सभी के लिए न्याय तक पहुंच
लेखक-श्री किरेन रिजिजू, विधि और न्याय मंत्री, भारत सरकार
16 मई, 2014 भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था। भारत के मतदाताओं ने श्री नरेन्द्र मोदी जी की दूरदर्शी सरकार के पक्ष में बहुत उम्मीदों के साथ वोट दिया। हालांकि, अलग-अलग विचार और मतभेद भारत के अविभाज्य अंग हैं और लोकतांत्रिक मूल्यों में सच्ची आस्था रखनेवाले व्यक्ति के रूप में, मैं आलोचनाओं को खारिज भी नहीं करूंगा। लेकिन आलोचना रचनात्मक और तथ्यात्मक होनी चाहिए। इस लेख में, मैं, किरेन रिजिजू, विधि और न्याय मंत्री, दुनिया के सामने विधि और न्याय मंत्रालय की शानदार प्रगति का विवरण पेश करूंगा तथा ये सभी बातें तथ्यात्मक रूप से सही होंगी ।
क्या हमने पर्याप्त कार्य पूरे कर लिए हैं? बिल्कु्ल नहीं। क्या हम सही रास्ते पर हैं? बिल्कुल।
2019 में, श्री नरेन्द्र मोदी जी ने एक आह्वान किया। भारतीय न्यायालयों में 3.30 करोड़ से अधिक मामलों के लंबित होने को ध्यान में रखते हुए मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने केंद्रीय विधि और न्याय मंत्रालय को देश की न्याय प्रणाली में "देरी और लंबित मामलों की संख्या को कम करने का एक तरीका ढूंढने’ का निर्देश दिया। मैं विश्वास के साथ यह कह सकता हूं कि हमने न केवल इनका समाधान करने के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रयास किये हैं, बल्कि आने वाले वर्षों के लिए सफलता की आधारशिला भी रखी है।
शुरुआत विधायी विभाग की उपलब्धियों से- प्रणालीगत कानूनी सुधार के लिए पिछले आठ वर्षों के दौरान सरकार द्वारा कुल 1,486 पुराने और निरर्थक कानूनों को निरस्त किया गया है। निर्वाचक पंजीकरण नियम और चुनाव संचालन नियम, 1961 में संशोधन के द्वारा विभिन्न फॉर्म को सरल बनाया गया है, ताकि ये उपयोगकर्ता-अनुकूल हो सकें। एक मतदाता के रूप में पंजीकरण की सुविधाजनक प्रक्रिया के लिए, हमने चुनाव संचालन नियम, 1961 में भी संशोधन किया है, ताकि 80 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगजनों और सशस्त्र बलों के मतदाताओं को डाक मतपत्र की सुविधा प्रदान की जा सके।
तलाक-ए-बिद्दत के माध्यम से तलाक की रोकथाम के लिए मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के कार्यान्वयन के दूरगामी प्रभाव होंगे और यह फिर से इस बात को रेखांकित करता है कि जब हमारी सरकार "सबका साथ, सबका विकास" कहती है, तो हम इसके लिए वास्तव में प्रतिबद्ध होते हैं।
न्याय विभाग (डीओजे) ने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के साथ दो चरणों में 'हाशिए के लोगों के लिए न्याय तक पहुंच' नामक एक परियोजना में भागीदारी की। दोनों चरणों के तहत, कार्यक्रम ने प्रमुख न्याय सेवा प्रदाताओं की संस्थागत क्षमताओं में सुधार करने पर ध्यान केंद्रित किया, जिनसे वे गरीबों और वंचितों की प्रभावी रूप से सेवा कर सकें।
डीओजे ने राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों, राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, सरकारी विभागों, सीएसओ, शैक्षणिक संस्थानों आदि के साथ साझेदारी सहित अभिनव मॉडल और प्रथाओं के माध्यम से 38 परियोजनाओं को सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया।
