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अक्षय्य तृतीया एवं उसे मनाने का शास्त्रीय आधार

अक्षय्य तृतीया एवं उसे मनाने का शास्त्रीय आधार

वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को अक्षय्य तृतीया कहते हैं। इसे व्रत के साथ त्यौहार के रूप में भी मनाया जाता है । इस दिन महिलाएं चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन प्रतिष्ठापित चैत्र गौरी का विसर्जन करती हैं । चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया से वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया तक किसी मंगलवार अथवा शुक्रवार एवं किसी शुभ दिन पर वे हल्दी-कुमकुम का स्नेह मिलन करती हैं । अक्षय्य तृतीया का अनेक कारणों से महत्त्व होता है ।

अक्षय तृतीया’ कृतयुग अथवा त्रेतायुग का आरंभ दिन है । अक्षय तृतीया की संपूर्ण अवधि, शुभ मुहूर्त ही होती है । इसलिए, इस तिथि पर धार्मिक कृत्य करने के लिए मुहूर्त नहीं देखना पडता ।  इस तिथि पर हयग्रीव अवतार, नरनारायण प्रकटीकरण तथा परशुराम अवतार हुए हैं ।

इस तिथि पर ब्रह्मा एवं श्री विष्णु की मिश्र तरंगें उच्च देवता लोकों से पृथ्वी पर आती हैं । इससे पृथ्वी पर सात्त्विकता की मात्रा 10 प्रतिशत बढ जाती है । इस काल महिमा के कारण इस तिथि पर पवित्र नदियों में स्नान, दान आदि धार्मिक कृत्य करने से अधिक आध्यात्मिक लाभ होते हैं ।

इस तिथि पर देवता-पितर के निमित्त जो कर्म किए जाते हैं, वे संपूर्णतः अक्षय (अविनाशी) होते हैं ।

अक्षय तृतीया पर करने योग्य कृत्य 

पवित्र जल में स्नान :
 इस दिन तीर्थक्षेत्र में स्नान करना चाहिए । यदि ऐसा संभव ना हो, तो बहते जल की नदी में कहीं भी भाव रखकर स्नान करें ।

श्री विष्णु पूजा, जप एवं होम : अक्षय तृतीया के दिन सतत सुख-समृदि्ध प्रदान करने वाले देवता की कृतज्ञता भाव से उपासना करने पर हम पर उनकी कृपादृषि्ट सदा बनी रहती है । इस दिन श्रीविष्णु सहित वैभव लक्ष्मी प्रतिमा का श्रद्धा पूर्वक तथा कृतज्ञता भाव से पूजन करना चाहिए । इस दिन होम-हवन एवं जप-तप में समय व्यतीत करना चाहिए। 

अक्षय तृतीया के दिन श्री विष्णु का तत्त्व आकर्षित एवं प्रसारित करने वाली सात्त्विक रंगोलियां बनाना : इस दिन श्री विष्णु तत्त्व के स्पंदन आकर्षित एवं प्रक्षेपित करने वाली रंगोलियां बनाने से श्री विष्णु का तत्त्व ग्रहण करने में सहायता होती है।  

तिलतर्पण - तिलतर्पण का अर्थ है, देवता एवं पूर्वजों को तिल युक्त जल अर्पित करना । ‘तिल’ सात्त्विकता का प्रतीक है, तो ‘जल’, ब्रह्मांड के शुद्ध स्रोत का प्रतीक है ।
 
दान : अक्षय तृतीया पर सुपात्र दान करें ! अक्षय तृतीया पर किया हुआ दान एवं हवन अक्षय रहता है, अर्थात उनका फल अवश्य मिलता है ।

सुपात्र व्यक्ति को क्यों दान करना चाहिए ? - अक्षय तृतीया पर किए गए दान से व्यक्ति का पुण्य-भंडार बढता है । पुण्य से व्यक्ति को स्वर्ग प्राप्त होता है । परंतु भोग-भोग कर स्वर्गसुख समाप्त होने पर पृथ्वी पर पुनः जन्म लेना पडता है । मनुष्य का वास्तविक ध्येय, ‘पुण्य अर्जित कर स्वर्गसुख भोगना’ नहीं, अपितु ‘पाप-पुण्य के आगे जाकर ईश्वर को प्राप्त करना’ है । इसलिए, मनुष्य के लिए सुपात्र व्यक्ति को दान करना आवश्यक होता है ।

संत, धार्मिक कार्य करने वाले व्यक्ति, समाज में निःस्वार्थ भाव से अध्यात्म का प्रसार करने वाली संस्थाएं तथा राष्ट्र एवं धर्म की जागृति का कार्य करने वाले धर्माभिमानियों को धन अर्पित करना, सुपात्र दान है ।

मृत्तिकापूजन, मिट्टी को जैविक बनाना (केंचुआ उत्पन्न करना), बीज बोना एवं वृक्षारोपण : अक्षय तृतीया के मुहूर्त पर बीज बोएं ! ‘चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा’ तिथि स्वयं में एक शुभमुहूर्त है । इस दिन खेत जोतना और उसकी निराई का कार्य अक्षय तृतीया तक पूरा करना चाहिए । निराई के पश्चात, अक्षय तृतीया के दिन खेत की मिट्टी की कृतज्ञता भाव से पूजा करनी चाहिए । इसके पश्चात, पूजित मिट्टी को जैविक बनाकर उसमें बीज बोएं । अक्षय तृतीया के मुहूर्त पर बीज बोने को आरंभ करने से उस दिन वातावरण में सक्रिय दैवी शक्ति बीज में आ जाती है । इससे कृषि-उपज बहुत अच्छी होती है । इसी प्रकार से अक्षय तृतीया के दिन फल के वृक्ष लगाने पर वे अधिक फल देते हैं ।

हलदी-कुमकुम : स्त्रियों के लिए यह दिन महत्त्वपूर्ण होता है । चैत्र मास में स्थापित चैत्रगौरी का इस दिन विसर्जन करना होता है । इस निमित्त वे हलदी-कुमकुम (एक प्रथा) भी करती हैं ।’

संदर्भ : सनातन – निर्मित ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत’

श्री. गुरुराज प्रभु
  सनातन संस्था
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