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मठ मंदिर और सनातन परम्परा।

मठ मंदिर और सनातन परम्परा।

धर्मप्रधान देश भारत में मठ मंदिरों की परम्परा आदिकाल से रही है।इसके निर्माण का उद्देश्य शिक्षा एवं संस्कृति को आगे बढ़ाना था।इसमें निवास करनेवाले साधु संन्यासी भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने तथा सनातन धर्म की संरक्षा सुरक्षा में सदैव तत्पर रहते थे।परमपुज्य शंकराचार्य ने भारत के चार अलग अलग क्षेत्रों में मठों की स्थापना कर संन्यासी संघ की स्थापना की थी।अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक एवं धर्मसुधारक आदिशंकराचार्य ने इन्हीं मठों के माध्यम से सुसंकृत और उन्नत भारत के स्वप्न को साकार रूप देने की ओर कदम बढ़ाया था।इस हेतु उन्होंने अपने चार प्रधान शिष्यों पद्मपाद, हस्तामलक,सुरेश्वर,और वोटक का भी सहयोग लिया।इन प्रधान शिष्यों ने भी अपने गुरु की गरिमा को बढ़ाने के लिये तथा भारतीय संस्कृति को विस्तार देने के लिये मनोयोग से श्रम किया।इसी कड़ी में पद्मपाद ने अपने शिष्यों के रूप में तीर्थ एवं आश्रम का चयन किया।हस्तामलक ने वन एवं अरण्य को अपना शिष्य बनाया तो सुरेश्वर ने गिरी,पर्वत और सागर का गुरुत्व ग्रहण किया।अब भला वोटक क्यों पीछे रहते ,इन्होंने पुरी,भारती और सरस्वती का गुरु बनना स्वीकार किया।प्रकारान्तर से आगे यही दस संन्यासियों के भेद में बदल गये।आज भी आदिशंकराचार्य के द्वारा स्थापित मठों में यही दशनामी संतों की परम्परा कायम है।

ये मठ मंदिर यदि नहीं होते तो आज हमारी सनातन संस्कृति कबके पतन के गर्त में जा चुकी होती।इन मठों मंदिरों की ही देन है कि हमारी आध्यात्मिक चेतना भले सुसुप्त हो किंतु जीवित है ।आतताईयों के द्वारा अनेको प्रयत्न के बाद भी मरी नहीं।उड़ीसा का गोवर्धन मठ,कर्नाटक का शारदापीठ, गुजरात का द्वारिका पीठ हो या उत्तराखंड के चमोली का ज्योतिर्मठ ये सभी वो पुण्य स्थल हैं जहाँ आज भी ज्ञान का ज्योतिपुंज सदैव प्रज्वलित है।आदिशंकराचार्य के अतिरिक्त बंगाल में स्वामी रामकृष्ण परमहंस एवं स्वामी विवेकानंद ने भी भारतीय आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है।अब आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने पूर्वजों के द्वारा जलाई गई दीपशिखा को बुझने न दें ।अपने इन धरोहरों को संरक्षित सुरक्षित रखने का यथासाध्य प्रयत्न करते रहें।

गंगा एवं गायत्र्यावतरण दिवस पर सिर्फ यशोगान करना मात्र ही उद्देश्य न हो बल्कि परमपावन भारत की धरा जिस गो,गंगा,गायत्री एवं गीता जैसे चार सशक्त स्तंभों पर टिकी है उसकी सुरक्षा हम प्राणपन से करने का संकल्प लें तभी गंगा गायत्री अवतरण दिवस मनाना सार्थक होगा।

जय माँ गंगा जय माँ गायत्री।

....मनोज कुमार मिश्र "पद्मनाभ"। 

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