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शक्तिहीनता से सशक्तिकरण पर भारतीय महिलाओं का विराम भारतीय महिलाओं का सशक्तिकरण:-स्मृति जुबिन ईरानी, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री

शक्तिहीनता से सशक्तिकरण पर भारतीय महिलाओं का विराम भारतीय महिलाओं का सशक्तिकरण:-स्मृति जुबिन ईरानी, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री

जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार ने 'नारी शक्ति' के नए युग की शुरुआत की है। कार्यक्रम संबंधी हस्तक्षेपों द्वारा महिलाओं को मुख्यधारा में लाने के भारत के प्रयासों को मिली प्रशंसा इसके प्रमाण हैं। महिलाओं को मुख्यधारा में लाने के ये प्रयास केवल कागजों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि इन्हें जमीनी स्तर पर लागू किया गया है। महिलाएं अब उन अकल्पनीय नीतियों का विषय नहीं हैं, जिनका लक्ष्य इन्हें माताओं और पत्नियों की भूमिकाओं में सीमित करना है। इस अमृत काल में, महिलाएं हरेक क्षेत्र में नेतृत्व कर रहीं हैं, श्रम शक्ति में अनुकूल स्थिति में हैं और भारतीय समाज की केंद्र बिन्दु हैं।

महिला सशक्तिकरण के मामले में पूर्व सरकारों ने अवसर गवां दिए, मोदी सरकार ने समग्र, राष्ट्रीय विकास प्राप्त करने के लिए इसे एक अनिवार्य शर्त बना दिया है। इसे नीतिगत हस्तक्षेपों की एक श्रृंखला के माध्यम से हासिल किया गया है। राशन कार्ड मुख्य रूप से घर के पुरुष मुखिया के नाम से जारी किया जाता था। राशन कार्ड को पहचान के दस्तावेज के रूप में मान्यता के स्थान पर सभी के लिए विशिष्ट पहचान, आधार पेश किया गया है। पूर्ववर्ती राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) में बदलाव किये गए और इसमें महिला-केंद्रित बीमारियों व सेवाओं की एक बड़ी श्रृंखला शामिल करने के लिए इसे एक नया रूप देते हुए प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जेएवाई) का नाम दिया गया। इसमें प्रति परिवार 5 लाभार्थियों की सीमा थी, जिसमें अक्सर पुरुषों को प्राथमिकता मिलती थी। इस अनुचित सीमा को हटा दिया गया। पीएम – जेएवाई के तहत स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार उन घरों तक भी किया गया है, जहाँ कोई वयस्क पुरुष सदस्य नहीं है और इसमें सदस्यों की संख्या की भी कोई सीमा नहीं राकी गयी है। व्यापक परिप्रेक्ष्य में, पति और पिता से स्वतंत्र, एक पहचान होने का सम्मान भारतीय महिलाओं के लिए आत्म-विश्वास, स्वामित्व और 'आत्मनिर्भर भारत' की दिशा में एक बड़ा कदम है।

सरकार भारत के रोजगार और श्रम क्षेत्र को गति प्रदान कर रही है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के जरिये महिलाओं की उद्यमिता को नयी पहचान मिली है। मुद्रा योजना से ऋण प्राप्त करने वाले खाताधारकों में महिलाओं का हिस्सा 68% है। आय-सृजन गतिविधियों की आकांक्षाओं के लिए दिए जाने मुद्रा ऋणों ने महिलाओं के लिए अवसरों का विस्तार किया है, जिनके बारे में पहले सोचा भी नहीं जाता था। स्टैंड-अप इंडिया के तहत विनिर्माण, सेवा और कृषि से जुड़े क्षेत्रों में ग्रीनफील्ड उद्यमों की आकांक्षाओं के लिए उपलब्ध ऋण सुविधा ने महिलाओं के जीवन से वित्तीय बाधाओं को दूर किया गया है। इसके अलावा, स्टार्टअप इंडिया कोष का 10% यानि ₹1000 करोड़ की धनराशि, सिडबी द्वारा संचालित निधि है, जिसे महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप के लिए निर्धारित किया गया है। कृषि को तुलनात्मक रूप से पुरुष प्रधान क्षेत्र माना जाता है, लेकिन महिला किसान दिवस समारोहों के वार्षिक आयोजन और सरकारी कृषि लाभार्थी-संबंधी योजनाओं में धनराशि का 30% महिला किसानों के लिए निर्धारित किये जाने से स्थितियों में बदलाव आया है।

