पर्यावरण : एक परख
जल- जंगल -जमीन को लूटकर,
शहर बसा रहे हैं।
अविवेक सब काम यहाँ कर,
पर्यावरण दिवस मना रहे हैं।
इस परिवर्तन के पराक्रम को,
क्यों समझ न पा हम रहे हैं।
भौतिकवाद से हाथ मिलाकर,
क्या अस्तित्व नहीं मिटा रहे हैं।।
कागज पर नित्य नयी-नयी,
योजना बना रहे हैं।
आजादी का पर्व मना परंपरा का रस्म निभा रहे हैं।।
स्वच्छ जीवंत पर्यावरण कैसे हो,
कैसे बचे अस्तित्व धरा का।
तुम्ही "विवेक" उन्हें राह बता,
जो स्वच्छ पर्यावरण को भुला रहे हैं।।
डॉक्टर विवेकानंद मिश्र,
डॉक्टर विवेकानंद पथ गोल बगीचा,गया (बिहार)हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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