भार ही नहीं मुजरिम राजनीतिक दल

भार ही नहीं मुजरिम राजनीतिक दल

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
लोकतंत्र में लोक अर्थात जनता के प्रतिनिधि भी महत्वपूर्ण होते हैं। यही कारण है कि अंगूठा छाप जनप्रतिनिधि को आईएएस पीसीएस अधिकारी भी सलाम ठोंकते हैं। जनप्रतिनिधियों की ज्यादातर अपनी पार्टी अर्थात दल होता है। चुनाव आयोग में इसका पंजीकरण कराया जाता है। चूंकि लोकतंत्र के ये महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं इसलिए इनको सरकार की तरफ से ढेर सारी सुविधाओं का उपभोग भी करते हैं। कार्यालय के लिए सरकारी भवन मिलता है। जनहित में इन्हें चंदा लेने की छूट होती। इस धनराशि के बारे में माना जाता है कि इसे लोकतंत्र के हित में खर्च किया जाएगा इसलिए आयकर से छूट मिलती है। लोकतंत्र के नाम पर मिली सुविधाओं का कितने ही राजनीतिक दल दुरुपयोग करते हैं। लोग आनन-फानन में एक पार्टी बना लेते हैं। चुनाव आयोग में उसका पंजीकरण कराने के बाद सरकारी भवन में कार्यालय एलाट करा लेते हैं। उस कार्यालय में क्या होता है यह देखने की जरूरत नहीं समझी जाती। सत्ताधारी दल से दोस्ताना सम्बंध हैं तब तो कहना ही क्या। दोस्ताना सम्बंध नहीं हैं तब भी साधारण पुलिस की मजाल नहीं कि राजनीतिक दलों के दफ्तर में ताक-झांक कर सके। गुन्डांे लफन्गों को छिपने की सुरक्षित जगह चाहिए सो लोकतंत्र के इन कथित मठों में मिल जाती है। चुनाव आयोग के संज्ञान में जब यह बात आयी कि इनमें से कितने ही दल लोकतंत्र के महोत्सव अर्थात चुनाव में भाग ही नहीं लेते हैं और आयकर की छूट लेकर आर्थिक अपराध भी कर रहे है तब निर्वाचन आयोग ने उनके खिलाफ कार्रवाई की है।

निर्वाचन आयोग ने गत 20 जून 2022 को पंजीकृत गैरमान्यता प्राप्त 111 राजनीतिक दलों के खिलाफ बड़ा एक्शन लिया है। आयोग ने इन पार्टियों को गैर-मान्यता प्राप्त दलों की सूची से बाहर कर दिया है। इस सूची में उन राजीनीतिक दलों का नाम भी शामिल है जिन्होंने 2019 का चुनाव भी नहीं लड़ा था लेकिन उसके बावजूद उन्होंने करोड़ों रुपये की टैक्स छूट हासिल की थी। चुनाव आयोग के आकड़ांे के अनुसार मात्र 623 पार्टियों ने सन 2019 का चुनाव में लडा था। हमारे देश में फिलहाल 2,796 रजिस्टर्ड गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टियां हैं। निर्वाचन आयोग ने इन 111 राजनीतिक दलों में से तीन के खिलाफ गंभीर कानूनी कार्रवाई करने की सिफारिश भी राजस्व विभाग से की है। बताया जा रहा है कि इनके खिलाफ आपराधिक कारनामों के सबूत आयोग को मिले हैं। इससे पहले आयोग ने नियमों का उल्लंघन करने वाले 2,100 से अधिक पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त दलों के खिलाफ कार्रवाई की शुरूआत की थी।

इसके अलावा निर्वाचन आयोग ने 2017 से अपने आय व्यय और चंदे का हिसाब किताब नहीं देने वाले 2,351 राजनीतिक दलों की सूची आयकर विभाग को सौंपी है ताकि इनकी ब्लैक मनी का पता लगाया जा सके।

पिछले महीने अर्थात मई 2022 में ही राजीव कुमार को मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया गया था। उन्होंने पद भार संभालते ही ‘सुधार अभियान’ शुरू कर दिया था। हालांकि पूर्ववर्ती मुख्य निर्वाचन आयुक्तों ने भी अपने-अपने स्तर से प्रयास किये लेकिन सफलता नहीं मिली। राजनीति से अपराधियों को दूर रखने के लिए केंद्र सरकार से कानून बनाने की सिफारिश की गयी थी लेकिन ऐसा कोई कानून नहीं बन पाया। इसी प्रकार एक ही व्यक्ति को दो सीटों पर चुनाव लडने सो हतोत्साहित करने के लिए भी पूर्ववर्ती मुख्य चुनाव आयुक्त ने प्रयास किया था लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिली। अब चुनाव आयोग ने अपने अधिकारों का प्रयोग शुरू किया और 25 मई को गैर मान्यता प्राप्त रजिस्टर्ड पार्टियों के खिलाफ सफाई मुहिम शुरू करते हुए ऐसे 66 राजनीतिक दलों के खिलाफ नोटिस भेजा था। इन दलों की 2020 में आयकर घोषणा में गड़बड़ी की शिकायतें सही पाई गई थीं।

मात्र 623 पार्टियों ने 2019 में लोकसभा का आम चुनाव लडा था। देश में फिलहाल 2,796 रजिस्टर्ड गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टियां हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक, 2019 के आम चुनाव के समय देश में कुल 2,354 रजिस्टर्ड गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टियां थीं लेकिन इनमें से मात्र 623 पार्टियों ने ही 2019 का चुनाव लड़ा था। इनमें से 1,731 के करीब ऐसे दल थे जिन्होंने एक भी सीट से चुनाव नहीं लड़ा था। वहीं जिन पार्टियों ने चुनाव लड़ा भी तो उन्होंने चुनावी खर्च का ब्यौरा

