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मैं और मेरी चाय

 मैं  और  मेरी  चाय 

सुमित मानधना 'गौरव', सूरत
कप हाथ में ले चाय की चुस्की लेते,
दोस्तों के साथ महफिल हम जमाते ।

लंबी-लंबी छोड़ कर लड़ाते थे गप्पे  ,
चाय की टपरी पे आधी जिंदगी बिताते।

टांग खींच कर  उनकी खूब करते मस्ती,
पता ही नहीं चलता कब  घंटों बीत जाते।

खुद की सुना कर सुनते थे दोस्तों की , 
मजाक से ही अपना मन हल्का करते।

यारों के साथ इतने  हो जाते मशरूफ,
खुशी बांट कर औरों का गम भुलाते।

इसी तरह बस हल्का करते थे मन,
यारों को कसकर गले हम लगाते। 

कल फिर मिलेंगे 'सुमित' इतना कह पाते,
सब अपने अपने घर को थे चले जाते।

सुमित मानधना 'गौरव', सूरत।
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