झुठ के शंख
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र'अणु'
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जो अपने थे वे तज रहे हैं-
अब कहां सपने सज रहे हैं।१।
कहीं कोई कुछ कर नहीं रहा-
बस झुठ के शंख बज रहे हैं।२।
जो चापलूसी में खुब तेज है-
यहाँ सब उसीको भज रहे हैं।३।
बाकी के लोग तो पीसा रहे हैं-
ये समझकर हम मज रहे हैं।४।
झुलस रही है त्रयताप से धरती-
ये बादल घिरकर गरज रहे हैं।४।
दुनियां की हालत देख कहा'अणु'-
सब छोडकर खुद बरज रहे हैं।५।
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