दंगाइयों का ढो रहे हैं भार किस लिए ?
आपस में हो रही है टकरार किस लिए ?
समझते हैं एक-दूसरे को भार किस लिए ?
बढ़ती ही जा रही हैं अब दिलों की दूरियां
नफरत की ऊंची हो रही दीवार किस लिए ?
छोटी सी खबर को बड़ी बनाते 'डिबेट' से
लगाते हैं आग 'चैनल' अखबार किस लिए ?
इनका नहीं है धर्म कोई जाति नहीं हैं
दंगाइयों का ढो रहे हैं भार किस लिए ?
जब संविधान में है बराबर का हक मिला
मिलता नहीं है सभी को अधिकार किस लिए ?
वादा किया था तुमने सभी के विकास का
मुंह देख-देख करते हो तुम प्यार किस लिए ?
सियासत में यहॉ जबसे धर्म जाति आ गई
'जय' हो रहा है देश शर्मसार किस लिए ?
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