मैं और मेरी तन्हाई
तुमसे दूर रहना कातिलाना सा हो गया,
गुम हुए होश मन दीवाना सा हो गया।
हँसा देता हूं मैं लोगों को एक पल में,
मुझे मुस्कुराए हुए जमाना सा हो गया।
फिर भी शिकवा नहीं है मुझे किसी से,
खुशी देकर दर्द कमाना सा हो गया।
किया था जिससे प्यार जान से ज्यादा,
वही प्यार आज फ़साना सा हो गया।
लेटा हूं मैं आलीशान गद्दे पर लेकिन,
काँटों की सेज पर सुस्ताना सा हो गया!
स्वरचित एवं मौलिक रचना
सुमित मानधना 'गौरव'
सूरत , गुजरात।
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