कान भरने का असर
विश्वजीत प्रसाद एक सामाजिक व पारिवारिक व्यक्ति थे। वे अनुमंडल कार्यालय में एक सरकारी क्लर्क थे।वे अपनी पत्नी हीरा देवी,अपने तीन बच्चे मुकेश, सुरेश ,दिनेश व एक भतीजे प्रमोद संग हंसी-खुशी बैदराबाद में एक किराया के मकान में रहते थे। उनके सभी बच्चे व भतीजे अब वयस्क हो चुके थे।
विश्वजीत प्रसाद का बड़ा लड़का मुकेश जो प्रमोद से एक साल छोटा था ,वक़ालत की तैयारी कर रहा था जबकि छोटा भाई सुरेश व दिनेश को पिछले साल हीं क्लर्क की नौकरी लगी थी। दोनों बाहर में नौकरी कर रहे थे ।उनका भतीजा बी.एड. या बकालत की पढाई करना चाह रहा था,पर पैसे की कमी के कारण वह अपने मन को मार चुका था,थक-हार कर बैठ चुका था। वह फिलहाल एक ट्यूशन कर अपना पॉकेट खर्च निकालता था जो उसके चाचा,उसकी चाची व चचेरे भाई मुकेश को अच्छी नहीं लगती थी। उन सबको लगता था कि प्रमोद का ट्यूशन करना उसकी प्रतिष्ठा के खिलाफ है। प्रमोद एक व्यवहारिक,पारिवारिक व सामाजिक लड़का था। शहर के लोग उसकी काफी इज्जत करते थे।
प्रमोद की इज्जत- प्रतिष्ठा मुकेश व उसकी माँ को तनिक भी अच्छी नहीं लगती थी। माँ-बेटे दोनों अक्सर प्रमोद को नीचा दिखाने की कोशिश करते थे। वे दोनों चाहते थे हम दोनों प्रमोद की शिकायत कर विश्वजीत का इतना कान भर दें कि विश्वजीत जी आजीज होकर जल्द से जल्द प्रमोद को इस घर से निकाल दें। मौका मिलने पर वे दोनों अक्सर प्रमोद की शिकायत करना नहीं छोड़ते थे।
पिछले कई साल से विश्वजीत प्रसाद दारू पीना तेज कर चुके थे। किसी न किसी बात को लेकर पीने के दरम्यान कभी मुकेश की माँ हीरा देवी तो कभी मुकेश प्रमोद की शिकायत विश्वजीत प्रसाद पास कर देता था जिससे विश्वजीत के कान अब पक चुके थे। पत्नी व पुत्र मोह में उसने निर्णय लिया कि कल हम दशहरे की नवमी को अपने भतीजे प्रमोद के खिलाफ अपना फैसला सुना देंगे और प्रमोद को अपने घर से निकाल देंगे।
विश्वजीत की पत्नी हीरा देवी व बेटे मुकेश ने उन्हें सलाह देते हुये कहा कि "कल आप प्रमोद से पूछिएगा कि तुम आगे क्या करना चाहते हो,उसका विचार सुनकर आप फैसला सुना दीजिएगा कि तुम बहुत पढ़ लिये हो।अब अपनी ब्यवस्था कहीं और देखो।"
रामनवमी के दिन जब प्रमोद खाना खा रहा था तो विश्वजीत प्रसाद ने अपने बेटे मुकेश को कहा कि "प्रमोद को मेरे कमरे में भेजो।"
प्रमोद जब अपने चाचा के कमरे में आया तो विश्वजीत प्रसाद ने अपने भतीजे से कहा "पिछले कई साल से मैं तुम्हारी शिकायत तुम्हारी चाची व तुम्हारे छोटे भाई मुकेश से सुन रहा हूँ। तुम्हारा भविष्य में क्या पढ़ने एवं क्या करने का इरादा है।जरा खुलकर बताओ। "
प्रमोद ने अपने चाचा जी से कहा कि "भविष्य में मैं बकालत,
बी.एड.या एम.ए. में से कोई एक कोर्स करना चाहता हूँ। तीनों में से आप कोई भी एक कोर्स करवा दीजिए। "
विश्वजीत ने कहा "हम तुम्हें बहुत पढ़ा चुके हैं,अब आगे और नहीं पढ़ाना चाहते हैं । तुम्हें जहाँ जाना है जाओ,और कमाओ। अगर तुम प्रेम से नहीं निकलोगे तो हम तुम्हें धक्के मारकर घर से निकालेंगे।" प्रमोद ने रूऑसे स्वर में कहा"आपको धक्के मारकर निकालने की जरूरत हीं नहीं पड़ेगी,हम स्वत: हीं घर से निकल जायेंगे। "
विश्वजीत के फैसले से माँ-बेटे को कान भरने का असर दिख गया था।
प्रमोद का निर्णय सुनकर "हीरा देवी व मुकेश के चेहरे पर अपनी जीत की कुटिल मुस्कुराहट छा गयी, मानों दोनों को कुबेर का खजाना मिल गया हो।दोनों के चेहरे की छ्द्म खुशी बता रही थी कि दोनों अपने मिशन में कामयाब हो गये हों।"
"विश्वजीत के अंदर एक और धृतराष्ट्र का जन्म हो चुका था।"
------0----- अरविन्द अकेला,पूर्वी रामकृष्ण नगर,पटना-27
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