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ये आम है

ये आम है

सिर्फ कहने को
पर बहुत ही खास है।
ऊँचे फलता है
ऊँचे दाम चलता है
कड़ी सुरक्षा में पलता है।
तोड़ने की कोशिश की गर गलती से
पहरेदार की बिन मरजी से
पड़ेंगे डंडे मालिक की खुदगर्जी से।
फलों के बीच बघारता है शान
देश का बढ़ाता है मान
एक भी खा लो आ जाती है जान।
शायद यही कारण है ये है महान
बाजार में आते ही सबका खींचता ध्यान
लोग बाग घर लाते करते गुणों का बखान।
कच्चा हो पक्का हो
दिखने में अच्छा हो
सब पर करता राज चाहे बूढ़ा हो बच्चा हो।
फल की दुकान पर मिलता है सरेआम
भले लगते हों ड्योढ़े दुगने दाम
फिर भी कहलाता आम।...मनोज कुमार मिश्र "पद्मनाभ"।
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