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वो अपना हो नहीं सकता।

वो अपना हो नहीं सकता।

....मनोज कुमार मिश्र"पद्मनाभ"।
वो अपना हो नहीं सकता
जितना भी जी चाहे
लगा लो मख्खन
कुदरती दाग ये धो नहीं सकता
जो जन्मजात पराया है वो
अपना हो नहीं सकता।
खून का कतरा कतरा निचोड़ कर
सींच दो जमीने हिंद की
मुल्क की सरहद से रास्ता
दे नहीं सकता
पैदाईशी पराया हो जब वो
अपना हो नहीं सकता।
लगा कर बीज ऊसर में
करो कोशिश लाख
सावन की झमझम से पटकर भी
अंकुर हो नहीं सकता
चाहे लाख करलो जतन
जिसकी रगों में दौड़ता लहु स्याह
वो अपना हो नहीं सकता।
काटकर गर्दन देख लो अपनी
चमकती तलवार से
रख दो पैरों पे बहती रक्तधार
खेलेगा गेंद की नाइं
मर हम रहे हों फिर भी
मरहम दे नहीं सकता
नाइंसानियत हो जेहन में जिसके
वो अपना हो नहीं सकता।
ढोंग है ये कहना के
वफा ए मुल्क हूँ मैं
सलाहियत के पैगाम पेशकर भी
पेशानी को पसीने दे नहीं सकता
सुन्नत से सुन्न हुआ भेजा है जिसका
वो अपना हो नहीं सकता।
कहने को है पाक जब
इरादा हो नापाक
पाकीजगी होगी कहाँ महफूज
वजुखाने का पानी भी
नापाकियत को पाक कर नहीं सकता
आबे जम जम भी पी ले जो
प्यास मिट नहीं सकती
तोड़ कर फेंक दी कलम जिसने
थाम लिया हाँथों में पत्थर
सच कहता हुं दिलवर जो काफिर है
वो अपना हो नहीं सकता।।
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