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कभी भी पुरानी नहीं होने बाली दिव्य रश्मि:-डॉ. अजित कुमार पाठक

कभी भी पुरानी नहीं होने बाली दिव्य रश्मि:-डॉ. अजित कुमार पाठक

देश के पत्र पत्रिकाओं की भीड़ में अलौकिक रश्मि से देदीप्यमान दिव्य रश्मि आठ वर्ष का हो गया यह जान कर काफी प्रसन्न हूँ मैं | कभी भी पुरानी नहीं होने बाली हमारी यह पत्रिका सदैव पठनीय, एवं संग्रहणीय है| धर्म , शिक्षा,एवं महापुरुषों की बारे में इतनी नयी नयी जानकारियाँ इसमें रहती है जिससे यह भीड़ से आप अलग दिखाई देता है| हिन्दू धर्म के ब्रत,त्यौहार,विधि,बिधान,के साथ सांगोपांग विशद व्याख्या जितनी दिव्य रश्मि में मिलती है उतनी किसी अन्य पत्रिकाओं में नहीं मिलती है | मैं दिव्य रश्मि का प्रथम अंक से पाठक रहा हूँ | अगर आप इसका सम्पादकीय ही पढ़ लें तो इसका स्तर आपको मालूम पड़ जायगा | सबसे प्रमुख इस पत्रिका की विशेषता है कि दुर्गा पूजा के समय माँ दुर्गा के बारे में और उनकी आराधना की पूरी पद्दति, सरस्वती पूजा ,होली ,शिवरात्रि ,दिवाली के समय भी इन सब के बारे में विशद व्याख्या आपको और कहीं नहीं मिलेगा | अगर हम ये कहें की दिव्य रश्मि सालों भर विशेषांक ही छापता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी | नियमित समय पर पाठकों के हाथ में मिल जाना इसको और विशेष बना देता है | हिन्दू देवी देवताओं एवं महा पुरुषों के चित्र कवर पृष्ठ पर रहने से इसकी आभा और भी निखर जाती है | भारतीय चिकित्सा पद्धतियों, ऋषियों-महर्षियों सहित हमारी सभ्यता संस्कृति को बताने बाले लेखों को प्रकाशित किया जाये तो औरचार चाँद लग जायेगा |
दिव्य रश्मि की इन सब विशेषताओं के लिए पत्रिका के संपादक सहित पूरा दिव्य रश्मि परिवार बधाई का पात्र है | उत्तरोत्तर हमारी दिव्य रश्मि पुरे देश में खूब अपनी रश्मि फैलाये यही मेरी कामना है | डॉ. अजित कुमार पाठक
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