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चुनाव आयोग को मिला नया शेषन

चुनाव आयोग को मिला नया शेषन

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी और निर्वाचन आयोग को शक्तिशाली बनाने का जब भी कोई प्रयास करता है तो टीएन शेषन की याद आ जाती है। मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने भ्रष्टाचार में लिप्त गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों की पहचान करने के लिए जारी ‘सफाई’ अभियान के बीच इसी तरह का प्रयास किया है। केंद्रीय चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति हासिल करने के लिए नए सिरे से प्रयास शुरू किया है। चुनाव कानून निर्वाचन आयोग को लोगों के समूह को एक राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत करने की शक्ति प्रदान करता है, लेकिन इसे पंजीयन रद्द करने का अधिकार नहीं देता। समझा जाता है कि हाल ही में केंद्रीय विधायी सचिव के साथ बातचीत में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने राजनीतिक दलों का पंजीकरण समाप्त करने के लिए यह अधिकार दिये जाने पर जोर दिया था।

चुनाव आयोग कुछ आधारों पर किसी राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत अधिकार प्रदान करने के लिए सरकार को अपना प्रतिनिधित्व देता रहा है। आयोग का मानना है कि कई राजनीतिक दल पंजीकृत हो जाते हैं, लेकिन कभी चुनाव नहीं लड़ते, ऐसे दल सिर्फ कागजों पर होते हैं। चुनाव आयोग (ईसी) का मानना है कि आयकर छूट का लाभ उठाने के लिए राजनीतिक दल बनाने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। आयोग ने हाल ही में कुल 198 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को अपने रजिस्टर से हटा दिया था, क्योंकि ‘सफाई अभियान’ के दौरान इन दलों का कोई अस्तित्व नहीं पाया गया था। हाल ही में एक बयान में, चुनाव आयोग ने कहा था कि गंभीर वित्तीय अनियमितता में शामिल तीन ऐसे दलों के खिलाफ आवश्यक कानूनी और आपराधिक कार्रवाई के लिए राजस्व विभाग को एक संदर्भ-पत्र भी भेजा गया है।

मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और दोनों चुनाव आयुक्त (ईसी) किसी तरह का आयकर छूट का फायदा नहीं लेंगे। बतौर नए मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के नेतृत्व में आयोग की पहली बैठक में यह फैसला लिया गया। इस संबंध में केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेज दिया गया है। अभी तक व्यय से जुड़े मासिक भत्ते में आयकर छूट सीईसी और ईसी को मिलती है। इसके साथ ही सालाना तीन एलटीसी की जगह अब सिर्फ एक एलटीसी (लीव ट्रैवल कंसेशन) लेने का फैसला किया गया है। राजीव कुमार ने मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा की जगह ली है। राजीव कुमार 15 मई, 2022 से मुख्य चुनाव आयुक्त बने हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक, 19 फरवरी 1960 को जन्मे और बीएससी, एलएलबी, पीजीडीएम और एमए (पब्लिक पॉलिसी) की डिग्री रखने वाले राजीव कुमार, बीते 36 सालों से भारत सरकार में अधिकारी हैं। उन्होंने सामाजिक क्षेत्र, पर्यावरण और वन, मानव संसाधन, वित्त और बैंकिंग क्षेत्र में केंद्र और राज्य के विभिन्न मंत्रालयों में काम किया है।

