयाक्रोश, आशा मयूख 
क्या सदुपयोग, क्या दुरुपयोग!                            
क्षण भर का.....

ऊषा उजली, फिर श्याम निशा
फिर धूप-छाँव हुई दिशा-दिशा 
बादल, वर्षा, शीतल समीर
मिल खिले हदय, कुछ के अधीर
ये कौतुक है या है दुर्योग
क्षण भर का.....

कोई एक अकेला नायक है                                       
अद्भुत कोई  संधायक है
वह शाश्वत कोई विधायक है
शेष सभी  हैं प्रतिच्छाया
पथ  में न विराम, महत हठयोग
क्षण भर का.....

साहित्यायन, कदमकुआं, पटना- 3
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