बी.पी.एस.सी.परीक्षा का प्रश्न पत्र लिक होना और फिर परीक्षा रद्द होने का दोषी है सिस्टम और सरकार : भारतका एक ब्राह्मण.
कल दिनांक ०८/०५/२२ रविवार को बी.पी.एस.सी की परीक्षा आयोजित थी।मेरे बिहार के प्रतिभाशाली और परिश्रमी शिक्षित बेरोजगारों ने बडी आशा के साथ इस कठिन परीक्षा की तैयारी किये थे।ये सोचकर की मेरी पढाई सार्थक हो जायेगी और हम भी पढ लिखकर एक पदाधिकारी बन जायेगे।देश,राज्य और परिवार समाज का नाम रौशन करेंगें।पर हाय रे किस्मत!मेरे सारे सपनों को उनकी साजिश ने एक हीं झटके में नाकाम कर दिया।
सरकार कह रही है कि ये परीक्षा बडी मुस्तैदी और चाक चौबंद व्यस्था से ली जाती है।इसका प्रश्न पत्र जवाबदेह पदाधिकारियों के संरक्षण में रहता है।परीक्षा शुरु होने से मात्र आधा घंटा पूर्व उसका सीलबंद तोडा जाता है।जब ये प्रक्रिया हो रही होती है तो सभी लोग वहां उपस्थित रहते है।उन्हीं की निगरानी और निर्देशन में होता है।इतनी व्यवस्था और चाकचौबंद व्यवस्था में भी जब ऐसी घटना घटित होती है तो फिर सरकार, पदाधिकारी और उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्न तो उठता हीं है।आखिर कौन हैं वे लोग जो ऐसी गोपनीयता को भी इतनी सहजता और सरलता से सार्वजनिक कर दे रहे हैं।इस घटना को सरकार अपनी अस्मिता का प्रश्न बनाए और सभी दोषियों को कडी से कडी सजा दे।ताकि आने वाले समय में कोई इस तरह का दुसाहस न कर सके।
एक तो बिहार में न तो ढंग की बहाली निकलती है और न उसका समय पर रिजल्ट निकलता है।एक सरकार के कार्यालय में निकली रिक्तियां बस लालफीताशाही के कारण धरी की धरी रह जाती है।जो कुछ कोरकसर रह जाता है वह भ्रष्टाचार की भेट चढ जाता है।उस पर बयान बहादुर सरकार दिन रात घोषणा करती है कि मैंने विकास किया है।
सरकार भौतिकता की चकाचौंध में मानवियता और नैतिकता की हत्या कर रही है।प्रतिभाशाली नौजवान निराशा और कुंठा के शिकार बन रहे है।शिक्षितों के भविष्य के साथ एक साजिश के तहत खिलवाड़ किया जा रहा है।
पहले तो रिक्ति और विज्ञापन का सालो साल इंतजार करो।संयोग से यदि यह निकल गया तो फार्म भरने के लिए परेशानी झेलो।सही सलामत यदि फार्म भर लिए तो दिन रात जी तोड मेहनत करो।दिन का चैन और रात की निंद हराम कर के।परीक्षा की तिथि का इंतजार अलग से करते रहो।उपर से परीक्षा केंद्र भी सुदूर बनाया दिया जाता है।कमसे कम सौ से तीन सौ किलोमीटर दुर।जहाँ कोई ठौर ठीकाना नहीं है।आसमान छूती महंगाई के इस दौर में खर्चा भाडा के इंतजाम का दबाव अलग।यदि ये हो भी गया तो अभी और समस्या खडी है।परेशान होते होते परीक्षा केंद्र पर समय से पूर्व पहुंचे।कहीं सडक जाम के शिकार हुए तो अलग फजिहत है।उल्टे पांव लौटना और दुखदाई है।संयोग बस यदि आप परीक्षा दे देते है।नफा नुकसान का हिसाब लगाते अपना स्वप्न सजाते घर लौट रहे होते हैं ठीक आधे रास्ते में प्रश्न पत्र लिक होने की खबर आती है और पुरी परीक्षा रद्द।आप अपना कपार पीट लेते हैं कारण की पिट चुकी है आपकी भद्द।
नब्बे के दशक से हीं बिहार की शिक्षा और परीक्षा व्यवस्था अविश्वासनीयता के बुरे दौर से गुजर रही है।जो.भी नौकरी देने वाली परीक्षा है कभी उस पर भ्रस्टाचार का आरोप लगता है तो कभी प्रश्नपत्र लिक का आरोप लगता।कभी पैसा और पैरवी कभी मुन्नाभाई वाला रंग चढ जाता है।इससे सरकर को या फिर तत्संबंधी सरकारी महकमा को तो भले कोई फर्क न पडता हो पर नवजवानों पर प्रभाव पडता हीं है।ये प्रतिभा,योग्यता और आकांक्षाओं के साथ खिलवाड़ है।यहाँ के नेताओं और बडे पदाधिकारियों के बच्चे तो अपना भविष्य बना हीं लेगें।यदि बच्चे नहीं बना पाएं तो फिर उनके अभिभावक इतना बना देगें क उसे सात पीढी सोचना नहीं पडेगा।मध्यमवर्गीय परिवार का बच्चा इस विभीषिका में मारा जायेगा।
सरकार और सरकार में बैठे लोग आकंठ भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।कोई कहने देखने सुनने वाला है नही।यदि वे पकडे भी जायेगें तो कुछ नहीं होगा कारण की उन्हे सत्ता का संरक्षण जो प्राप्त है।कितना भ्रष्टाचार व्याप्त है अभी ताजा मामला झारखंड से आया।एक उच्च अधिकारी के पास नोटों का इतना जखीरा मिला है की निगरानी की आंखें फटी की फटो रह गई है।यह मामला आज भले झारखंड का हो पर वर्तमान दौर में पुरे देश का यही हाल है।सरकार और उसका सिस्टम भले शुन्य भ्रष्टाचार/अपराध का राग अलाप ले पर वह उसी में आकंठ निमग्न है।इधर देश के कर्णधार और भविष्य का स्वप्न भंग है।----------------------------------------
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