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दंगाइयों का ढो रहे हैं भार किस लिए ?

दंगाइयों का  ढो रहे हैं  भार  किस लिए ?

आपस में  हो रही है  टकरार  किस लिए  ?
समझते हैं एक-दूसरे को भार  किस लिए ? 

बढ़ती ही  जा रही हैं अब दिलों की दूरियां 
नफरत की ऊंची हो रही दीवार किस लिए ? 

छोटी सी  खबर को  बड़ी बनाते  'डिबेट' से
लगाते हैं आग  'चैनल' अखबार  किस लिए ? 

इनका  नहीं है  धर्म  कोई जाति  नहीं  हैं
दंगाइयों का  ढो रहे हैं   भार   किस लिए ? 

जब  संविधान में है  बराबर का  हक मिला
मिलता नहीं है  सभी को अधिकार किस लिए ? 

वादा किया था  तुमने  सभी के विकास का 
मुंह देख-देख करते हो तुम प्यार किस लिए ? 

सियासत में यहॉ  जबसे  धर्म जाति आ गई
'जय'  हो रहा  है   देश  शर्मसार  किस लिए ?
                       *
~जयराम जय 
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