परिस्थितिजन्य निर्णय का प्रतीक है परशुराम का चरित्र
(पं. आर.एस. द्विवेदी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
समाज की रक्षा का दायित्व क्षत्रियों पर था लेकिन जब वे ही अत्याचार करने लगे तो ब्राह्मण परशुराम ने उन्हंे दंड दिया। शस्त्र और शास्त्र दोनों मंे पारंगत परशुराम महर्षि भृगु के पौत्र और जमदाग्नि के बेटे थे।
भगवान परशुराम जंयती पर पूजन का शुभ मुहूर्त
भगवान परशुराम जंयती 3 मई को सुबह 5 बजे 20 मिनट से शुरू होकर 4 मई को सुबह 7 बजे 30 मिनट पर खत्म हो जाएगी।
भगवान परशुराम जंयती के दिन सबसे पहले सूर्योदय से पहले उठकर नहा लें और स्वच्छ कपड़े पहन लें। फिर पूरे घर में गंगाजल छिड़क शुद्ध कर लें। घर के मंदिर में चैकी रख उस पर कपड़ा बिछा लें और इसके बाद भगवान परशुराम की तस्वीर रख लें। इसके बाद तस्वीर पर रोली, फूल छड़ाकर फलों का भोग लगाएं। फिर भगवान परशुराम की आरती करें।
भृगु ने अपनी पुत्रवधू से वर मांगने को कहा। उनसे सत्यवती ने अपने तथा अपनी माता के लिए पुत्र जन्म की कामना की। भृगु ने उन दोनों को चरु भक्षणार्थ दिए तथा कहा कि ऋतुकाल के उपरांत स्नान करके सत्यवती गूलर के पेड़ तथा उसकी माता पीपल के पेड़ का आलिंगन करे तो दोनों को पुत्र प्राप्त होंगे। मां-बेटी के चरु खाने में उलट-फेर हो गई। दिव्य दृष्टि से देखकर भृगु पुनः वहां पधारे तथा उन्होंने सत्यवती से कहा कि तुम्हारी माता का पुत्र क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मणोचित व्यवहार करेगा तथा तुम्हारा बेटा ब्राह्मणोचित होकर भी क्षत्रियोचित आचार-विचार वाला होगा। बहुत अनुनय-विनय करने पर भृगु ने मान लिया कि सत्यवती का बेटा ब्राह्मणोचित रहेगा, किंतु पोता क्षत्रियों की तरह कार्य करने वाला होगा। सत्यवती के पुत्र जमदग्नि मुनि हुए। उन्होंने राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका से विवाह किया। रेणुका के पांच पुत्र हुए: रुमण्वान, सुषेण, वसु विश्वावसु तथा पांचवें पुत्र का नाम परशुराम था। परशुराम ने पिता की आज्ञा का पालन किया। जमदग्नि ने प्रसन्न होकर उसे वर मांगने के लिए कहा। परशुराम ने पहले वर से मां का पुनर्जीवन मांगा और फिर अपने भाइयों को क्षमा कर देने के लिए कहा। जमदग्नि ऋषि ने परशुराम से कहा कि वह अमर रहेगा। एक दिन जब परशुराम बाहर गए थे तो कार्तवीर्य अर्जुन उनकी कुटिया पर आए। युद्ध के मद में उन्होंने रेणुका का अपमान किया तथा उसके बछड़ों का हरण करके चले गए। गाय रंभाती रह गई। परशुराम को मालूम पड़ा तो क्रुद्ध होकर उन्होंने सहस्रबाहु हैहयराज को मार डाला। हैहयराज के पुत्र ने आश्रम पर धावा बोला तथा परशुराम की अनुपस्थिति में मुनि जमदग्नि को मार डाला। परशुराम घर पहुंचे तो बहुत दुखी हुए तथा पृथ्वी को अत्याचारी क्षत्रियों से हीन करने का संकल्प किया। अतः परशुराम ने इक्कीस बार पृथ्वी के समस्त क्षत्रियों का संहार किया।
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