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बुकर पुरस्कार प्राप्त लेखिका व उपन्यासकार गीतांजलि की उपन्यास श्री रचित रेत समाधि पर एकल व्याख्यानमाला वर्तमान परिवेश पर प्रहार करती यह उपन्यास: कुमार वीरेंद्र

बुकर पुरस्कार प्राप्त लेखिका व उपन्यासकार गीतांजलि की उपन्यास श्री रचित रेत समाधि पर एकल व्याख्यानमाला वर्तमान परिवेश पर प्रहार करती यह उपन्यास: कुमार वीरेंद्र

संवाददाता अरविन्द अकेला की खबर
औरंगाबाद 25 जुन।जिला मुख्यालय स्थित सत्येंद्र नगर मुहल्ले में सिन्हा कॉलेज के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर डॉ सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह के आवास पर जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन एवं समकालीन जवाबदेही परिवार के संयुक्त तत्वावधान में एक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन किया गया गोष्ठी में प्रसिद्ध लेखिका गीतांजलि श्री रचित रेत समाधि उपन्यास पर एकल व्याख्यानमाला प्रस्तुत की गई।जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन, औरंगाबाद के अध्यक्ष सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह,
समकालीन जवाबदेही के प्रधान संपादक डॉ. सुरेंद्र प्रसाद मिश्रा के मुख्य आतिथ्य में आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता सिन्हा कॉलेज के अवकाश प्राप्त प्रोफ़ेसर डॉ.चंद शेखर पांडेय ने किया।बेढनी पंचायत के मुखिया व जिले के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मनोज कुमार सिंह एवं संगोष्ठी के मुख्य वक्ता व इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ कुमार वीरेंद्र को अंगवस्त्र पुष्पगुच्छ एवं ग्रंथ देकर सम्मानित किया गया। एकल व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए डॉ. कुमार वीरेंद्र ने गीतांजलि श्री रचित रेत समाधि पर कहा कि यह उपन्यास साहित्य के सभी पुरानी विधाओं को समेकित एवं कुछ नई विधाओं को सर्जित करती हुयी प्रतीत होती है ।उपन्यास की शुरुआत दिल्ली शहर के एक छोटे से मुहल्ले से शुरू होती है। अम्मा के इर्द-गिर्द घूमती कहानी वर्तमान परिवेश पर प्रहार करती है।कहानी में तबादलों का भी दौर चलता है।ग्रामीण परिवेश की भी चर्चा होती है।वर्तमान समय में बेटियों की सम सामयिक दशा को दर्शाई जाती है। अम्मा जब बीमार पड़ती है तो उनसे चेक पर साइन कराने की होड़ मच जाती है। उपन्यास के उत्तरार्ध में सरहद को तोड़कर उस परिवेश से हमें बोध कराती हैं जहां अम्मा हिंसा की शिकार हो जाती हैं।उपन्यास में थर्ड जेंडर की मानवीयता एवं विभाजन की त्रासदी को विशेष रूप से दर्शाया गया है। सरहद मानव के प्रेम को अलग नहीं कर सकता।इस उपन्यास में ढेर सारे साहित्यिक प्रयोग भी किए गए हैं जो आधुनिक काल के उपन्यास कारों से बढ़-चढ़कर शुरुआत किए गए हैं ।कुल मिलाकर आज के साहित्यिक संगोष्ठी में रेत समाधि वर्तमान परिवेश के जितनी भी घटनाएं हैं उन सबको समावेश कर इस उपन्यास में उद्धरण प्रस्तुत किए गए हैं। आज के साहित्यिक गोष्ठी में डॉ शिवपूजन सिंह,महेंद्र पांडेय,प्रेमेंद्र मिश्रा,धनंजय जयपुरी डॉ0 संजीव रंजन,अनिल कुमार सिंह चंदन पाठक,शिव नारायण सिंह,नागेंद्र केसरी,मुरलीधर पांडेय, अर्जुन सिंह,चंद्रशेखर साहू,डॉ रामाधार सिंह,पुरुषोत्तम पाठक रामाकांत सिंह,उज्जवल रंजन,मीडिया प्रभारी व सुरेश विद्यार्थी सहित अन्य लोग उपस्थित थे।
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