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मुख्य समाज के विरुद्ध राजनैतिक युध्द:-रामेश्वर मिश्र पंकज

मुख्य समाज के विरुद्ध राजनैतिक युध्द:-रामेश्वर मिश्र पंकज

जो शासक और जो अधिकारी इन दिनों भी आर्य आक्रमण सिद्धांत पढ़ रहे हैं, पढ़ा रहे हैं या पढ़ाने दे रहे हैं ,

उन्हें केवल यूरोपीय बुद्धि का दास कहना उचित नहीं है क्योंकि स्वयं यूरोप में आर्य आक्रमण सिद्धांत पर कोई भी विश्वास नहीं करता ।।


आर्य अक्रमण सिद्धांत दुष्ट ईसाइयों ने 19वीं शताब्दी ईस्वी में परिकल्पित किया और बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उसे सभी ने पूरी तरह त्याग दिया है क्योंकि वह भाषा वैज्ञानिक सिद्धांत था और भाषा विज्ञान के द्वारा आर्य आक्रमणपरिकल्पना का आधार ही खंडित हो गया ।
दूसरे,
सरस्वती नदी की खोज के बाद आर्य आक्रमण सिद्धांत के बारे में गढ़ी गई सभी गप्पे झूठी साबित हो गई ।।


इसलिए अब जो आर्य आक्रमण सिद्धांत पढ़ रहे हैं, पढ़ा रहे हैं और पढाने दे रहे हैं ,वह कोई बौद्धिक रूप से गुलाम लोग नहीं है बल्कि वे अत्यंत दुष्ट हैं और उस दुष्टता का स्वरूप यह जानना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने मूलनिवासी अधिकार घोषणा पत्र जारी किया है, उसके अंतर्गत आर्य आक्रमण सिद्धांत का प्रचार करने का अर्थ है कि जो लोग गैर आर्य यानी अनार्य सिद्ध हो जाएं, उनको ही भारत के मूलनिवासी माना जाएगा और सभी आर्यों को बाहर से आया हुआ माना जाएगा और यह झूठ जबरदस्ती जबरपेली के साथ जब स्वयं सरकार के स्तर पर स्थापित किया जाएगा तो संयुक्त राष्ट्र संघ उसे ही मान लेगा।।


इस प्रकार शासकों के द्वारा भारत के बहुसंख्यक समाज को यहां का बाहरी समाज बता कर कुछ समूह और कुछ जातियों के पक्ष में लिया गया यह राजनीतिक निर्णय है जो भारत के मुख्य समाज को भारत से बेदखल करना चाहता है अथवा उसे सदा दबाकर रखना चाहता है।।
तथाकथित मूल निवासियों के अधीन रखना चाहता है और इस प्रकार भारत को खंड खंड देखना चाहता है।। इसलिए आर्य आक्रमण सिद्धांत को पढ़ने देने वाले ,पढ़ाने की अनुमति देने वाले और पढ़ाने वाले -
सभी लोग भारत के मुख्य समाज के प्रति शत्रु भाव के पोषक हैं और उसके विरुद्ध राजनीतिक युद्ध में रत हैं यह माना जाएगा।। उस सिद्धांत को पढ़कर जो युवक युवतियां निकलेंगे ,वे सब जाने या अनजाने भारत के मुख्य समाज के शत्रु हो जाएंगे ।
वह भारत के मुख्य समाज को कमजोर करेंगे और जैसा घटाटॉप भारत में है, मुसलमान और ईसाई बाहर से आए हुए हैं तब भी उनको वह लोग ताकतवर बनाएंगे, शक्ति पहुंचाएंगे और मुसलमान ईसाई और दलित वादी मिलकर इन सब अफसरों के साथ और ऐसे नेताओं के साथ भारत में शासन करना चाहते हैं तथा शेष मुख्य समाज को दबाकर रखना चाहते हैं।।


