माँ मेरी
उषा किरण श्रीवास्तव ,मुजफ्फरपुर , बिहार ।
वो खाट कहाँ से लाऊं
जिस पर दादी लेटा करती थी ,
घूँघट काढे तब माँ मेरी
चिलम भरकर पहुँचाती थी।
वो खाट कहाँ,,,,,,,,,,,,,,
दरवाजे पर खूँटे से बंधी
गैया आवाज लगाती थी,
घूँघट काढे तब माँ मेरी
गौ राश उन्हें पहुँचाती थी ।
वो खाट कहाँ,,,,,,,,,,,,,,,
शाम ढले जामुन गाछ तले
खेलों में बचपन खो जाता ,
घूँघट काढे तब माँ मेरी
ऑचल में छुपा ले जाती थी ।
वो खाट कहाँ से,,,,,,,,,,,,,,,
माँ डर जाती मेरे बच्चे को
कहीं नजर नहीं तो लग गई है,
घूँघट काढे तब माँ मेरी
मिर्ची, राई से निहुछा करती थी।
वो खाट कहाँ,,,,,,, ,,,,,,,,
जिस पर दादी,,,,,,,,,,,,,,,
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