तेरा हीं चरण दास
अरविन्द अकेला,पूर्वी रामकृष्ण नगर,पटना-27
मेरे कदम जबसे रूके,
जाकर तुम्हारे पास,
तबसे बन गया हूँ मैं,
तेरा हीं चरण दास।
मेरे कदम जबसे...।
कभी खिलाती थी माँ,
अक्सर मटर-पनीर,
खा रहा हूँ मैं अब ,
सुखी रोटी व घास।
मेरे कदम जबसे...।
नहीं मिलती अब कभी,
माँ के हाथों का पानी,
नहीं बुझ रही है अब,
कभी वो मीठी प्यास।
मेरे कदम जबसे...।
कहाँ जी पा रहूँ मैं ,
सुकून की वो जिंदगी,
हुयी जबसे शादी मेरी,
छूटा वो मुक्त आकाश।
मेरे कदम जबसे...।
कोई लौटा दो अब मेरी ,
खोयी हुयी वो जिंदगी,
लौटा दो कोई अब मेरा,
खोया हुआ विश्वास।
मेरे कदम जबसे...।
हो गया हूँ अकेला मैं,
लुटाकर घर-परिवार,
लौटा दो कोई वर्तमान मेरा,
लौटा दो मेरी आस।
मेरे कदम जबसे...।
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