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प्रवक्ताओं का व्यवस्थित प्रशिक्षण आवश्यक :-प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज

प्रवक्ताओं का व्यवस्थित प्रशिक्षण आवश्यक :-प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज

मस्जिदे ,मदरसे, और सभी इबादतगाहें तथा सभी ईसाई चर्च वस्तुतः राजनीतिक प्रशिक्षण के केंद्र है ।
सघन राजनीतिक प्रशिक्षण ही वहां किया जाता है।।
कैसे अपने मत के पक्ष में नितांत झूठ को सुहाने ढंग से प्रस्तुत करना ,।
कैसे हिंदू धर्म के विषय में सर्वथा झूठ प्रसारित करना,
इन सब को इन स्थानों में सिखाया जाता है।।
मस्जिद में तकरीर देना सिखाते हैं और चर्च में संवाद के जरिए बहुत ही धैर्य पूर्वक और बहुत ही संवेदनशून्य होकर तथा संवेदना का नाटक करते हुए ज़िद पूर्वक अपना पक्ष रखने की ट्रेनिंग जबरदस्त दी जाती है ।।।
हिंदुओं का ऐसा कोई राजनीतिक प्रशिक्षण कहीं भी नहीं होता ।।
आर्य समाज को ऐसे प्रशिक्षण का केंद्र कह सकते हैं।।
पर उसके जो प्रशिक्षण की भाषा है ,उसमें वे एक मत विशेष का प्रतिपादन इस तरह करते हैं कि वह एक साथ हिंदुओं और मुसलमानों तथा ईसाइयों पर लागू हो जाती है इसलिए विशेष कर इस्लाम और ईसाई यत के विरुद्ध और हिंदू धर्म के पक्ष के संदर्भ में आर्य समाज के तर्क प्रभावहीन हो जाते हैं ।।
चतुर धूर्त ईसाई और मुसलमान उनका समर्थन करते हुए उन्हें हिंदू धर्म के विरुद्धमोड़ देते हैं ।
उन्मत्त समूहों के द्वारा इस्लाम और ईसाइयत के आड़ में हिंदू धर्म का नाश करने की योजना को हिंदू धर्म के विरुद्ध युद्ध समझ कर केवल उन पर चोट करने के लिए प्रशिक्षण देने की जो आवश्यकता है
उस विषय में आर्य समाज की शैली किसी काम की नहीं है।।
मैं उसे अच्छी अथवा बुरी नहीं कह रहा है।
वह निष्प्रभावी है ,बेअसर है ,बेजान है, प्रयोजन की सिद्धि में सर्वथा अक्षम और असमर्थ है ।।
हिंदू द्रोहियों से तर्क करने के लिए, व्यवस्थित संवाद करने के लिए और बात करने के लिए भी एक व्यवस्थित राजनैतिक बुद्धि से संपन्न शिक्षण चाहिए।।

इसके विषय में जागृत और सक्रिय समूहों को विचार करना चाहिए ।।

साधन संपन्न समूह ही यह काम कर सकते हैं ।।
अपने स्तर पर तो मैं वर्षों से यह कर ही रहा हूं और बहुत सारे प्रतिभाशाली युवक युवती मेरे इस प्रयास से तैयार भी हुए हैं ।।

परंतु आश्चर्य की बात है कि भाजपा जैसे संगठन में पर्याप्त संख्या में ऐसी राजनीतिक बुद्धि से प्रशिक्षित लोग अभी नहीं हैं।

थोड़े से ही लोग हैं।

उनकी संख्या बढ़नी चाहिए।।
बड़ा काम करना है तो जैसे संघ में होता है उसी प्रकार भाजपा में भी अधिक से अधिक लोगों को उस कार्य में जोड़ना चाहिए ।।
वहां इस प्रतिस्पर्धा के भाव से नहीं रहना चाहिए कि हमारी पार्टी का दूसरा आदमी भी हमारे जैसा ही चमक जाएगा इसलिए इसे वह रहस्य नहीं सिखाएं जिसके द्वारा हम सफल होते हैं ।।
ऐसा सोचना राष्ट्र की दृष्टि से ठीक नहीं है।
पार्टियों की संरचना अभी यूरोपीयही है जो प्रतिस्पर्धा के ढांचे में चली है ।
अभी हमने उसे नेहरू के समय से अपना लिया है।।
अभी तत्काल पार्टियों का ढांचा बदलने वाला नहीं है।
परंतु उसकी अंतर्वस्तु बदली जा सकती है और सामंजस्य सौहार्द उदारता तथा समन्वय की सनातन भारतीय परंपरा में पार्टियों का परिवेश भीतर से ढाला जा सकता है ।
दिखाऊ तौर पर तो ऐसे परिवेश का स्वांग किया ही जाता है ।
परंतु तत्वतः ऐसा परिवेश है नहीं।।
उसे बनाने की जरूरत है ।।
बड़ी संख्या में बौद्धिक रूप से समर्थ प्रवक्ताओं का निकलना अत्यंत आवश्यक है ।।

क्योंकि शत्रु जहां छल फरेब और अवसर पाते ही क्रूरता तथा पैशाचिकता का सहारा लेते हैं वही वह निरंतर बौद्धिक आक्रमण भी करते ही रहते हैं ।
अतः सभी मोर्चों पर तैयारी तो करनी ही होगी ।।


जय श्री राम।प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज
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