पाकिस्तान ने अपने दोस्त को फंसाया
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
- बलूचिस्तान की खनिज सम्पदा का पाकिस्तान कर रहा था दोहन तब बलूचों ने किया हिंसक विरोध
- पाकिस्तान ने चीन को खनन सौंपकर बलूचों से भिड़ा दिया
पाकिस्तान की यह फितरत कोई नयी नहीं है लेकिन अमेरिका और कुछ मुस्लिम राष्ट्र अभी यह नहीं समझ पाए हैं। भारत तो इसका भुक्तभोगी है। हमने अपने छोटे भाई की तरह ही हर प्रकार की मदद की लेकिन पाकिस्तान हाथ मंे छुरा लेकर ही खड़ा मिला। दक्षिण एशिया का बड़ा देश चीन कूटनीति के तहत ही सही पाकिस्तान को अपना इस क्षेत्र का दोस्त समझता है। इसी के चलते कई बार चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद मंे बीटो का प्रयोग किया लेकिन पाकिस्तान ने इस सबके बदले चीन को इतना बड़ा धोखा दिया है, जिसे अब चीन समझ पाया है लेकिन उसके पांव इतना ज्यादा आगे बढ़ गये हैं कि अब पीछे नहीं हो सकते। दरअसल, पाकिस्तान ने बड़ी सोची-समझी रणनीति के चलते चीन से बलूचों को भिड़ा दिया है। बलूचिस्तान खनिज सम्पदा का बड़ा भंडार है। यहां के लोग स्वाधीनता की मांग तो 40 के दशक से ही कर रहे थे लेकिन जब पाकिस्तान ने यहां के खनिज भंडार का दोहन करना शुरू किया तब बलूचिस्तान के लोग हिंसा पर उतर आये। पाकिस्तान यह देखकर डर गया। इसी के बाद पाकिस्तान ने बड़ी होशियारी से बलूचिस्तान में खनिज दोहन का काम चीन को सौंप दिया। इसके बाद बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान को छोड़कर चीन के दुश्मन बन गये। अभी हाल मे करांची विश्वविद्यालय परिसर मंे बम विस्फोट से कई चीनियों की हत्या की कड़ी इसी स्वार्थपरता की कहानी बताती है। चीन भी समझ गया है और उसने पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि उसके नागरिकों की सुरक्षा मंे कोताही हुई तो कठोर कदम उठाए जाएंगे।
बलूचिस्तान आकार के हिसाब से पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है, लेकिन बंजर पहाड़ी इलाका होने की वजह से आबादी के हिसाब से देश का सबसे छोटा राज्य है। जब भारत दो टुकड़ों में बंटा, तब भी बलोच लोगों ने अपने लिए अलग देश की मांग की थी लेकिन तब उनकी बात नहीं सुनी गई। कहा जा सकता है कि बलूचिस्तान अपनी आजादी के लिए 70 सालों से ज्यादा समय से उबल रहा है। चीन ने जब से इस प्रांत पर नजरें गड़ाकर इस इलाके के संसाधनों का अनुचित रूप से दोहन शुरू किया, तब से वो भी निशाने पर आ गया। कहा जाता है कि बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों के लिए प्रचुर तौर पर धनी है। यहां पाकिस्तान की सबसे बड़ी प्राकृतिक गैस फील्ड है। सोने जैसी कीमती धातुओं की खान है। हाल के सालों में यहां से सोने के अयस्कों का उत्पादन खूब बढ़ा है। कुल मिलाकर पाकिस्तान का ये ऐसा राज्य है, जहां खूब खनिज संपदा है।
बलूचिस्तान की सीमा उत्तर में अफगानिस्तान से और पश्चिम में ईरान से सटी हुई है। इसकी एक लंबी तटरेखा भी है जो अरब सागर से सटी हुई है। बलूचिस्तान के लोग उनके इलाके से इन संसाधनों को निकालने का विरोध करते हैं। पहले तो उनका विरोध पाकिस्तान से था लेकिन जबसे पाकिस्तान ने चीन को कुछ खनिजों के दोहन की अनुमति दी है, तब से यहां काम करने वाले चीनी उनके निशाने पर हैं। बलूचिस्तान में चीन की मुख्य परियोजनाओं में शामिल है ग्वादर का बंदरगाह। होर्मुज जलसंधि के पास स्थित यह बंदरगाह सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। होर्मुज जलसंधि अरब सागर में तेल की आवाजाही एक बेहद महत्वपूर्ण मार्ग है। पिछले साल बीएलए ने ग्वादर बंदरगाह पर काम करने वाले चीनी इंजीनियरों पर हमला किया। इस समय चीन के लिए पाकिस्तान में उसके नागरिकों की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बन गई है।