महिलाओं को परिवर्तन के ध्वजवाहक के रूप में पेश किया गया है। दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) के तहत जहां कारोबार सहायक के रूप में ‘सखियां’ स्वयं-सहायता समूहों को बुनियादी बैंकिंग सेवाएं दे रही हैं, वहीं स्वच्छ भारत जन आंदोलन के तहत महिला स्वच्छाग्रही स्वच्छता सेवाओं को घर के करीब ला रही हैं। जहां कमियां उजागर हुई हैं, उन्हें क्षमता निर्माण के जरिए दूर किया गया है। पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों (ईडब्ल्यूआर) के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम एक ऐसी योजना है, जो महिला प्रतिनिधियों को महिलाओं और बच्चों से संबंधित मुद्दों पर रचनात्मक रूप से विचार-विमर्श करने के लिए प्रशिक्षित करता है और उन्हें परिवर्तन का प्रतिनिधि बनने में सक्षम बनाता है। प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (पीएमजीडीआईएसएचए) के तहत व्यापक डिजिटल साक्षरता अभियान के माध्यम से पुरुष-महिला डिजिटल अंतर को समाप्त करने के लिए भी कदम उठाए गए हैं।

यह स्वीकार करते हुए कि शिक्षित महिलाएं सूचना व जानकारी के आधार पर सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक निर्णय लेती हैं, सरकार ने इस नेक भविष्य के लिए निवेश किया है। माननीय प्रधानमंत्री द्वारा शुभारम्भ की गयी बेटी बचाओ बेटी पढाओ (बीबीबीपी) कार्यक्रम जो बालिकाओं के अस्तित्व, संरक्षण और अधिक से अधिक शैक्षिक भागीदारी का एक राष्ट्रीय अभियान है, के अच्छी परिणाम सामने आ रहे हैं। एनएफएचएस-5 के अनुसार जन्म के समय लिंग अनुपात (एसआरबी) 991 (2015-16) से 29 अंक बढ़कर 1020 (2019-21) हो गया है। यूडीआईएसई-डेटा के अनुसार माध्यमिक स्तर के स्कूलों में लड़कियों का सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) 68.17% (2012-13) से बढ़कर 79.46% (2020-21) हो गया है। दरअसल, 2012-13 और 2019-20 के बीच माध्यमिक और उच्च माध्यमिक दोनों स्तरों पर लड़कों की तुलना में लड़कियों के लिए जीईआर में ज्यादा वृद्धि दर्ज की गयी है।

महिलाओं की स्वयं के लिए कुछ ना करने से लेकर स्वयं के लिए करने तक की यात्रा को एक समग्र सामाजिक-राजनीतिक और कानूनी वातावरण द्वारा समर्थन दिया गया है। महिला साक्षरता कार्यक्रम, क्षमता निर्माण मॉड्यूल और आजीविका उन्मुख योजनाएं; भारतीय समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था में महिलाओं के प्रवेश की बाधाओं को दूर करने के लिए कुछ रणनीतियों के रूप में पेश की गईं हैं। सरकार ने 2017 में कामकाजी माताओं के बच्चों के लिए राष्ट्रीय क्रेच योजना की शुरुआत की, ताकि देखभाल में कमी होने संबंधी बाधाओं को दूर किया जा सके। कामकाजी महिलाओं को और समर्थन देने के लिए, पूर्ववर्ती 12 सप्ताह की शर्त में एक उदार संशोधन किया गया, जिसके तहत गर्भवती महिलाओं के लिए 26 सप्ताह के सवैतनिक मातृत्व अवकाश की पेशकश की गई।

