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पंजाब में मान बनाम मान

पंजाब में मान बनाम मान

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
पंजाब में संगरूर लोकसभा सीट पर मुख्यमंत्री भगवंत मान और शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष सिमरन जीत सिंह मान के बीच मुकाबला था। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल और भाजपा समेत अन्य दलों को पटकनी देने वाले भगवंत मान को सिमरन जीत सिंह मान ने पराजित कर दिया। संगरूर लोकसभा उपचुनाव में सिमरन जीत सिंह मान ने आम आदमी पार्टी (आप) के गुरमेल सिंह को पराजित किया है। भगवंत मान मुख्यमंत्री बनने से पहले लोकसभा में आम आदमी पार्टी के एकमात्र सांसद थे। उनके इस्तीफे के बाद रिक्त सीट पर उपचुनाव हुआ। अब लोकसभा में आपका कोई सांसद नहीं है। सिमरन जीत सिंह मान हालांकि विवादास्पद नेता रहे हैं लेकिन संगरूर की जनता ने इस बार उन पर भरोसा जताया है। उधर, मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अपने चुनावी वादे पूरे करते हुए 27 जून को राज्य का बजट पेश किया। इसमें 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने का प्रावधान किया गया है। इसके बावजूद जनता ने भगवंत मान के कामकाज पर सवाल तो उठा ही दिया है।

शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान ने संगरूर लोकसभा उपचुनाव में जीत हासिल कर आम आदमी पार्टी को लोकसभा सदन में शून्य कर दिया है। उनकी जीत के बाद अब आप का लोकसभा में एक भी सांसद नहीं है। भगवंत मान सीएम बनने से पहले लोकसभा में आप के एकमात्र सांसद थे। उपचुनाव के लिए हुई मतगणना के कई राउंड्स में सिमरनजीत सिंह मान और आम आदमी पार्टी के गुरमेल सिंह के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला। अंत में सिमरनजीत सिंह मान ने आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार गुरमेल सिंह को शिकस्त दे दी है।

चुनावी नतीजों में कांग्रेस तीसरे, भाजपा चैथे व शिरोमणि अकाली दल (बादल) पांचवें स्थान पर रहा। इन तीनों पार्टियों की चुनाव में जमानत जब्त हो गई है। आम आदमी पार्टी द्वारा विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत हासिल करने के तीन माह बाद ही उपचुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा है। सिमरनजीत सिंह मान भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी (आईपीएस) हैं। जिन्होंने विभिन्न पदों पर कार्य किया है। मान ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में जून 1984 में आईपीएस के पद से इस्तीफा दे दिया था। दो बार के सांसद मान ने क्रमशः 1989 और 1999 में लोकसभा में तरनतारन और संगरूर का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 2014 का लोकसभा चुनाव खडूर साहिब से लड़ा और हार गए थे। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में वह आप के उम्मीदवार प्रो. जसवंत सिंह से भी चुनाव हार चुके हैं।

भगवंत सिंह मान को राज्य के नए समीकरणों पर ध्यान देना होगा। हालांकि उनकी सरकार ने बजट में चुनाव के समय किये वादे पूरे करने का प्रयास किया है। पंजाब सरकार के वित्त मंत्री हरपाल चीमा ने 1.55 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया। इस दौरान कोई नया टैक्स नहीं लगाया गया। बजट का फोकस शिक्षा, स्वास्थ्य और किसानी पर रहा। बजट का कुल आकार 1,55,860 करोड़ रुपये है। बजट आकार में पिछली सरकार के मुकाबले 14.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। राजस्व वृद्धि आबकारी नीति के माध्यम से होगी, जिससे राज्य के राजस्व में 56 प्रतिशत की वृद्धि होगी। जीएसटी संग्रह में उछाल से राज्य को पिछले वर्ष की तुलना में 27 प्रतिशत की वृद्धि से ज्यादा राजस्व प्राप्त होगा। चूंकि राज्य ने 155859.78 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव रखा है, इसलिए इस साल राजस्व घाटा 12553.80 करोड़ रुपये होगा। राज्य सरकार ने बाजार ऋण के रूप में 31804.99 करोड़ रुपये जुटाने का प्रस्ताव किया है, जो पिछले साल राज्य द्वारा जुटाए गए 27362.74 करोड़ रुपये से अधिक है। राज्यों के कर्ज पर ब्याज के भुगतान पर 20,122 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। हालांकि, कुल कर्ज चुकाने में राज्य की कमाई का 36,068.67 करोड़ रुपये लगेगा। वित्त वर्ष 2022-23 में 7 करोड़ रुपये की लागत से वेरका, अमृतसर में एक नया क्विक फ्रीजिंग सेंटर स्थापित करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा, इस वित्तीय वर्ष को शुरू करने के लिए 11 करोड़ रुपये की लागत से मालसियां, जालंधर में एक एकीकृत हाई-टेक सब्जी उत्पादन-सह-प्रौद्योगिकी प्रसार केंद्र का प्रस्ताव है। सहकारिता क्षेत्र के लिए 1,170 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 35.67 प्रतिशत अधिक है।

इसके बावजूद संगरूर का उपचुनाव चेतावनी है। आईपीएस अधिकारी रहे मान ने 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के विरोध में नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। उन पर इंदिरा गांधी की हत्या की साजिश में शामिल होने से लेकर देशद्रोह तक के कई मुकदमे चल चुके हैं। उन्हें 1984 में भारत-नेपाल सीमा से गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद वे पांच साल तक जेल में रहे। वे 1989 में पहली बार सांसद चुने गए और उनकी रिहाई के साथ ही तत्कालीन सरकार ने उन पर चल रहे तमाम मुकदमे भी वापस ले लिये थे। दो बार सांसद रह चुके सिमरनजीत सिंह मान पृथक खालिस्तान की मांग के लिए भी जाने जाते हैं। पिछले काफी समय से उनका जनाधार लगातार कम हो रहा था, लेकिन 2015 में बेअदबी की घटनाओं के बाद बुलाए गए ‘सरबत खालसा’ ने उन्हें एक बार फिर से चर्चा में ला दिया। संगरूर को आपने गंभीरता से नहीं लिया। शिरोमणि अकाली दल- बादल ने पंजाब के पूर्व सीएम बेअंत सिंह के हत्या के दोषी राजोआना की बहन कमलदीप कौर राजोआना को संगरूर लोकसभा उपचुनाव के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया था। इससे सूबे की सियासत गरमा गई। संयोग से उपचुनाव के लिए नामांकन के आखिरी दिन ऑपरेशन ब्लूस्टार की बरसी थी। ऐसे में आरोप लगा कि संगरूर उपचुनाव में खराब प्रदर्शन के डर से शिअद (बादल) सिख कट्टरपंथियों तक पहुंचकर पार्टी को पुनर्जीवित करना चाहती है। यही नहीं, सिख बंदी की रिहाई के आंदोलन से जुड़े कुछ लोगों ने शिअद (बादल) पर अवसरवादी होने का भी आरोप लगया था। सुखबीर बादल की शिअद जेलों में बंद सिख कैदियों के परिवार से किसी को टिकट देने पर विचार कर रही थी। वह चाहती थी कि शिअद (अमृतसर) भी उनका समर्थन करे लेकिन पार्टी सुप्रीमो ने सुखबीर बादल से किनारा कर लिया और सिमरनजीत मान ने संगरूर से अपना नामांकन भर दिया।
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