गत दिनों कराची यूनिवर्सिटी में एक भयानक आत्मघाती विस्फोट हुआ। निशाने पर चाइनीज नागरिक। कम से कम 11 चीनी मारे गए। आत्मघाती बम के तौर पर इस्तेमाल होने वाली एक पढ़ी लिखी महिला थी जो बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी की सदस्य थी। इस संगठन ने इस वारदात की जिम्मेदारी भी ले ली। बलूचिस्तान में कई अलगाववादी समूह हैं लेकिन सबसे बड़ा और सबसे असरदार संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी है। इसका नेतृत्व पहले बलाच मर्री करते थे जो अफगानिस्तान में 2007 में मारे गए थे। इसके बाद बीएलए ने अपनी गतिविधियों को तेज कर दिया। अब इस संगठन का नेता बशीर जेब बलोच कर रहे हैं। बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी ने पाकिस्तान की सारी हेकड़ी निकाल दी है। पाकिस्तान के कब्जे वाले राज्य बलूचिस्तान की आजादी की मांग करने वाली इस आर्मी ने सरकार और सेना के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष तो लंबे समय से छेड़ रखा है। इनके पास हजारों लड़ाके हैं और बड़ी संख्या में हथियार भी। कराची में आत्मघाती विस्फोट में चीनियों की मृत्यु हुई, उससे लगता है कि बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के पास अब खतरनाक आत्मघाती दस्ता भी है, उसे ये ट्रेनिंग कहां से मिली होगी, इसे लेकर ये कयास लगाए जा रहे हैं कि हो सकता हो कि उन्होंने लिट्टे से अपना संपर्क बना लिया हो। पाकिस्तानी सरकार और सेना जितना बलूचिस्तान और वहां की आवाम को दबाने, सताने और अत्याचार के काम करती है, उतना ही ताकत से बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी उसका विरोध करती है। माना जाता है कि 1947 में बलूचिस्तान को जबरन पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया, तभी से बलूच लोगों का पाकिस्तान की सरकार और वहां की सेना से संघर्ष चल रहा है। पाकिस्तान की सरकार और वहां की आर्मी इस विरोध को बेदर्दी से कुचलती रही। इसी के प्रतिरोध में 70 के दशक में बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी का गठन हुआ। जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार के खिलाफ बलूच लोगों ने सशस्त्र विद्रोह कर दिया लेकिन इसके बाद सैन्य तानाशाह जियाउल हक के पाकिस्तान पर कब्जे बाद बलूच लोगों का विद्रोह काफी हद तक शांत हो गया था। पाकिस्तान के कब्जे वाला बलूचिस्तान प्राकृतिक तौर पर काफी संपन्न इलाका है। यहां की धरती खनिज संपदा से भरी पड़ी है। पाकिस्तान यहां की खनिज संपदा का दोहन करके पैसे बना रहा है लेकिन बलूचिस्तान के विकास की तरफ कभी ध्यान नहीं देता। यहां के लोग अब भी बेहद गरीबी में जी रहे हैं। जबकि यहां तेल, गैस, तांबे और सोने जैसे कुदरती संपदा की भरमार है। बलूच लोग सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से पाकिस्तान के बाकी हिस्सों से काफी अलग हैं। वो खुद को पंजाबियों के हाथों शोषित मानते हैं। पाकिस्तान की आर्मी वहां के लोगों को अपना निशाना बनाती रहती है। जिसका बलूच विरोध करते हैं। भारत ने बलूचिस्तान की दिक्कत पर संयमित रूख रखा है। बलूचिस्तान की तरफ से लड़ने वाले कमांडर फर्जी नाम पते से भारत का मेडिकल ट्रीटमेंट लेते रहे हैं। पाकिस्तान आरोप लगाता है कि भारत बलूचिस्तान में सशस्त्र विद्रोह में मदद कर रहा है जबकि भारत बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के हनन पर चिंता जताता आया है। बलूच लोगों को वहां की आर्मी की हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है, उस पर भारत ने चिंता जताई है। बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी के ज्यादातर नेता निर्वासित जीवन जी रहे हैं। पाकिस्तान उन्हें परेशान करता रहा है। हालांकि इसके बावजूद बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी के हौसले पस्त नहीं पड़े हैं। इस आर्मी के जवानों ने पाकिस्तान को सबक सिखाने की कसम खा रखी है।
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