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रूप विधवा सा बनाती

रूप विधवा सा बनाती

रूप विधवा सा बनाती, अब हिन्दू घरों की बेटियाँ,
बन्धनों से आज़ादी जताती, हिन्दू घरों की बेटियाँ।
संस्कार संस्कृति का सार, हिंदुत्व का आधार क्या,
रिश्तों का संसार बिसराती, हिन्दू घरों की बेटियाँ।

फ़ैशन की दौड़ में, ये सबसे आगे दौड़ती,
पश्चिमी सभ्यता को, अपने पीछे छोड़ती।
अर्द्ध नग्न घूमना, आधुनिकता का प्रयाय,
मर्यादाओं को तार तार, रिश्तों को रौंदती।

बिन विवाह संग रहना, नारी मुक्ति पहचान बताती,
देर रात तक घर से बाहर, समानता अधिकार जताती।
भ्रुण हत्या- मातृत्व से मुक्ति, यह कैसी आज़ादी है,
उन्मुक्त यौन सम्बन्धों पर, नारी शक्ति आभास कराती।

अ कीर्ति वर्द्धन
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