निर्वाचन आयोग ने अभी कुछ दिनों पूर्व ही अपने रजिस्टर से उन 111 राजनीतिक दलों को हटाने का फैसला किया जो सत्यापन कवायद के दौरान ‘अस्तित्वहीन’ पाए गए। आयोग के अनुसार राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (सीईओ) से रिपोर्ट मिली थी कि सत्यापन के दौरान ये ‘पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल’ ‘अस्तित्वहीन’ पाए गए या अधिकारियों द्वारा उनके पतों पर भेजे गए पत्रों को डाक विभाग वितरित नहीं कर सका। इसके बाद आयोग ने यह कार्रवाई की और चुनाव चिह्न आदेश (1968) के तहत इन दलों को दिए गए विभिन्न लाभों को वापस लेने का फैसला किया। इनमें एक समान चुनाव चिन्ह का आवंटन भी शामिल था। निर्वाचन आयोग ने एक बयान में कहा कि कोई भी पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल (आरयूपीपी) अगर इस फैसले से असंतुष्ट है तो वह सभी सबूतों, वर्षवार वार्षिक लेखा परीक्षित खातों, व्यय रिपोर्ट और पदाधिकारियों की अद्यतन सूची के साथ 30 दिनों के भीतर संबंधित सीईओ से संपर्क कर सकता है। यह भी उल्लेखनीय है कि इस महीने की शुरुआत में, आयोग ने 87 ऐसे राजनीतिक दलों को अपने रजिस्टर से हटा दिया था। आयोग सूत्रों ने उन विभिन्न दलों से जुड़े विशिष्ट विवरण साझा किए जिन्होंने कानूनों और नियमों का उल्लंघन किया है। ये विवरण सार्वजनिक तौर पर राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइटों पर उपलब्ध है। निर्वाचन आयोग ने कहा कि गंभीर वित्तीय अनियमितताओं में शामिल ऐसे तीन दलों के खिलाफ आवश्यक कानूनी और आपराधिक कार्रवाई के लिए राजस्व विभाग को जानकारी दी गई है। भारत में करीब 2,800 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल हैं। आयोग विभिन्न राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की अनुमति देने के लिए सरकार पर दबाव बनाता रहा है। आयोग ने कई मौकों पर कानून मंत्रालय को चुनाव कानून में संशोधन करने के लिए भी लिखा है ताकि उसे राजनीतिक दलों के पंजीकरण को रद्द करने का अधिकार मिल सके जिससे वह वित्तीय और अन्य अनियमितताओं में लिप्त पार्टियों पर रोक लगा सके। आज अगर देश में निष्पक्ष और स्वतंत्र माहौल में चुनाव हो पाता है तो इसका श्रेय टी.एन.शेषन को जाता है। उनका 10 नवंबर, 2019 को निधन हो गया। देश के दबंग चुनाव आयुक्त के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले टी.एन.शेषन नौकरशाही में भी सुधार के जनक थे। ईमानदारी और कानून के प्रति अपनी निष्ठा की वजह से वह बहुतों को खटकते भी थे। इस वजह से उनके विरोधी उनको सनकी और तानाशाह तक भी कहते थे लेकिन वह व्यवस्था में क्रांति लाने वाले इंसान, मेहनती, सक्षम प्रशासक, योग्य नौकरशाह, बुद्धिजीवियों और मध्य वर्ग के नायक थे। उनके जीवन की बहुत सी बातें लोगों को अभी पता नहीं है। शेषन की पहली तैनाती तमिलनाडु के मदुरई जिले के डिंडीगुल में सब कलेक्टर के तौर पर हुई। वहां उन्होंने सब कलेक्टर के अधिकारक्षेत्र से बाहर के प्रभारों को भी संभाला। अपनी पोस्टिंग के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने मजबूत प्रशासक की अपनी छवि बनाई। कहानी कुछ इस तरह से है। हरिजन समुदाय के एक व्यक्ति की कांग्रेस पार्टी की स्थानीय अध्यक्ष से शादी हुई थी। हरिजन पर फंड के घपले का आरोप लगा जिसे टी.एन. शेषन ने गिरफ्तार करवा दिया। उसकी गिरफ्तारी के चंद दिनों बाद एक मंत्री का इलाके का दौरा हुआ। उसने शेषन से हरिजन को छोड़ने की मांग की और उन पर दबाव बनाया लेकिन टी.एन.शेषन मंत्री के दबाव के आगे नहीं झुके और आरोपी को रिहा नहीं किया।प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार में सुब्रमण्यन स्वामी कानून मंत्री थे जो उनके दोस्त थे। सुब्रमण्यन स्वामी ने शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त का पद ऑफर किया। उन्होंने शुरू में तो इस ऑफर को ठुकराना चाहा लेकिन उन्होंने पहले राजीव गांधी से मशविरा किया, फिर तत्कालीन राष्ट्रपति आर.वेंकटरमन, अपने बड़े भाई और अपने ससुर से सलाह ली। उसके बाद उन्होंने ऑफर स्वीकार कर लिया और दिसंबर 1990 में देश के मुख्य चुनाव आयुक्त का प्रभार संभाल लिया। इसके बाद उन्होंने देश की चुनाव व्यवस्था में जो सुधार किया, उससे उनका नाम इतिहास में अमर हो गया। उनके चुनावी सुधार कुछ इस तरह से हैं। आचार संहिता को सख्ती से लागू कराया। सभी मतदाताओं के लिए फोटो लगा पहचान पत्र शुरू कराया। उम्मीदवारों के खर्चों पर अंकुश लगाया। मतदाताओं को लुभाने या डराने की व्यवस्था को खत्म किया। चुनाव के दौरान शराब और अन्य चीजों के बांटने पर सख्ती से रोक लगवायी। उन्हांेने प्रचार के लिए सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग पर रोक, जाति या सांप्रदायिक आधार पर मतदाताओं से वोट देने की अपील पर रोक और चुनाव प्रचार के लिए धर्म स्थलों के इस्तेमाल पर भी रोक लगायी थी।
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