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हत्यारा है आदमी

हत्यारा है आदमी

      ---:भारतका एक ब्राह्मण.
         संजय कुमार मिश्र'अणु'
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हत्यारा है-
आदमी
खुलेआम कह रहीहै
आज भी 
उसी की किताब 
और उसी की सरजमीं।।
अपनी हवस मे
वो अपने हीं भाई पर
पटक दिया पत्थर
जब खोया था वह 
अपनी मासूका की बांहों में
हो हर गम से अलागमी।।
लडता रहा है आपस में
छोटी-छोटी बातों पर
लेकर लावलश्कर
पाल खुद में गलतफहमी।।
पढो आदमी का इतिहास
तब होगा तुम्हें इल्म
कि आदमी ने दुनियां पर
किया क्या-क्या जुल्म
जबरदस्ती बताकर कमी।।
हत्यारा है आदमी
चाहे जाहिल हो या तालिमी।।
हत्यारा है-
आदमी।
बनकर उठा तूफान
हो अरब या अफगानिस्तान
इराक या फिर इरान
सबका मिटाकर नामोनिशान
लुटने को अस्मत
तोडने को मूर्ति
लुटने को मंदिर
और जमीं।।
हत्यारा है-
आदमी।
 हत्यारा है-
आदमी।।
आदमी का विश्वास
भुलकर मत करना
नहीं तो पडेगा एक दिन
पत्थर पर सर फोडना
कहकर हा हरामी।।
आदमी!
हत्यारा है-
आदमी।।
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