सरकार ने भी साफ़ तौर पर संपत्ति और संसाधनों के असमान वितरण को समानता में लाने का संकल्प व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना कमजोर परिवारों में महिला लाभार्थियों को रियायती एलपीजी कनेक्शन की सुविधा देती है और इस प्रकार उन्हें स्वामित्व के माध्यम से गरिमा प्रदान करती है। साथ ही, उज्ज्वला योजना महिलाओं को धुआं मुक्त वातावरण की सुविधा देती है तथा उन्हें ईंधन की लकड़ी इकट्ठा करने की कड़ी मेहनत से बचाती है, जिससे समय की बचत होती है और स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। वित्त मंत्री द्वारा हाल ही में 12 गैस सिलेंडरों पर 200 रुपये की सब्सिडी देने की घोषणा के साथ भविष्य में रिफिल न खरीदे जाने की आशंका भी समाप्त हो गयी है। ईंधन की कीमतों में कमी के साथ, यह कदम महिलाओं के लिए जीवन को आसान बनाने में मदद करेगा, जबकि विश्व स्तर पर ऊर्जा की कीमतें, तेजी से बढ़ी हैं।

इसी तरह, प्रधानमंत्री आवास योजना में भी महिला लाभार्थियों को प्राथमिकता दी जाती है। वास्तव में, आवास योजना के तहत लगभग 75% महिलाओं को घरों का स्वामित्व दिया गया है। आवास योजना, परिसंपत्ति के स्वामित्व में लंबे समय से चले आ रहे, ऐतिहासिक, असमान अंतर को दूर करती है, जो महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा और संकट के दौरान 'आरक्षित' परिसंपत्ति विकल्पों से वंचित करती थी।

सार्वजनिक काम-काज में महिलाओं की स्वायत्तता को केंद्र बिंदु में रखने के लिए, सरकार ने 3 महत्वपूर्ण फैसलों के जरिये भारतीय महिलाओं को अपना भाग्य-निर्माता बनाया है। इसके लिए, मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के माध्यम से तत्काल तीन तलाक की अशोभनीय प्रथा को समाप्त कर दिया गया है; गर्भावस्था की चिकित्सीय समाप्ति (संशोधन) अधिनियम, 2021 के माध्यम से कमजोर महिलाओं के लिए गर्भावस्था आयु को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया है तथा बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 के प्रावधानों के तहत महिलाओं के लिए कानूनी विवाह की आयु को बढ़ाकर पुरुषों के समान 21 वर्ष करने का प्रस्ताव किया गया है। इस तरह के कानूनी प्रावधानों से महिलाओं का स्व-शासन और प्रक्रियात्मक आजादी सुनिश्चित होती है।

महिला सशक्तिकरण के प्रति इस वास्तविक प्रतिबद्धता से महिलाओं की निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि हुई है। एनएफएचएस-4 (2014-15) और 5 (2019-21) के बीच, लगभग 89% विवाहित भारतीय महिलाओं ने प्रमुख घरेलू निर्णयों में भाग लिया, जो पिछले सर्वेक्षण की तुलना में 5% अधिक है। उल्लेखनीय रूप से, पहले से कहीं अधिक महिलाओं के स्वामित्व वाले घरों (43.3%) -अकेले या संयुक्त रूप से- की संख्या में वृद्धि हुई है और 78.6% बैंक खातों का वे स्वयं उपयोग करती हैं।

मोदी सरकार ने अपने 8 साल के कार्यकाल में नारी शक्ति का सम्मान करने के कई उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। वर्तमान मंत्रिपरिषद में 11 मंत्रीपद महिलाएं संभाल रही हैं, जो प्रशासनिक पहलों में महिलाओं को केंद्र बिंदु में रखने की प्रतिबद्धता को दिखाता है। अमृत ​​काल ने भारतीय महिलाओं के लिए नई भूमिकाओं की परिकल्पना करने के क्रम में लैंगिक असमानता और शक्तिहीनता की स्थिति में महत्वपूर्ण बदलाव के संकेत दिए हैं, जो 'नारी शक्ति' को रेखांकित करते हैं। पिछले 8 वर्षों में महिलायें नई भूमिकाओं में सामने आयीं हैं- मजबूत इरादों के साथ अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करते हुए देश के भाग्य का निर्णय करने वाली मतदाता के रूप में, जनमत - निर्माता के रूप में एवं व्यवहार परिवर्तन और सामाजिक परिवर्तन के प्रतिनिधि के रूप में। अमृत ​​काल में राष्ट्र-निर्माण का भविष्य निःसंदेह 'महिला' केन्द्रित होगा।
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