चुनाव आयोग को नहीं दिया। अब सोचने की बात है कि जो राजनीतिक पार्टी चुनाव में हिस्सा ही नहीं लेती है तो उसको सरकारी सुविधा क्यों मिलना चाहिए। इसके बावजूद कितनी ही राजनीतिक पार्टियां सरकारी सुविधा ले रही हैं तो अपने राजनीतिक कर्तव्य के साथ तो अन्याय कर ही रही हैं साथ ही अपराध भी कर रही हैं।

इसके साथ ही कितने ही सियासी दल 90 दिन के अंदर अपना चुनावी खर्च का ब्योरा नहीं देते हैं। गौरतलब है कि चुनाव खत्म होने के 90 दिन के अंदर सभी दलों को चुनावी खर्च का ब्यौरा चुनाव आयोग को देना होता है। ऐसा नहीं करने वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ आयोग कार्रवाई कर सकता है। इसलिए चुनाव आयोग ने सराहनीय कार्रवाई की है। फिलहाल निर्वाचन प्रक्रिया और व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए चुनाव आयोग ने देश के 21 सौ से ज्यादा रजिस्टर्ड गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के खिलाफ कड़े कदम उठाए है। इसमें सभी दलों पर वित्तीय अनियमितता सहित समय पर सालाना आडिट रिपोर्ट पेश न करने और चुनाव खर्च का ब्यौरा न देने जैसे गंभीर आरोप है। इनमें बड़ी संख्या में ऐसी पार्टियां भी है, जिन्होंने 2019 का चुनाव भी नहीं लड़ा है, बावजूद उन्होंने करोड़ों की टैक्स छूट हासिल की है। चुनाव आयोग के मुताबिक मौजूदा समय में देश में 2796 रजिस्टर्ड गैर- मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल है। वर्ष 2001 के बाद में इनकी संख्या में तीन सौ फीसद का इजाफा हुआ है। वर्ष 2001 तक इनकी संख्या सिर्फ 694 थी। हालांकि आयोग ने राजनीतिक दलों के कामकाज में पारदर्शिता रखने के लिहाज से कुछ नियम भी बनाए है, इसके तहत सभी दलों को इससे जुड़ी जानकारी देना जरूरी होता है। जिसमें राजनीतिक दलों के कामकाज में पारदर्शिता रखने के लिहाज से कुछ नियम भी बनाए है, इसके तहत सभी दलों को इससे जुड़ी जानकारी देना जरूरी होता है जिसमें चुनावी चंदे की जानकारी भी शामिल होती है। इसके साथ ही चुनावी खर्च सहित पार्टी के आयकर पैन खाते और आडिट रिपोर्ट को भी पेश करना जरूरी होता है। चुनावों में धन की बढ़ती हुई भूमिका हमारी चुनाव व्यवस्था का गम्भीर दोष है। चुनाव आयोग द्वारा चुनाव में उम्मीदवार द्वारा किए जाने वाले व्यय की सीमा निश्चित की गई है। यह व्यय सीमा भिन्न भिन्न राज्यों के लिए अलग-अलग है। चुनाव में भाग लेने वाले उम्मीदवारों के लिए यह आवश्यक है कि वे चुनाव परिणाम की घोषणा के 30 दिन के भीतर चुनाव व्यय का हिसाब सम्बद्ध अधिकारी को प्रस्तुत कर दें। भारतीय चुनाव प्रणाली की एक त्रुटि यह है कि दर्जनों राजनीतिक दल होने के बावजूद भी निर्दलीय सदस्यों की संख्या बढ़ती जा रही है। ये निर्दलीय सदस्य बेपेदी के लोटे की तरह सत्ता व धन लोभ में कभी भी किसी भी दल में जाने को तैयार रहते हैं। इन सब के लिए कानून भी बने हैं लेकिन यह कानूनी व्यवस्था केवल कागजी है। व्यवहार में धन की भूमिका निरन्तर अधिकाधिक बढ़ती जा रही है। भारत में बहुदलीय प्रणाली है। न केवल राष्ट्रीय स्तर के अनेक दल हैं, वरन् क्षेत्रीय दल भी अधिक संख्या में हैंय जैसे- अकाली दल, तेलगुदेशम पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस, डी. एम. के., असम गण परिषद्, समाजवादी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति आदि। ये दल चुनावों के समय सिद्धान्तों की तिलांजलि देकर सत्ता प्राप्त करने के लिए गठबन्धन करते रहते हैं। देश या मतदाताओं के हित से इनका कोई सम्बन्ध नहीं होता।समय-समय पर विभिन्न विचारकों, कानूनशास्त्रियों तथा राजनीतिक दलों ने चुनावों की त्रुटियों को दूर करने के लिए कुछ सुझाव भी दिए। उदाहरण के लिए चुनाव आयोग बहुसदस्यीय हो जिस पर अमल भी किया जा चुका है। चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में विपक्ष तथा भारत के प्रमुख न्यायाधीश से भी परामर्श लिया जाता है। सभी संसद सदस्यों, विधायकों तथा मंत्रियों की आय के ब्यौरों और स्रोतों को प्रकाशित करने का सुझाव भी दिया गया था।
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