यह आर्य आक्रमण सिद्धांत को पढ़ाने पढ़ने और पढ़ने देने का अर्थ होता है।
इसमें बौद्धिक अधीनता या दासता जैसी कोई चीज नहीं है ।
यह स्पष्ट रूप से राजनीतिक युद्ध हैं और राजनीतिक शत्रुता है ।।
भारत के मुख्य समाज से राजनीतिक शत्रुता रखने वाले और भारत के मुख्य समाज के विरुद्ध राजनीतिक युद्ध छेड़ने वाले लोग ही आर्य आक्रमण सिद्धांत की पढ़ाई पढ़ाए जाने देते हैं ,पढ़ाते हैं और पढ़ने देते हैं।।
दुर्भाग्यवश अभी के सारे ही दल जिसमें भारतीय जनता पार्टी भी शामिल है, इस भयंकर सिद्धांत को पढ़ाए जाने दे रही है और इस तरह भारत के मुख्य समाज के विरुद्ध जाने-अनजाने राजनीतिक युद्ध का पोषण और समर्थन तथा संरक्षण कर रही है।।
यह अच्छी तरह जान लेना चाहिए ।।
क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ के मूलनिवासी अधिकार घोषणा पत्र पर भारत सरकार के प्रतिनिधि ने भी हस्ताक्षर कर रखे हैं और यहां भारत सरकार स्वयं भारत के मुख्य समाज को बाहरी और अपने को अनार्य सिद्ध करने वाले या अनार्य कहने वाले या अनार्य होने का दावा करने वाले समूहों को यहां का मूल निवासी मान रही है ,बता रही है, पढ़ा रही है ,लिख रही है और तदनुसार नीतियां बना रही है।।


इस भयंकर स्थिति को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।।


इसीलिए मैंने लिखा है कि समय बदलने के साथ संदर्भ बदल जाते हैं।
आज से पहले,सन 2000 तक आर्य आक्रमण सिद्धांत को पढ़ाया जाना एक विवादास्पद विषय मात्र था जिस पर विवाद हो सकता था।।


मूलनिवासी अधिकार घोषणा के बाद आर्य आक्रमण पढ़ाया जाना अनार्यों को भारत के मूलनिवासी बताना और आर्यों की सभी संतानों को भारत से खदेड़े जाने ,
या खदेड़े जाने के आतंक के अधीन विवश होकर दबकर रहने ,
को बाध्य करने की राजनीतिक योजना का अंग है।।


समय बदलने के साथ आर्य आक्रमण सिद्धांत को पढ़ाए जाने का संदर्भ और अर्थ बदल गया है ।


तमस को त्याग कर इसे मुख्य समाज के विरुद्ध राजनीतिक युद्ध की तरह देखना चाहिए।।
मूल निवासियों के अधिकारों संबंधी संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र के उपरांत भारत के विरुद्ध सक्रिय शक्तियों ने भारत में अनुसूचित जातियों और जनजातियों को ही मूलनिवासी प्रमाणित करने का अभियान छेड़ कर शेष सब हिंदुओं के विरुद्ध व्यापक अभियान छेड़ दिया है।


इसके लिए नितांत अप्रामाणिक ,अनैतिहासिक, कूट रचित ,जालसाजी और फरेब से भरपूर दस्तावेज तैयार किए जा रहे हैं और अनेक संस्थाएं इसके लिए सक्रिय हैं।


आपको यह यदि नहीं पता है तो आप सचमुच किसी पीड़ित समूह की वास्तविक शिकायत मानकर निश्चिंत बैठे रहेंगे ।
ऊपर से पहले कांग्रेस शासन और फिर अब मोदी शासन ने अनुसूचित जातियों को झूठी शिकायतें करने का विशेष अधिकार इस रूप में दे दिया है कि शिकायत होते ही आरोपी को हवालात में बंद कर दिया जाएगा और जेल भी भेजा जा सकता है।


जिससे यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहज ही अभिलेखीय प्रमाण सुलभ हो जाएगा कि वास्तव में भारत में व्यापक हिंदू समाज ने अनुसूचित जातियों के साथ भीषण अन्याय किया ।ऐसा अन्याय किया जो विश्व में यूरोपीय लोगों ने कभी भी नहीं किया ।।


इस प्रकार का महा झूठ प्रचारित हो जाएगा और मोदी सरकार तथा विविध हिंदू संगठन इसे हिंदुओं की जाति व्यवस्था या अन्य किसी परंपरा और व्यवस्था के सर पर आरोप मढते रहेंगे ।


