सब कुछ बरबाद हो गेल।********************
मनोज कुमार मिश्र"पद्मनाभ"
रोज के तरह आज भी सबेरे टहले निकलली।गाँधी मैदान के चक्कर लगावित अचानके ध्यान में आयेल एने बड़ी दिन से गजोधर भाई देखाई न पड़लन हे।पहिले आउ कबो न त भोरौकी टहलते घड़ी जरूर मिल जा हलन।फिर हमनी दुनु गप करित घरे लौट हली।एगो ओही तो हथ जिनका से कुछ सुख दुख बतिया हली।बकि एने कै दिन से नजर न आवित हथ ।पता न बिमार हथ कि आउ कुछ परेशानी में हथ।सोंचते सोंचते हमर एक चक्कर हो गेल।मन में आयल अब चले के चही।आज गजोधर भाई से चलके हाल चाल ले लेही।रस्ते में तो उनकर घर पड़ हे।का जनि बेचारे कौन हाल में हथ।अब तो करोना भी खतम हो गेल हे।सबकोई फिर पहिलहीं नियन अपन काम धाम करे लगलन हे।आखिर कुछ तो कारन जरूर हे कि गजोधर भाई देखाई न पड़ित हथ।एही सब सोंचित पहुंच गेली गजोधर भाई के दरवाजा पर।दुआरी भितरे से बंद हल।सबेरे के लगभग सात साढ़े सात बज रहल हे।अभी तक दरवाजा बंद हे एकर माने कुछ गंभीर मामला हे न तो इनकर दुआरी तो भोरे पाँचे बजे से खुल जा हल।दुआरी पर कुछ देर खड़ा खड़ा सोंचे लगली ढुकढुकाउं कि न ।का जनि गजोधर भाई कौन हाल में हथ।एक मन कैलक कि लौट चले के चही।बकि मन न मानलक।दुआरी पर लगल कु़ंडी खटखटावे लगली।भितरे से चिरपरिचित आवाज सुनायेल केह भाई आवित ही ।तनि ठहर।अब जिउ मे जिउ आयेल ।ई आवाज तो गजोधरे भाई के हे।बकि मन में संका लगल कि पहिले तो कबो गजोधर भाई अपने दुआरी न खोल हलन कभी।उनकर मलकीनिये आके दूआरी खोल हलन।आज ई अपने आवित हथ एकर मतलब जरूर कुछ बात हे।हो न हो लग हे दुनु में कुछ टनटुन होयेल हे।खैर दुआरी खुलल।सामने गजोधर भाई के देख करेजा ठंढायल।मन के संका दूर होयेल।गोड़ लागी जीअ के बाद गजोधर भाई घर दने भितरे बढ़ित कहलन आउँ बाबा बड़ी दिन पर भेंट होयेल हे हमनी के।आउं एनहीं बैठल जाये।अकेलहीं ही आजकल।ई सुनके हम अचकचैली।काहे कि जब भी आव हली पहिले तो उनकर मलकीनिये बहरी वाला रूम में बैठाव हलन।बाद में गजोधर भाई खबर सुनके पीछे से आके बैठ हलन।फिर हमनी के गप सप शुरु है जा हल ।कुछ देर बाद उनकर मलकीनी दू गो कप में चाह दे जा हलन।हमनी दुनु चाह पिअईत अपन दुख सुख बतियाईत रह हली।कखनी दस बज जा हल पतो न चल हल।बकि आज तो घर के हालत देख के गजबे लगल।अकेले गजोधर भाई।न कोई लैकन न मलकीनी।मन न मनायेल त पूछ देली।का भाई जी ई घर ऐसन काहे लगित हे।न कोई लैकन न मलकीनी सब कहाँ चल गेलन?अब तोरो उमर लगभग साठ होईत हे।ई उमर में अकेले ऐसे रहे के हे?मान ल कभी तबियेते बिगड़ गेल त कोई एक गिलास पानियो देवे वाला न हे।ऐसन में भगवान न करे कहीं कुछ हो गेल त कोई केकरो खबर भी न कर सक हे।