Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

युग,धर्म और मोक्ष

युग,धर्म और मोक्ष

हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग, ये चार युग हैं । सतयुग से लेकर कलियुग तक धर्म का क्रमशः धीरे धीरे लोप होते जाता है और कलियुग के अंतिम चरण आते आते तो धर्म लगभग लुप्त ही हो जाता है । ऐसी मान्यता है कि वर्तमान में अभी कलियुग का प्रथम चरण ही चल रहा है । और अभी ही समाज में इतनी सारी बुराईयां देखने को मिल रही हैं ।
हर युग में मानव का यह लक्ष्य रहता है कि वह सत्कर्म, ईश्वर की भक्ति और धर्मपारायण कर्म करे ताकि उसे जीवन मरण से छुटकारा मिले और मोक्ष प्राप्त हो । परंतु जीवन धारण करने के उपरांत ईश्वर प्रेरित संसार के माया के वश में आकर वह यह सब भुला जाता है और युगों युगों तक जन्म मृत्यु के बंधन में पड़कर विभिन्न प्राणियों के रूप में संसार में भटकता रहता है । विशेष कर कलियुग को तो इन सारे अवगुणों का भंडार ही माना जाता है ।
हर युग में मानव यह प्रयास करता है कि कैसे इस संसारिक आवागमन से छुटकारा मिले और मोक्ष प्राप्त हो । इसके लिए वह तरह तरह से योग,जप,पुजा पाठ आदि करने का प्रयत्न करता है । परंतु हर युग में ये रास्ते बहुत ही कठीन है । सतयुग में ज्यादातर लोग योगी और ग्यानी होते हैं और ईश्वर में ध्यान लगाकर तथा एकांत स्थानों, जंगलों आदि में जाकर अपने योग के प्रभाव से भवसागर पार कर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं । त्रेतायुग में भगवान को समर्पित सब काम और यग्य आदि करके भवसागर पार कर जाते हैं । द्वापरयुग में मानव ईश्वर के चरणों कि पुजा करके भवसागर पार कर जाते हैं । परंतु भवसागर पार करने के ये सभी रास्ते अनेक कठीन हैं और इस रास्ते पर चलना और भी दुष्कर है ।
इस लिहाज से कलियुग को अच्छा मानते हैं, क्योंकि कलियुग में मनुष्य बहुत योग,जप,तप आदि न करके केवल भगवान का नाम जपता है तो वह भवसागर पार कर मोक्ष प्राप्त कर सकता है ।वह अगर केवल हरि नाम का गान करता है तो उसे ईश्वर की प्राप्ति होती है और वह भवसागर पार कर मोक्ष को प्राप्त हो जाता है । श्रीरामचरितमानस में यह वर्णन है कि :-
कलियुग सम युग आनि नहिं, जौं नर कर विश्वास ।
गाई राम गुन गन विमल, भव तर बिनहिं प्रयास। ।।
कृत युग, त्रेता, द्वापर, पुजा मख अरु योग ।
जो गति होई सो कलि , हरि नाम ते पावहिं लोग ।।
हरि माया कृत दोष गुन , बिनु हरि भजन न जाहिं ।
भजिअ राम तजि काम सब , अस विचार मन माहिं ।।
जय श्री राम, जय श्री सीताराम

हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