आरोप की और कोई कीमत नहीं है सिवाय इसके कि अपने को दलित कहने वाले समूहों का स्वयं को मूलनिवासी बताकर शेष हिंदू समाज को बाहरी बताने का अभियान जारी रहेगा और तथाकथित हिंदू संगठन वस्तुतः इन झूठे मूल निवासियों के सच्चे मित्र सिद्ध हो जाएंगे और इस प्रकार शायद व्यक्तिगत रूप से संगठनों के सदस्य इन लोगों की कृपा से बाद में कुछ अधिकार पा जाएं परंतु हिंदू समाज का तो यह विनाश ही कर डालेंगे ।।


ऊपर से यह प्रचार जोरों से है कि जाति की बात मत करो ,केवल हिंदुत्व की बात करो।
जिससे और भी अभिलेखीय साक्ष्य हो जाएगा कि जाति कोई बड़ी भयंकर चीज है जो हिंदू समाज में जाने कब से मूल निवासियों का शोषण करने के काम आती रही है।


ऐसी मूर्खतापूर्ण और तामसिक सोच और जाति घातक, देश घातक तथा राष्ट्र घातक विचार कार्य रूप में करते हुए यानी फैलाते हुए हिंदू समाज की जड़ों पर चोट करने वाले समूह स्वयं को हिंदू संगठन कहते लजाते भी नहीं।
और अनेक उच्च कहीं जाने वाली जातियों के सदस्य अपनी मूर्खता बस इन हिंदू संगठनों के इन हिंदू घाती प्रचार का और हिंदू घातक प्रावधान का पक्ष लेते रहते हैं


रोने के लिए तो कहा जा सकता है कि लगता है हिंदुओं के विनाश के दिन आ गए और उस विनाश में बहुत बड़ी भूमिका जाति की दिन-रात निन्दा करने वाले हिंदू संगठन और उनके सदस्य ही निभाएंगे ।।


परंतु रोना तो कायरों का काम है और नपुंसक लोगों का काम है ।


आप यदि नपुंसक और कायर नहीं है तो अपने स्तर पर सजग होकर सक्रिय हो जाइए ।।


जाति के विरोधी को यदि दो थप्पड़ या दो जूते नहीं लगा सकते तो उससे हाथ जोड़कर कहिए कि हम आपसे बातचीत नहीं करना चाहते ।।


और जाति का आत्म गौरव स्थापित कीजिए जो कि समाज और राष्ट्र के आत्मगौरव का अभिन्न अंग है ।सहज अवयव है ।


और दलित वाद की विदेशी जड़ों को ,भारत द्रोह को पहचान कर सजग होइए।
और संयुक्त राष्ट्र के मूल निवासी अधिकार घोषणा पत्र का लाभ उठाने की उनकी तत्परता को पहचानिए और तब इस दिशा में अनेक ऐसे कार्य सहज ही हो सकते हैं और वह इस मूलनिवासी अधिकार घोषणा पत्र के आधार पर भी हो सकते हैं ,वह हमारे पक्ष में जा सकते हैं ,अगर आपकी बुद्धि सजग और सक्रिय हो ।।


उसके लिए सर्वप्रथम तो यह आवश्यक है कि आत्म गौरव का भाव रखिए ।।
अपनी अपनी जाति पर गौरव रखिए और समाज के विरुद्ध अपनी जाति के भीतर एक भी शब्द कहने की किसी को अनुमति नहीं दीजिए।
जो जो हिंदू समाज की निंदा करता है ,वह किसी भी जाति का व्यक्ति नहीं है।
वह कुल द्रोही,जाति द्रोही ,समाज द्रोही और इसलिए राष्ट्र द्रोही है ।।


अपनी जाति या किसी भी जाति की कभी भी निंदा नहीं कीजिए ।
दुष्टों को मार भगाइये या उनसे दूर रहिए।।


जातिव्यवस्था हिंदू समाज का सहज अंग है और सहज इकाई है ।।वह किसी भी अन्याय का माध्यम नहीं है।


