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सामाजिक सौहार्द में सबका साथ

सामाजिक सौहार्द में सबका साथ

(डॉ. दिलीप अग्निहोत्री-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
संघ प्रमुख मोहन भागवत के ताजा बयान पर सहमति असहमति हो सकती है, किंतु इसमें संदेह नहीं कि आस्था संबन्धी विषयों का समाधान सौहार्द के साथ होना चाहिए। इसके लिए न्यायिक प्रक्रिया उपयुक्त माध्यम हो सकता है। सभी पक्षों को इसे स्वीकार करना चाहिए। श्री रामजन्म भूमि प्रकरण का समाधान इसी प्रकार हुआ था। इस पर न्यायिक निर्णय को सभी पक्षों ने सौहार्द के साथ स्वीकार किया था। मध्यकाल में मन्दिरों का विध्वंस ऐतिहासिक सच्चाई है। अनेक स्थलों पर इसके प्रत्यक्ष प्रमाण भी है। इस तथ्य को स्वीकार करने में आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यह समस्याएं सदियों पुरानी हैं। समय समय पर यह उठती भी रही है। उचित तो यह होगा कि इनका स्थाई समाधान निकाला जाए। अन्यथा भविष्य में भी यह समस्याएं सामाजिक तनाव का कारण बनती रहेंगी। मोहन भागवत का बयान शांति और सौहार्द के अनुरूप है किन्तु यह एक तरफा नहीं हो सकता। सभी पक्षों को उदारता दिखानी होगी।

भाजपा की पूर्व प्रवक्ता का बयान बेहद निंदनीय था। किसी की आस्था पर प्रहार भारतीय संस्कृति के विरुद्ध है। भाजपा ने उन्हें पार्टी से निलंबित किया है। पूर्व प्रवक्ता ने अपना बयान वापस लिया, उस पर खेद व्यक्त किया। लेकिन भगवान भोलेनाथ पर अमर्यादित टिप्पणी करने वालों ने ऐसा कुछ नहीं किया। उनके बयानों से भी भारतीय जनमानस आहत हुआ जबकि भारत में अस्वीकार्य किए गए एक बयान पर इस्लामी मुल्कों ने अपनी असलियत बयान कर दी। चीन, अमेरीका, यूरोप के सामने ये मुल्क लाचार दिखते है। यह भारतीय विदेश नीति की कमजोरी नहीं है बल्कि यह भारतीय समाज की कमजोरी का प्रमाण है जिसमें राष्ट्रीय हित के विषयों पर भी सहमति दिखाई नही देती। यहां सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाए जाते है। अनुच्छेद-370 पर भारतीय विपक्षी पार्टियों और पाकिस्तान के बयानों में समानता दिखाई देती है। ऐसे ही बयान भारत-चीन विवाद पर दिए जाते है। तनाव के समय चर्चित विपक्षी नेता गुपचुप चीन के राजदूत से मिलने जाते हैं। वहीं नेता लंदन में कहते है कि भारत में तेल छिड़क दिया गया है। एक चिंगारी से आग लग सकती है। ऐसे ही क्रियाकलाप अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को बिगाड़ते हैं। इसलिए इस्लामी मुल्क एक अनुचित बयान को भारत से जोड़कर प्रतिक्रिया देते हैं। इस संदर्भ में भी मोहन भागवत का बयान महत्वपूर्ण है। भागवत ने कहा था वाराणसी के ज्ञानवापी मसले पर हिंदू और मुस्लिम पक्ष आपसी चर्चा से रास्ता निकालें। मुस्लिम पक्ष संविधान पर चलने वाली न्यायपालिका के फैसले का सम्मान करें। भागवत ने हिंदुओं को भी नसीहत देते हुए कहा कि हर मस्जिद में शिवलिंग खोजना बंद करें। वस्तुतः दोनों धर्मों के प्रमुख नेता इस बयान पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। उसी से भारत में शांति स्थापित हो सकती है। भारत सदियों तक गुलाम रहा। विदेशी आक्रमणकारी देश के मंदिरों को उजाड़ते रहे। यह एक इतिहास है। इसे बदला नहीं जा सकता है। एक नहीं बहुत सी मस्जिदें, मंदिर तोड़ कर बनाई गई। यदि सभी में शिवलिंग और स्वास्तिक के चिन्ह ढूंढ़ने की कोशिश की जाए तो उसका कोई अंत नहीं है और देश इसी में उलझ कर रह जाएगा। भारत में रहने वाले सभी लोग भारतमाता के पुत्र और भारतीय हैं। पूजा करने का तरीका उसका कोई भी हो। मोहन भागवत कहते है कि भारत पर आक्रमण के बाद इस्लामी शासकों ने हिंदुओं की आस्था के प्रतीक कई मंदिरों को तोड़ा। यह मूल रूप से हिंदू समुदाय का मनोबल गिराने का प्रयास था। हिंदुओं को लगता है कि ऐसे स्थानों को अब पुनर्जीवित किया जाना चाहिए, लेकिन आज के मुसलमान हमारे अपने पूर्वजों के वंशज हैं। हमें ज्ञानवापी के मुद्दे पर आपसी चर्चा से रास्ता खोजना होगा। कोई पक्ष कोर्ट जाता है तो न्यायपालिका के निर्णय का सम्मान होना चाहिए। संघ राम मंदिर आंदोलन में शामिल हुआ था। अब संघ किसी भी धार्मिक आंदोलन का हिस्सा नहीं होगा। संघ किसी कि पूजा पद्धति के खिलाफ नही है। देश को यदि विश्वगुरू बनाना है तो समाज में आपसी समन्वय, स्नेहभाव और भाईचारा रखना चाहिए।

