श्री मार्कण्डेय शारदेय
आज गंगा- दशहरा है।विशेषतः आज गंगास्नान, उनको नमन , उनका पूजन तथा स्मरण करने से दशविध पापों से निवृत्ति मानी गई है।
दशविध पापों की बात करें; जिनका गंगा दशहरा को स्नान, पूजन करने से नाश होता है। इन पापों की तीन श्रेणियाँ हैः कायिक, वाचिक और मानसिक।यहाँ कायिक के अन्तर्गत किसी की इजाजत के बिना कोई चीज ले लेना, किसी तरह की हिंसा तथा पराई स्त्री का सेवन हैं।वाचिक पापों में कठोर वाणी का प्रयोग, झूठ, चुगलखोरी एवं व्यर्थ बकवाद हैं।मानसिक पापों में दूसरे के धन का लोभ, किसी की बुराई सोचना तथा देहाभिमान हैं।मनु भी इन दोषों को त्यागने का निर्देश करते हैं।क्योंकि; इन शारीरिक पापों के काऱण व्यक्ति अगले जन्म में स्थावर (पेड़-पौधे आदि), वाचिक पापों से तिर्यक (पशु-पक्षी आदि) एवं मानस पापों से निम्न स्तरीय मानव बनता है।
स्पष्ट है कि मानवीय उत्थान के जो सद्गुण बताए गए हैं, उन्हें अपने में सँजोना और दुर्गुण कभी आने न पाएँ इसके लिए शास्त्राभ्यास, शास्त्रानुसरण, देवपूजन, तीर्थ-सेवन एवं सत्संग आवश्यक है। हर समय, हर स्थान और हर व्यक्ति का एक खास महत्त्व होता है।गंगा दशहरा का यह मुख्य महत्त्व है कि अन्य दिनों में अन्य पर्वों पर गंगासेवन का जो पुण्य है वह तो है ही इस दिन पापनाश ही विशेष है। पापनाश के बाद पुण्यलाभ होगा ही, इसलिए शास्त्र-कथन है कि इस दिन इनाम के रूप में माँ गंगा सौगुना यज्ञफल भी देती हैं।
मानें या न मानें, यदि इस दिन का इतना माहात्म्य है तो पूजन करें या न करें, दान करें या न करें, पर एक बार डुबकी लगा लेने में क्या हर्ज है! अगर डुबकी दूर की हो तो किसी जलाशय में, वह भी न हो सके तो कहीं किसी तरह नहाते समय ही सही गंगाजी का स्मरण करने में न तो द्रव्य लगेगा और न थकान ही होगी! विश्वास फलवान होगा ही।अच्छा काम मन न लगने पर भी कर ही लेना चाहिए।
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