परंतु किसी भी माध्यम से अन्याय करने वाला अन्याय कर सकता है ।।
अतः अन्याय का समर्थन किसी भी स्तर पर नहीं कीजिए और अन्याय दूर करने के नाम पर जिस संस्था और परंपरा को अन्याय रहित बनाना है ,उसे ही नष्ट करने का जड़ बुद्धि वाला काम मत करिए।।


अपने समाज को शक्तिशाली बनाने के लिए आप मूल निवासी अधिकार घोषणापत्र का अपने पक्ष में उपयोग कर सकते हैं ।।


यह बहुत सरल है।।


परंतु सर्वप्रथम अपना आहार विहार अर्थात अपना अपना सात्विक और श्रेष्ठ भोजन भजन और दिनचर्या को सुरक्षित रखें तथा अपनी मान्यताओं पर टिके रहिए।
उन पर गौरव रखिए।।


सभी द्विज यज्ञोपवीत संस्कार अवश्य करें ।।


वेद पाठ करना सबके वश का नहीं है।
परंतु वेद पाठ कराएं और सुनें। स्वयं करने के चक्कर में न पड़ें ।।


इसके साथ ही शास्त्रों को पढ़ें और काव्य पढ़ें ।


उनकी प्रतिष्ठा करें।
पूजा तिलक चंदन आदि सभी कर्मकांड अनिवार्य रूप से करें ।।


जितना हो सकता है उतना करें ।
संस्कृत अवश्य सीखें और उसका अधिक से अधिक प्रचार करें और संस्कृत पर गर्व करें ।।


क्योंकि मूलनिवासी अधिकार घोषणा पत्र के अनुसार यह सब मूलनिवासी होने की अनिवार्य निशानियां है, लक्षण है ,पहचान है ,गुण है।।


यही आप का आधार है।
इसे कायम रखें ।।


पापी राजनीतिज्ञों ने इन चिन्हों को तोड़ने का अभियान चलाया ।


जनेऊ तोड़ने का अभियान चलाने वाले राजनेता समाज के प्रति अनजाने ही अपराधी हैं ।
उनके प्रति उदार क्षमा भाव रखिए ।परंतु उनको कोई महान व्यक्ति मत मानिए ।।
इस विषय में वे मूर्ख थे।
उनके अनुसरण में आप ने कभी जनेऊ त्याग दिया हो तो पुनः धारण कीजिए। आवश्यक संस्कार संपन्न करके धारण कीजिए ।।


तिलक आदि लगाना आरंभ कीजिए।
और उत्सवों और अवसरों पर अपने परिधान अवश्य पहनिए।
अपनी नीतियों और कर्म कांडों को सुरक्षित रखें और आप में से जो अधिक मेधावी और विद्वान या बुद्धिमान हैं ,वह संसार के विषय में और अधिक जाने तथा जानकर अपनी निजी संस्था या निजी दुकान न चलाएं बल्कि समाज को उन सब की जानकारी दें।
समाज को जानकारी देते हुए और समाज के हित में काम करते हुए अगर अपनी दुकान भी चला रहे हैं, अपना कोई संगठन आदि चला रहे हैं तो उसमें भी कुछ भी अनुचित नहीं।।


लेकिन कोई भी संगठन हिंदू संगठन या ब्राह्मण संगठन या किसी भी नाम से यदि भारत की आधारभूत इकाई यों को यानी कुल समूह ,जाति, खाप,संप्रदाय ,मेडी, आदि की निंदा करे तो उसे रोकिए।।
अपने अपने क्षेत्र में भागवत महापुराण आदि सुननाचाहिए।
स्थानीय स्तर पर प्रचलित शास्त्रों और काव्यों को सुनना, श्रद्धा पूर्वक उनके सुनने का आयोजन करना, दान दक्षिणा और भंडारा ,अन्न सत्र आदि का आयोजन करना :-
यह सब जारी रखेंगे तो आप का मूल निवासी होना सहज सिद्ध होगा और दुष्ट दलित वादी आपको नष्ट करने की पापपूर्ण योजना में तथाकथित हिंदू संगठनों की मदद से भी सफल नहीं हो पाएंगे ।हरि: ॐ तत्सत।
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