बचपन खोकर आई जवानी,
साथ में लाई रंग अनेक।
दिलको दिलसे मिलाने को,
देखो आ गई ये जवानी।
अंग-अंग अब मेरा फाड़कता,
आता जब सावन का महीना।
नए-नए जोड़ों को देखकर,
मेरा भी दिल खिल उठता।।
अंदर की इंद्रियों पर अब,
नहीं चल रहा मेरा बस।
नया-नया यौवन जो अब,
अंदर ही अंदर खिल रहा।
तभी तो ये दिल की पीड़ा,
अब और सही नहीं जा रही।
ऊपर से सहेली की नई बातें,
दिल में आग लगा रही हैं।।
कैसे अपने मन को समझाएं,
दिलकी पीड़ा किसे बताएं।
रात-रात भर हमें जगाए,
रंगीन सपनों में ले जाए।
भरकर बाँहों में अपनी वो,
प्रेम रस दिल में बरसाए।
और मोहब्बत को अपनी
हमारे दिल को दिखलाए।।
सच में ये सावन का महीना,
आग लगाकर रखता मन में।
और न ये बुझाने देता है,
अंतरमन की आग को।
कभी-कभी खुद के स्पर्श से,
खिल जाती दिल की बगिया।
फिर बैचेनी दिल की बढ़ जाती,
मनभावन की खोज में॥
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबईहमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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