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निरंकुश घोषणाएं

निरंकुश घोषणाएं

        ---:भारतका एक ब्राह्मण.
           संजय कुमार मिश्र'अणु'
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पहले के जमाने में
विचरती थी
रुप बनाकर ललनाएँ
पुरुषों के रीझा
देने को यातनाएं
तोडकर तमाम वर्जनाएं
भोले और कामातुर लोग
सहज फंस जाते थे
उसके रुप जाल में
देख उसकी भावनाएं
वो मुस्कुराती थी मंद-मंद
कि फंस गया अक्लमंद
और फिर दिखाती थी अदाएं
पर आजकल की कन्याएं
आभासी दुनियां से जुड
आ जाती है सामने
दिखाने नये-नये लोगों को
नयी-नयी कल्पनाएं
बिना लाज शर्म
शुरु कर देती है कुकर्म
ये कहकर कि देखो मेरा वदन
और जगाती है काम की ज्वालाएं
देखकर बेचारा पुरुष
नव युवती का नंगा देह
लगाने लगता है नेह
और वो नव युवती
डंस लेती है उस पुरुष को
बताकर काम कलाएं
फिर कहती है ऐसा
देना होगा तुम्हे मुंहमांगा पैसा
नहीं तो कर दूंगी बदनाम
क्या चाहते हो जता इच्छाएं
गिडगिडाता रहता है पुरुष
कहाँ से ऐसा वक्त आया मनहूस
पर कुछ समझ नहीं आता
उसे मिलती है धमकी भरी सूचनाएं
आभासी दुनियां का ये कडवा सच
नहीं रहा है किसी को पच
लेकिन वो रही है खुद नंगी
नये जमाने का नयी भिखमंगी
मुझे मुंहमांगा दो
नहीं तो बदनाम हो
ये बदनाम घर की बदनाम लडकियां
खोलकर रख दी दरवाजे खिडकियां
खुद पहल करती है धमकाती है
तबाह करने को जिंदगियां
वो सब जगह छाई है
नंगी होना हीं उसकी कमाई है
ये नये युग की नयी-नयी युवती
फैला रही है कुमति
पहले रुप जाल में फंसाओ
फिर भय दिखा-दिखा करो दुर्गति
है आजकल जोर पर
ऐसी बहुत सारी चर्चाएं
घट रही है हरेक के साथ तेजी से
ऐसी तथाकथित घटनाएं
लगे ऐसी विभीषिका पर रोक
जिससे समाज में न फैले गंदगी
और न मिले किसीको भय शोक
हो कामिनी के कामुक्ता पर
निरंकुश घोषणाएं
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वलिदाद,अरवल(विहार)८०४४०२.
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