अरे मानित ही आजकल लैकन पढ़े लिखे ला चहे नोकरी के फेर में बाहर रह हथ।बकि मलकीनी के तो रहे के चही साथे।कम से कम दुगो रोटी तो समय पर मिल जायेत।पड़ला हरला में कोई परिवार चहे दोस्त इयार के खबर तो मिलत।ई ऐसन में बड़ी कष्ट हे।एतना बात सुनैत सुनैत गजोधर भाई के सब्र के बाँध टूट गेल।बड़ी लंबा साँस लेईत कहे लगलन।का कहुँ बाबा।आजकल जमाना बड़ी विचित्र हो गेल हे।सबके अपन मनमाना चही।कोई केकरो सुने वाला न हे।का लैकन का मेहरारू।सबके अपने आप से मतलब रह हे।बाप चहे मरदाना से रिश्ता तबे तक जबतक इनकर मन के हिसाब से अपने चलित ही।जहाँ तनिमनि अपने मुह मोड़ली चहे कुछ बोलली इनकर त्योरी चढ़ जायेत।तुरत भर में बात के बत़ंगड़ करके महाभारत के व्यूह रचना होवे लगत।अरे तनिमनि उनईस बीस सब घर में होव हे।एकर मतलब ई थोड़े हे कि आदमी घर छोड़ के भाग जायेत।एक दूसरा से बोलचाल बंद कर देत।हालो चाल न पूछत।आदमी जीअईत हे कि मर गेल एहु पुछना गुनाह हो गेल।खैर अब हम का कहुँ अपनहुँ कहब कि आज भोरे भोरे कन्ने फँस गेली।बकि का कहुँ अब पानी सर से ऊपर बहे लगल हे।सब कुछ बरबाद हो गेल बाबा।पूरा जिंदगी लगा देली समेट के सबके रखे के फेर में।अपने से कुछो छिपल न हे।तीन गो बहीन एगो भाई तीन चार गो लैकन सबके पढ़ा लिखा के शादी बिआह सब कर देली।दु गो लैकन अभी बचल हथ बिआह लगी।बकि भगवान के किरपा से सब अपन अपन जगह सुखी हथ।भाई जहाँ नौकरी कर हथ उहैं घर बना के अपन परिवार के साथ रहित हथ।बेटी के बिआह देली ऊ भी अपना घर में सुखी हे।भगवत किरपा से एगो नाती भी हे।चारो बहिन भी सब अपन अपन घर में बाल बच्चा के साथे सुख से रहैत हथ।बड़का बेटा भी नौकरी करित अपन परिवार के साथ परसन्न हे।एगो पोता भी हे।लगभग छौ बरस ओकर उमर होयेत अब।अब तो ओहू इस्कूल जाय लगल हे।सबकुछ देख के मन बड़ी खुश रह हल।अपन दुख भुला जा हली।पढ़ लिख के भी नौकरी न लगल।कोई तरह से पराइवेट कालेज में नोकरी करित आउ कुछ अप्पन धंधा पानी से घर बढ़िया चलित हल।बकि पता न केकर नजर लगल।अचानके सबकुछ बरबाद हो गेल।आज देखते ही अब हम कहीं आवे जाये लायेक भी न रह गेली।जबकि अपने के तो पते हे।हम कभी घरे बैठे वाला आदमी न हली।समाज के साथ सबके सुख दुख में बराबर खड़ा रहली।बकि आज दुगो रोटी आउ एक गिलास पानी तो दूर कोई मरे जीये के हाल भी पूछे वाला न हे।कभी कभी लग हे हमहीं गलती कैली।परिवार आउ समाज के चक्कर में पड़के अप्पन जिंदगी बरबाद कर लेली।हमहुँ चहती हल त कहीं बहरी जा के कोई बढ़िया पराईवेट काम करके अच्छा पैसा कमा सक हली।आज के लोग जैसन ऐश के जिनगी जी सक हली।समाजिकता के घूटी पिआवे वाला माय बाबूजी तो अब हथ न बकि उनकर घूटी आज हमरा ला जहर के काम करित हे।