मेहबूब के लिए...
मेरा मेहबूब आया है
जन्नत के इस बाग में।
जिसे सजाया है वसुन्धरा ने
चाँद और सितारों से ।
धरा ने भी बिछा दी है
सफेद चादर मोतीयों की।
और महका के रख दिया है
रातरानी ने इस बाग को।।
बहुत शुक्र गुजार हूँ
सौंदर्य की देवी का ।
जिसने मेरे मेहबूब को
इतना सुंदर बनाया है।
और उससे मिलने के लिए
जन्नत जैसा बाग बनाया है।
जिसमें मिलकर हम दोनों
मोहब्बत की कहानी लिख सके।।
जब भी मोहब्बत का जिक्र
इस बाग में किया जायेगा।
तब तब तुम दोनों को भी
याद किया जायेगा।
जैसे युगो के बाद भी आज
राधाकृष्ण को याद किया जाता है।
वैसे ही लोगों के दिलों में
तुम्हारी मोहब्बत जिंदा रहेगी।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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