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वो पल

वो पल

बिताये थे तुम्हारे साथ कल
धरोहर है मेरी
उनका हर पल।
व्यस्तता के बावजूद
मेरे आगमन पर
मिटि़ग छोड कर आना
वो कोमल सी मुस्कराहट
प्रथम मुलाकात के बावजूद
अपनेपन का अहसास
खिलखिलाती हँसी
खनकती सी आवाज
सुरक्षित है
मेरे जहन में आज।
लम्हों को
समेटने की चाह
आतिथ्य में
सब खिलाने का चाह
पानी, फ्रुटी, चाय चिप्स
कुछ बाकी न रह जाये
ऐसा कुछ भाव
मुझे याद है।
हाँ
मैं भी तो चाहता था
तुमसे मिलना
पढता था तुम्हें रोज ही
फेस बुक के पन्नों पर
हो गया था मुरीद
तुम्हारे शब्दों का।
सच
मुझे बहुत अच्छा लगा
तुमसे मिलकर
निष्छल हँसी
सरल स्वभाव
मिलनसार
और मृदुल व्यवहार देखकर।
मगर लगा
कहीं कुछ है
अनकहा
अनसुलझा
तुम्हारे मन में।
शायद
भूतकाल की कोई पीडा
कोई अधुरा सपना
कुछ पाने की चाह,
हाँ
कहीं कुछ टूटा सा लगा।

अ कीर्तिवर्धन
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