इक्कीसवीं सदी में भी देश जातिवाद से लड़ रहा है पंडित रावेन्द्र तिवारी ।
वरिष्ठ साहित्यकार सामाजिक कार्यकर्ता दर्जनों संगठनों में परोक्ष अपरोक्ष रूप से सक्रिय भूमिका निभाने वाले समानता परिषद एन जी के संस्थापक अध्यक्ष एंव अंतर्राष्ट्रीय लेखक शिव खेड़ा के संरक्षण व अध्यक्षता में बनी भारतीय राष्ट्रवादी समानता पार्टी के मध्यप्रदेश अध्यक्ष पंडित रावेन्द्र तिवारी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि आज जहाँ एक तरफ देश की सरकार घोषण करती है कि इक्कीसवीं सदी भारत की है तो वही भारत में इसी सदी में जातिवाद हावी है आरक्षण के नाम पर इक्कीसवीं सदी में ही भारत में कई आन्दोलन हुए हैं जिनमें मराठा आरक्षण जाट गुर्जर आन्दोलन शामिल है
आज जहाँ सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास की बात भारत सरकार करती है वहाँ जातिगत आधार पर व्यवस्था को बढ़ावा देना समझ से परे है ।
पं; रावेन्द्र तिवारी ने कहा कि देश में विभिन्न जातियाँ निवास करती हैं और हर जाति धर्म में सभी की न ही सामाजिक और न ही आर्थिक रूप से स्थिति बराबर की है ऐसे में सरकार यदि जातिगत आधार पर आरक्षण की व्यवस्था अथवा किसी अन्य तरह की योजना को लागू करती है तो वह निश्चित रूप से वर्ग संघर्ष को बढ़ावा देने के शिवा किसी भी स्थिति में देश के लिए हितकरी साबित नहीं हो सकती है ।
सवर्णो के उपेक्षा से हिंन्दुत्व कमजोर पड़ रहा है इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है जातिगत आरक्षण के दंश ने हिन्दुओं मे द्वेष की खाई ऐसे पैदा कर दिया है कि अशीक्षित से ज्यादा शिक्षित व्यक्ति जातिवाद से ग्रसित हो गया है जिसका उदाहरण वर्ष 2016 में तब देखने को मिला जब मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण के केस पर अपना निर्णय दिया इस निर्णय के बाद कई आन्दोलन हुए और स्थिति यहाँ तक आ गई कि जो कर्मचारी एक साथ बैठकर खाना पीना खाते थे वह शिक्षित व्यक्ति भी जातिवाद से जहर से अफने को नहीं बचा सके और अपने ही विभाग के सहकर्मी से दूरी बना लिए ।
पं,रावेन्द्र तिवारी ने देश के मीडिया के माध्यम से भारत सरकार से माँग करते हुए कहा कि आज डिजिटल युग में देश के प्रत्येक नागरिक को बराबर का समान अधिकार मिलना चाहिए और अन्य आयोगो की तरह ही सवर्ण आयोग का गठन किया जाना चाहिए यदि सरकार ऐसा नहीं करती है तो दिनों दिन सरकार के साथ साथ समस्त राजनीतिक दलों के लिए सवर्णो का विद्रोह बढ़ना तय है
इक्कीसवीं सदी में आरक्षण एससी एसटी एक्ट जैसे नीति का स्वीकार नहीं किया जा सकता है इसके लिए चाहे जितने आन्दोलन करने पड़े करेंगे पर किसी कीमत पर उक्त नीति का समर्थन नहीं करेंगे ।
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