परिवार आउ समाज सब खाली अपन अपन फायेदा उठौलन हमरा से।अब ई उमर में कोई झाँकहुँ वाला न हे।अरे दुसरा के हम का कहूँ जब अपन मेहरारु समझे ला तैयार न हे,अपन बाल बच्चा कोई सुने देखे वाला न हे त बाहर वाला के केतना दिन करत।अब तो बस भगवाने भरोसे समय कटित हे।जे होये ला होवत से होयेत।हम का कर सक ही।खैर छैड़ूँ ई सब बात।आउ सुनाऊँ कने चलली ।बड़ी दिन पर भेंट होईत हे हमनी के।एने कैयेक महीना से एही सब टेंसन में हम कहीं जाईत आवैत न ही।का करूँ मने न करे कहीं जाय के।सौंसे लगन बीत गेल।दुनिया भर के शादी बिआह,जनेऊ,मूड़ना के काड कुछ सराध के काड रखल रह गेल कहीं न गेली।बड़ी मोशकिलन एकाध जगह जा पैली।धीरे धीरे सबसे संबंध खतम होल जाईत हे।बकि हम करी तो का करी।केकरा केकरा अपन दुखड़ा सुनावित रही।ई सब तो अब हमर लग हे जिनगी के साथी हो गेल हे।आउ सुनाउँ अप्पन हाल चाल ।सब ठीक ठाक हे न।अच्छा छोड़ूँ ई सब पहिले एक गिलास सत्तू बनावित ही एकरा पीऊँ फिर हमनी के बतकही होईत रहत।हमर दिन तो आजकल एकरे पर कटित हे।दाल भात तरकारी आउ रोटी तरकारी खैला तो महीनों बीत गेल।पता न अब मिलबो करत कि एही पीते परान छुटत।लेउँ पहिले एक गिलास अपने भी पी लेऊँ।नौ बज गेल हे।गरमी भी ओईसने हे।अपनहुँ के तबियत ठीक न रहे।हाई बी पी के मरीज ही जादे देर उपास न रहे के चही।अरे हमरा का हे जे होवेला होयेत से होयेबे करत।बकि अपनन्हीं के देख के कुछ तो मन शांत रह हे।
गजोधर भाई के हाँथ से सत्तु के गिलास अप्पन हाँथ में लेके सत्तु पिअईत इनकर तीन महीना पहिले के जिनगी पर ध्यान चल गेल।दुनु मरद मेहरारु केतना परसनचित देखा हलन।आज तक केकरो पता न चले देलन कि ई दुनु के जिनगी एतना तनाव से भरल हे।आज तक गजोधर भाई के उदास निराश चेहरा हम कहियो न देखली।बड़ी सोंच में पड़ गेली हम तो आज इनकर कहानी सुनके।सपनो मे न सोंचली हल ऊपर से एतना हँसमुख,सबके समस्या के समाधान तत्काल निकाले वाला गजोधर भाई के जीवन एतना जाने तनाव में चल रहल हे।गजब लीला हे भगवान के।सत्तू पी के हम उठ के चले लगली ।गजोधर भाई से एतने कह पैली भाई जी भगवान पर विशवास रख।ऊ फिर से पहिलका दिन लौटैतन।तब तक हमरा लायेक जे भी उचित समझिह कहे में तनिको मत सकुचैह।हम तोरा से अलगे न ही।अब चल हिओ।फिर जलदिये मिलबो।धूप कड़ा हो रहलो हे।हमरो घरे पहुंचे के चही।गजोधर दुआरी तक छोड़ैत एतने भर कहैत रुआँसा हो गेलन अच्छा बाबा आवैत रहब ।अपनन्हीं आ जाही त लग हे अभी हम जिंदा ही।हमरो कोई हे।बाकी तो सब बरबादे हो गेल।.....मनोज कुमार मिश्र"पद्मनाभ"।
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