देश के विभाजन के बाद जो लोग पाकिस्तान नहीं गए, उन्हें यहां की परंपराओं और संस्कृति के अनुरूप होना चाहिए। दोनों धर्मों के लोगों को एक दूसरे को धमकी देने से बचना चाहिए। मुसलमानों में हिन्दुओं को लेकर यदि प्रश्नचिह्न है तो चर्चा होनी चाहिए। सरसंघचालक ने कहा हिंदुत्व देश की आत्मा है और इसमें उग्रवाद के लिए कोई स्थान नहीं है। वस्तुतः भारतीय दर्शन में धर्म उपासना पद्धति तक सीमित नहीँ है।हमारे ऋषि कहते है-

धारयति इति धर्मः।

अर्थात जो धारण किया जाए वह धर्म है।इसके साथ ही धर्म के लक्षण बताए गए।इनको धारण करने से मानवीय तत्वों का जागरण होता है -

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम्।।

अर्थात धैर्य, क्षमा, दम- अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण, अस्तेय-चोरी न करना, शौच-अन्तरंग और बाह्य शुचिता, इन्द्रिय निग्रहः- इन्द्रियों को वश में रखना, धी- बुद्धिमत्ता का प्रयोग, विद्या-अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा, सत्य- मन वचन कर्म से सत्य का पालन और अक्रोध- क्रोध न करना। यह मानव धर्म के लक्षण हैं।

इसके अभाव में मानव में श्रेष्ठ गुणों का विकास सम्भव नहीं है जो अपने अनुकूल अथवा ठीक न लगे वैसा व्यवहार दूसरे के साथ नहीं करना चाहिये-

श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम्।

आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत्,

यह धर्म की कसौटी है। भाजपा ने धार्मिक भावनायें भड़काने वाले बयानों की निंदा की है। ऐसे बयान पार्टी की मूल सोच के विरोध में है। किसी धर्म के पूजनीय पर अपमानजनक टिप्पणी को पूरी तरह से अस्वीकार्य है। भारत में हजारों वर्षों से सर्वपंथ समभाव रहा है और भारतीय जनता पार्टी किसी धर्म के पूजनीय का अपमान स्वीकार नहीं करती। पार्टी किसी धर्म-संप्रदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचे ऐसे किसी विचार को ना स्वीकार करती है और न ही प्रोत्साहित करती है। देश का संविधान प्रत्येक नागरिक से सभी धर्मों के सम्मान की अपेक्षा करता है। आजादी के अमृतकाल में हम सभी को देश की एकता अखंडता और विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। दूसरी तरफ हिन्दू आस्था पर अनुचित टिप्पणी करने वालों को भी माफी मांगनी चाहिए। सामाजिक सौहार्द कायम रखने की जिम्मेदारी किसी एक पक्ष की नहीं हो सकती।
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