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निराशा की भट्टी पर पक

निराशा की भट्टी पर पक

निराशा की भट्टी पर पक, तुम कुन्दन सा बन जाओगे
तेज आँधियों में उड़कर, तुम बाज़ सदृश बन जाओगे।
है हमको तुमसे प्यार बहुत, इसीलिए है ध्यान बहुत,
लू थपेड़े झेल सके ना, धूप में कैसे चल पाओगे?

हो माटी का एक लोथड़ा, खुद का तुमको भान नहीं,
बीज के अन्दर वृक्ष छिपा, उसको ज़रा पहचान नहीं।
चढ़ी चाक पर माटी, फिर बर्तन बनकर अग्नि में तपते,
बिना पके मिट्टी ही रहते, कर्ता सच से अन्जान नहीं।

अ कीर्ति वर्द्धन
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