2020 में, नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) के एक मूल्यांकन के द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर इन कार्यक्रमों का विस्तार करने की सिफारिश की गयी। इसके परिणामस्वरूप "भारत में न्याय तक समग्र पहुंच के लिए अभिनव समाधान का डिजाइन तैयार करना" (दिशा) नामक न्याय योजना तक पहुंच को सुगम बनाने के लिए एक व्यापक और व्यवस्थित समाधान सामने आया। यह योजना 'सभी के लिए न्याय तक पहुंच' सुनिश्चित करने के माध्यम से एसडीजी-16 के कार्यान्वयन को गति प्रदान करती है।
“दिशा” के महत्वपूर्ण उद्देश्य थे-टेली-लॉ के माध्यम से मुकदमा-पूर्व तंत्र को मजबूत करना, न्याय बंधु कार्यक्रम के माध्यम से नि:शुल्क कानूनी सेवाओं की प्रभावी व्यवस्था विकसित करना और ‘न्याय मित्र’ कहे जाने वाले सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के कैडर के माध्यम से अदालतों में लंबित मामलों को निपटाने की सुविधा प्रदान करना।
टेली-लॉ सबसे महत्वाकांक्षी प्लेटफार्मों में से एक है, जिनके सुखद परिणाम सामने आये हैं। 2017 में लॉन्च किया गया, टेली-लॉ एक ई-इंटरफ़ेस प्लेटफ़ॉर्म है, जिसका उद्देश्य मुकदमा-पूर्व सलाह के माध्यम से समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाना है। इसके लिए पैनल वकीलों की एक समर्पित टीम, साझा सेवा केंद्र (सीएससी) पर उपलब्ध वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग/टेलीफोन सुविधाओं के जरिये उन्हें सलाह देती है।
कानूनी सेवा प्राधिकरणों ने न्याय देने के पारंपरिक तरीकों में डिजिटल तकनीक को सरलता से एकीकृत किया है और लोक अदालत को वर्चुअल प्लेटफार्म पर आयोजित किया जा रहा है। यह न्याय तक लोगों की पहुंच में वृद्धि और सुधार करता है तथा मुकदमा-पूर्व तथा लंबित मामलों का निपटारा करके अदालतों पर बोझ कम करता है।
2016 से अब तक, राज्य लोक अदालतों के माध्यम से 65.22 लाख मामलों, राष्ट्रीय लोक अदालतों के माध्यम से 502.11 लाख मामलों और स्थायी लोक अदालतों के माध्यम से 5.89 लाख मामलों को निपटाया गया है।
कोविड-19 के दौरान, जिला और उच्च न्यायालयों ने लगभग 1.90 करोड़ मामलों (31 मार्च 2022 तक) की सुनवाई की और सर्वोच्च न्यायालय ने 2,18,891 से अधिक वर्चुअल सुनवाई (14 मार्च 2022 तक) की, जिनसे यह वर्चुअल सुनवाई के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी बन गया।
2019 में यौन अपराधों से सम्बंधित मामलों के समयबद्ध अंतिम फैसले के लिए देश भर में 389 विशेष पॉक्सो कोर्ट समेत 1,023 फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (एफटीएससी) की स्थापना की गई। 406 विशेष पोक्सो न्यायालयों सहित 722 एफटीएससी पहले से ही परिचालन में हैं।
नवंबर 2021 में, मैंने संविधान दिवस के अवसर पर "भारत के संविधान पर ऑनलाइन पाठ्यक्रम" का उद्घाटन किया था, जिसे नेशनल एकेडमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च (एनएएलएसएआर), यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद के सहयोग से कानूनी मामलों के विभाग द्वारा शुरू किया गया था। पाठ्यक्रम संविधान से परिचित कराता है और 15 संकल्पना आधारित वीडियो की एक श्रृंखला के माध्यम से ऐतिहासिक विकास का परीक्षण करता है।
मुझे खुशी है कि श्री नरेन्द्र मोदी जी के कुशल नेतृत्व में कानून और न्याय मंत्रालय ने इस लक्ष्य की दिशा में काफी प्रगति की है। मुझे इस बात की भी खुशी है कि मैं इस प्रक्रिया का हिस्सा रहा हूं। जय हिन्द। ***
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